________________ है। यह तो जीवन का वह जीता-जागता यथार्थ है, जो 'स्व' को 'स्व' पर केन्द्रित करने का, निज को निज में समाहित करने का पथ प्रशस्त करता है। अध्यात्म को, धर्म से अलग स्थिति इसलिए दी गई है कि आज का धर्म कोरा व्यवहार बन कर रह गया है, बाह्याचार के जंगल में भटक गया है। जबकि अध्यात्म अब भी अपने निश्चय के अर्थ पर समारूढ़ है। व्यवहार बहिर्मुख होता है और निश्चय अन्तर्मुख / अन्तर्मुख अर्थात् स्वाभिमुख / अध्यात्म का सर्वेसर्वा 'स्व' है, चैतन्य है। परम चैतन्य के शुद्ध स्वरूप की ज्ञप्ति और प्राप्ति ही अध्यात्म का मूल उद्देश्य है। अतएव अध्यात्म जीवन की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भावात्मक स्थिति है, निषेधात्मक नहीं / यदि संक्षिप्त रूप में कहा जाए, तो अध्यात्म जीवन के स्थायी मूल्य की ओर दिशासूचन करने वाला वह आयाम है, जो किसी वर्ग, वर्ण, जाति और देश की भेदवृत्ति के बिना, एक अखण्ड एवं अविभाज्य सत्य पर प्रतिष्ठित है। वस्तुतः अध्यात्म मानव-मात्र की अन्तश्चित् शक्ति रूप महासत्य का अनुसन्धान करने वाला बह मुक्तद्वार है, जो सबके लिए सदा और सर्वत्र खुला है। अपेक्षा सिर्फ मुक्त भाव से प्रवेश करने की है। 204 Jain Education Interational पन्ना समिक्खए धम्म www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only