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________________ नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्विन्तन इस सम्बन्ध में एक आपत्ति यह उठाई जा सकती है कि नियुक्तियाँ वलभी. वाचना के आगमपाठों के अनुरूप क्यों है ? इसका प्रथम उत्तर तो यह है कि नियुक्तियों का आगम पाठों से उतना सम्बन्ध नहीं है, जितना उनकी विषयवस्तु से है और यह सत्य है कि विभिन्न वाचनाओं में चाहे कुछ पाठ-भेद रहे हों किन्तु विषयवस्तु तो वही रही है और नियुक्तियाँ मात्र विषयवस्तु का विवरण देती है। पुनः नियुक्तियाँ मात्र प्राचीन स्तर के और बहुत कुछ अपरिवर्तित रहे आगमों पर है, सभी आगम ग्रन्थों पर नहीं है और इन प्राचीन स्तर के आगमों का स्वरूप निर्धारण तो पहले ही हो चुका था। माथुरीवाचना या वलभी वाचना में उनमें बहुत । अधिक परिवर्तन नहीं हुआ है। आज जो नियुक्तियाँ है वे मात्र आचारांग, सूत्रकृतांग, आवश्यक, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, दशाश्रुतस्कन्ध व्यवहार, बृहत्कल्प पर है ये सभी ग्रन्थ विद्वानों की दृष्टि में प्राचीन स्तर के हैं और इनके स्वरूप में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं हुआ है। अतः वलभीवाचना से समरूपता के आधार पर नियुक्तियों को उससे परवर्ती मानना उचित नहीं है। उपर्युक्त समग्र चर्चा से यह फलित होता है कि नियुक्तियों के कर्ता न तो चर्तुदश पूर्वधर आर्य भद्रबाहु है और न वाराहमिहिर के भाई नैमित्तिक भद्रबाहु । यह भी सुनिश्चित है कि नियुक्तियों की रचना छेदसूत्रों की रचना के पश्चात् हुई है। किन्तु यह भी सत्य है कि नियुक्तियों का अस्तित्व आगमों की देवर्द्धि के समय हुई वाचना के पूर्व था। अतः यह अवधारणा भी भ्रान्त है कि नियुक्तियाँ विक्रम की छठवीं सदी के उत्तरार्द्ध में निर्मित हुई है। नन्दीसूत्र एवं पाक्षिकसूत्र की रचना के पूर्व आगमिक नियुक्तियाँ अवश्य थीं। अब यह प्रश्न उठता है कि यदि नियुक्तियों के कर्ता श्रुत-केवली पूर्वधर प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु तथा वाराहमिहिर के भाई नैमित्तिक भद्रबाहु दोनों ही नहीं थे, तो फिर वे कौन से 'भद्रबाहू है जिनका नाम नियुक्ति के कर्ता के रूप में माना जाता है। नियुक्ति के कर्ता के रूप में भद्रबाहु की अनुभुति जुड़ी होने से इतना तो निश्चित है कि नियुक्तियों का सम्बन्ध किसी "भद्र" नामक व्यक्ति से होना चाहिए और उनका अस्तित्व लगभग विक्रम की तीसरी-चौथी सदी के आस-पास होना चाहिए। क्योंकि नियमसार में आवश्यक की नियुक्ति, मुलाचार में नियुक्तियों के अस्वाध्याय काल में भी पढ़ने का निर्देश तथा उसमें और भगवतीआराधना में नियुक्तियों की अनेकों गाथाओं की नियुक्ति-गाथा के उल्लेख पूर्वक उपस्थिति यही सिद्ध करती है कि नियुक्ति के कर्ता उस अविभक्त परम्परा के होने चाहिए, जिससे श्वेताम्बर एवं यापनीय सम्प्रदायों का विकास हुआ है। कल्पसूत्र स्थिविरावली में जो आचार्य परम्परा प्राप्त होती है, उसमें भगवान महावीर की परम्परा में प्राचीनगोत्रीय भूत-केवली भद्रबाहु के अतिरिक्त दो अन्य 'भद्र नामक आचार्यों का उल्लेख प्राप्त होता है --1. आर्य शिवभूति के शिष्य काश्यपगोत्रीय आर्यभद्र और 2. आर्य कालक के शिष्य गौतमगोत्रीय आर्यभद्र। संक्षेप में कल्पसूत्र की यह आचार्य परम्परा इस प्रकार है -- महावीर, गौतम, सुधर्मा, जम्बू, प्रभव, शय्यम्भव, यशोभद्र, संभूति विजय, भद्रबाहु
SR No.212304
Book TitleNiryukti Sahitya Ek Punarchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherSagarmal Jain
Publication Year
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size3 MB
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