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________________ १५४ जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन परोक्ष के पाँच भेद हैं- ( १ ) स्मृति (२) प्रत्यभिज्ञान ( ३ ) तर्क ( ४ ) अनुमान (५) आगम । जैन आचार्यों ने इनका विस्तार से वर्णन किया है । १२ नयविधि इस विधि के द्वारा वस्तुस्वरूप का आंशिक विश्लेषण करके ज्ञान कराया जाता है । नय के मूलतः दो भेद हैं (१) द्रव्याथिक, (२) पर्यायार्थिक | इन दोनों के भी निम्नलिखित सात भेद हैं १. नैगम - अनिष्पन्न अर्थ में संकल्पमात्र को ग्रहण करना । २. संग्रह - भेद सहित सब पर्यायों को अपनी जाति के अविरोध द्वारा एक मानकर सामान्य से सबको ग्रहण करना । जैसे घट कहने से सभी प्रकार के घटों का ग्रहण हो जाता है । '3 ३. व्यवहार - संग्रहनय के द्वारा ग्रहण किये गये पदार्थों का विधिपूर्वक अवहरण या भेद करना । जैसे घट के स्वर्णघट, रजतघट, मृत्तिकाघट आदि भेद । १४ ४. ऋजुसूत्र — वर्तमान पर्याय मात्र को ग्रहण करना । ' १५ ५. शब्दनय - शब्द प्रयोगों में आने वाले दोषों को दूर करके तदनुसार अर्थ भेद की कल्पना करना । ६. समभिरूढ़ - १७ इ-शब्द भेद के अनुसार अर्थ भेद की कल्पना करना ।' ७. एवंभूत - शब्द से फलित होने वाले अर्थ के घटित होने पर ही उसको उस रूप में मानना । १८ १२. द्रष्टव्य - परीक्षामुख, प्रमेयरत्नमाला, प्रमेयकमलमार्तण्ड, प्रमाणनयतत्वालोकालंकार, प्रमाणमीमांसा आदि । १३. स्वजात्यविरोधेनैकध्यनुपानीय पर्यायानाक्रान्तभेदानविशेषेण समस्तग्रहणात्संग्रहः । १४. संग्रहनयाक्षिप्तानामर्थानां विधिपूर्वकमवहरणं व्यवहारः । १५. ऋजु प्रगुणं सूत्रयति तन्त्रयतीति ऋजुसूत्रः । १६. लिंगसंख्यासाधनादिव्यभिचारनिवृत्तिपरः शब्दनयः । १७. नानार्थसमभिरोहणात् समभिरूढः । १८. येनात्मनाभूतस्तेनैवाध्यवसाययतीति एवम्भूतः । - टि. १३ से १८ सर्वार्थसिद्धिः १०७ । परिसंवाद -४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212335
Book TitleJain Shiksha Uddesh Evam Vidhiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunita Jain
PublisherZ_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf
Publication Year
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle, Ritual, & Vidhi
File Size574 KB
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