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________________ २७८ जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन वैदिक और प्राकृत भाषा में आत्मनेपद और परस्मैपद का भी भेद नहीं है । वर्तमानकाल तथा भूतकाल की क्रियाओं के वैदिक क्रियापद में वर्तमान के स्थान में परोक्ष वैदिक और प्राकृत भाषा में प्रयोग निश्चित नहीं हैं । का प्रयोग देखा जाता है । यथा म्रियते - ( वर्त० ) ममार ( परोक्ष ) वै० प्र० ३ ४ ६ जबकि प्राकृत में परोक्ष के स्थान पर वर्तमान का प्रयोग देखा जाता है । यथा प्रेच्छाचक्रे ( परोक्ष ) पेच्छइ ( वर्त० ) शृणोति ( वर्त० ) सोहीअ ( परोक्ष ) हे० प्रा० ८/४/४४७ भूतकाल के प्रयोग में क्रिया रूप के पहले 'अ' का अभाव भी देखने को मिलता है । (बेचर - १२३) वैदिक मथीत् रुजन् भूत् (५२) क्रियारूपों में एकरूपता परिसंवाद -४ संस्कृत अमथुनात् Jain Education International अरुजन् अभूत् वैदिक मुज् (अथर्व ३-११-१ ) चर ( अथर्व ३-१५-६ ) वज्च ( अ० ४-१६-२ ) चर वज्च जय किर कर कर ( यजु १९-६२-१ ) युज्ज (यजु ५ - १४- १ ) युज्ज (५३) वैदिक भाषा और प्राकृत के कृदंत रूपों में न्त और माण प्रत्यय की समानता है । वैदिक चरंच ( ऋ १-६-१ ) नमंत ( अथर्व ३-१६-६) जयंत ( अथ० ७-११८-१ ) 'राजंत (ऋ' ३-२-४ ) जय ( अ० ६-९८- १ ) किर ( यजु० ५-२६- १ ) प्राकृत मथीअ For Private & Personal Use Only रुजीअ भवीअ प्राकृत मुज् प्राकृत चरंत नमंत जयंत राजंत www.jainelibrary.org
SR No.212341
Book TitleVaidik Bhasha Me Prakrit Ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuman Jain, Udaychandra Jain
PublisherZ_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf
Publication Year
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size1 MB
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