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________________ बढ़ते रहेहै, इसलिए इस कुमार का हम गुणनिष्पन्न वर्द्धमान' नाम रखते हैं-"तंहोउणं कुमारे वद्धमाणे नामेणं।" किसी का भाग्य प्रच्छन्न काम करता है, किसी का प्रकट / संयुक्त परिवार में यह नहीं कहा जा सकता कि सिर्फ एक ही व्यक्ति उसका आधार है। वहाँ, केवल एक का नहीं, अपितु सबका सम्मिलित भाग्य काम करता है। परिवार में बड़े-बूढ़ों के बारे में भी कभी-कभी व्यक्ति सोचता है कि यह तो बेकार की फौज है। कमाते नहीं, सिर्फ खाते हैं। मैं इनका भरण-पोषण कब तक करूँ ? यदि दो-चार बूढ़े आदमी परिवार में 10-15 साल रह गए, तो 20-25 हजार के नीचे ले ही पाएँगे। यह सोचना, निरी व्यक्तिपरक एवं स्वार्थवादी बद्धि है। अर्थशास्त्र की दष्टि से उसके आँकड़े सही हो सकते हैं, लेकिन क्या जीवन में कोई कोरा अर्थ-शास्त्री और गणित-शास्त्री बन कर जी सकता है ? जीवन इस प्रकार के गणित के आधार पर नहीं चलता, बल्कि वह नीति और धर्म के आधार पर चलता है। नीति एवं धर्मशास्त्र यह बात स्पष्टतः कहते हैंकि कोई कर्म करता है, और कोई नहीं करता, यह सिर्फ व्यावहारिक दृष्टि है। वस्तुत: प्रच्छन्न रूप से सबका भाग्य कार्य कर रहा होता है, और उसी के अनुरूप प्रत्येक व्यक्ति को मिलता भी रहता है। वस्तुत हमारा जीवन-दर्शन आज धुंधला हो गया है। आज का मनुष्य भटक रहा है, जीवन के महासागर में तैरता हा इधर-उधर हाथ-पांव मार रहा है, पर उसे कहीं भी किनारा नहीं दिखाई दे रहा है। इसका कारण यही है कि वह इस दृष्टि से नहीं सोच पाता कि कर्म करते रहना है, फिर भी करने के अहं से दूर रहना है-यही जीवन की सच्ची कला है। इसी कला से जीवन में सुख एवं शान्ति प्राप्त की जा सकती है। अन्तर्यात्रा 361 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212388
Book TitleJine Ki Kala Karm Me Akarm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf
Publication Year1987
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size691 KB
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