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हरी इव ( ऋ १ - २८-७ ) अक्षी इव ( ऋ २-३९-५ )
( १ ) प्राकृत में इवर्ण या उवर्ण के आगे विजातीय स्वर रहने पर उनकी परस्पर
सन्धि नहीं होती है ।
न वर्ण (१/६ )
जैसे::- उ इन्द्रो, दणु इन्द्र, हावलि अरुणो ।
( २ ) ए दातो स्वरे ( १/७ )
प्राकृत में ए और ओ के पश्चात् यदि कोई स्वर आ जाय तो परस्पर में सन्धि नहीं होती है । जैसे-नहुल्लिहणे आ
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( ५६ गुण सन्धि
आमतेन्द्र ेण (ऋ१-२०-५ ) इन्द्राणीमुय ( ऋ१-२२-१२ ) धनेव ( ऋ १-३६-१६ ) इहेव ( ऋ १ - ३७-३ ) अस्येद् (ऋ १ - ६१-११ ) येनोधतो ( अथर्व ४-२४-६ ) सूक्तो (यजु ८-२५ )
अपवाद
शचीव - इन्द्र ( ऋ १-५३-३ ) इयं (ऋ१-५७-५ ) अस्मा इद् ( ऋ १-६१-६ ) सत्य इन्द्र ( ऋ १-६३-३ ) मृगा इव ( ऋ १-६९-७ ) (५७) प्रकृति सन्धि
जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन
महया अदित (ऋ १-२४-२ ) अशा इति ( अथ० १२-४-४२ ) महां असि ( साम-३-२७६ ) तन्न अतय सा० ३-२७४ ) इन्द्रवायु इमे (ॠ १-२-४ )
परिसंवाद-४
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विलयेसो ( विलया ईसो ) सासोसासा ( सास उसासा ) ढोरं (गूढउअ ) एसि ( रा एसि )
पहावलि अरुणो बहु अवऊढो
द इन्द सहिर लित्तो
वि अ
महुई
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