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जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन
में प्राप्त होने वाला प्रभाव इसी कोटि का है । द्वितीय, जैनों ने देवताओं के एक वर्ग की लाक्षणिक विशेषताएँ इतर धर्मों के देवों से ग्रहण कीं । कभी-कभी लाक्षणिक विशेषताओं के साथ ही साथ इन देवों के नाम भी हिन्दू और बौद्ध देवों से प्रभावित हैं । इस वर्ग में आने वाले यक्ष-यक्षियों में ब्रह्मा, ईश्वर, गोमुख, भृकुटि, षण्मुख, यक्षेन्द्र, पाताल, धरणेन्द्र एवं कुबेर यक्ष, और चक्रेश्वरी, विजया, निर्वाणी, तारा एवं वज्रश्रृंखला यक्षियां प्रमुख हैं ।
हिन्दू देवकुल से प्रभावित यक्ष यक्षी युगल तीन भागों में विभाज्य हैं । पहली कोटि में ऐसे यक्ष-यक्षी युगल हैं जिनके मूल देवता आपस में किसी प्रकार संबंधित नहीं हैं । अधिकांश यक्ष-यक्षी युगल इसी वर्ग के हैं । दूसरी कोटि में ऐसे यक्ष-यक्षी युगल हैं जो मूल रूप में हिन्दू देवकुल में भी आपस में संबंधित हैं, जैसे श्रेयांशनाथ के ईश्वर एवं गौरी यक्ष-यक्षी युगल । तीसरी कोटि में ऐसे यक्ष-यक्षी युगल हैं जिनमें यक्ष एक और यक्षी दूसरे स्वतंत्र संप्रदाय के देवता से प्रभावित हैं । ऋषभनाथ के गोमुख - यक्ष एवं चक्रेश्वरी यक्षी इसी कोटि के हैं जो शिव और वैष्णवी से प्रभावित हैं; शिव और वैष्णवी क्रमशः शैव एवं वैष्णव धर्म के प्रतिनिधि देव हैं ।
लगभग छठीं शती ई. में सर्वप्रथम सर्वानुभूति एवं अंबिका को अकोटा में मूर्त अभिव्यक्ति मिली । इसके बाद धरणेन्द्र और पद्मावती की मूर्तियाँ बनीं, और लगभग दसवीं शती ई. से अन्य यक्ष-यक्षियों की भी मूर्तियां बनने लगी लगभग छठीं शती ई. में जिन मूर्तियों में और लगभग नवीं शती ई० में स्वतंत्र मूर्तियों के रूप में यक्ष-यक्षियों का निरूपण प्रारंभ हुआ। लगभग छठीं से नवीं शती ई. के मध्य को ऋषभनाथ, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं कुछ अन्य जिनों की मूर्तियों में सर्वानुभूति ( कुबेर) एवं अंबिका ही आमूर्तित हैं । लगभग दसवीं शती ई. से सर्वानुभूति एवं अंबिका के स्थान पर पारंपरिक या स्वतंत्र लक्षणों वाले यक्ष- यक्षी युगलों का निरूपण प्रारंभ हुआ, जिसके मुख्य उदाहरण देवगढ़, ग्यारसपुर, खजुराहो एवं राज्य संग्रहालय, लखनऊ में हैं । इन स्थलों की दसवीं शती ई. की मूर्तियों में ऋषभनाथ और नेमिनाथ के साथ क्रमशः गोमुख-चक्रेश्वरी और सर्वानुभूति - अंबिका तथा शांतिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर के साथ स्वतंत्र लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी उत्कीर्ण हैं । शती ई. के बाद बिहार, उड़ीसा और बंगाल के अतिरिक्त अन्य सभी क्षेत्रों की जिन मूर्तियों में यक्ष यक्षी युगलों का नियमित अंकन हुआ है । स्वतंत्र अंकनों में यक्ष की तुलना में यक्षियों के चित्रण अधिक लोकप्रिय थे । २४ यक्षियों के सामूहिक अंकन के हमें तीन उदाहरण मिले हैं । ४६ पर २४ यक्षों के सामूहिक चित्रण का संभवतः
परिसंवाद-४
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