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जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन
विकास-श्रृंखला को प्रदर्शित करती हैं । शुंग कुषाण काल में मथुरा में सर्वप्रथम जिनों के वक्षस्थल पर श्रीवत्स चिह्न का उत्कीर्णन और जिनों का ध्यान मुद्रा में निरूपण प्रारम्भ हुआ । तीसरी से पहली शती ई. पू. की ऊपर वर्णित जिन मूर्तियाँ कायोत्सर्ग मुद्रा में निरूपित हैं । ज्ञातव्य है कि जिनों के निरूपण में सर्वदा यही दो मुद्राएँ प्रयुक्त हुई हैं।
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मथुरा में कुषाण काल में ऋषभनाथ, सम्भवनाथ, मुनिसुव्रत, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर की मूर्तियाँ, ऋषभनाथ एवं महावीर के जीवन दृश्य, आयागपट, जिन - चौमुखी तथा सरस्वती एवं नैगमेषी की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हुईं ।
राज्य संग्रहालय, लखनऊ (क्रमांक जे. ६१६) में सुरक्षित एक पट्ट पर महावीर के गर्भापहरण का दृश्य है । २७ राज्य संग्रहालय, लखनऊ (क्रमांक जे. ३५४ ) के ही एक अन्य पट्ट पर इन्द्र सभा की नर्तकी नीलांजना को ऋषभनाथ की सभा में नृत्य करते हुए दिखाया गया है । ज्ञातव्य है कि नीलांजना के कारण ही ऋषभनाथ को वैराग्य प्राप्त हुआ था । २८
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गुप्तकाल में मथुरा एवं चौसा के अतिरिक्त राजगिर, विदिशा, वाराणसी एवं अकोटा (गुजरात) से भी जैन मूर्तियाँ मिली हैं । इस काल में केवल जिनों की स्वतन्त्र एवं जिन - चौमुखी मूर्तियाँ ही बनीं। इनमें ऋषभनाथ, चन्द्रप्रभ, पुष्पदंत नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर का निरूपण हुआ है । श्वेतांबर जिन मूर्तियाँ (अकोटा ) सर्वप्रथम इसी काल में उत्कीर्ण हुईं ।
दसवीं से बारहवीं शती ई. के मध्य की जैन प्रतिमाविज्ञान की प्रचुर ग्रंथ एवं शिल्प सामग्री प्राप्त होती है । सर्वाधिक जैन मंदिर और फलतः मूर्तियाँ भी इसी काल में बनीं। गुजरात और राजस्थान में श्वेतांबर एवं अन्य क्षेत्रों में दिगम्बर सम्प्रदाय की मूर्तियों की प्रधानता है । गुजरात और राजस्थान के श्वेतांबर जैन मन्दिरों में २४ देवकुलिकाओं को संयुक्त कर उनमें २४ जिनों की मूर्तियाँ स्थापित करने की परंपरा लोकप्रिय हुई । श्वेतांबर स्थलों की तुलना में दिगम्बर स्थलों पर जिनों की अधिक मूर्तियाँ उत्कीर्ण हुईं, जिनमें स्वतन्त्र तथा द्वितीर्थी, त्रितीर्थी एवं चौमुखी मूर्तियाँ हैं । तुलनात्मक दृष्टि से जिनों के निरूपण में श्वेतांबर स्थलों पर एकरसता और दिगम्बर स्थलों पर विविधता दृष्टिगत होती है ।
दिगम्बर स्थलों की जिन मूर्तियों में नवग्रहों, बाहुबली एवं पारम्परिक यक्षयक्षी युगलों के अतिरिक्त चक्रेश्वरी, अंबिका एवं लक्ष्मी जैसी कुछ अन्य देवियों का भी निरूपण हुआ है ।
परिसंवाद -४
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