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________________ नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्धिन्तन रचयिता वही आर्यगोविन्द होने चाहिए, जिनका उल्लेख नन्दीसूत्र में अनुयोगद्वार के ज्ञाता के रूप में किया गया है। स्थविरावली के अनुसार ये आर्य स्कंदिल की चौथी पीढ़ी में है। अतः इनका काल विक्रम की पांचवीं सदी निश्चित होता है। अतः मुनि श्रीपुण्यविजय जी इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि पाक्षिकसूत्र एवं नन्दीसूत्र में नियुक्ति का जो उल्लेख है वह आर्य गोविन्द की नियुक्ति को लक्ष्य में रखकर किया गया है। इस प्रकार मुनि जी दसों नियुक्तियों के रचयिता के रूप में नैमित्तिक भद्रबाहु को ही स्वीकार करते है और नन्दीसूत्र अथवा पाक्षिकसूत्र में जो नियुक्ति का उल्लेख है उसे वे गोविन्दनियुक्ति का मानते हैं। .. ... ........ ... ........... हम मुनि श्रीपुण्यविजयजी की इस बात से पूर्णतः सहमत नहीं हो सकते है, क्योंकि उपरोक्त दस नियुक्तियों की रचना से पूर्व चाहे आर्यगोविन्द की नियुक्ति अस्तित्व में हो, किन्तु नन्दीसूत्र एवं पाक्षिक सूत्र में नियुक्ति सम्बन्धी उल्लेख है, वे आचारांग आदि आगम ग्रन्थों की नियुक्ति के सम्बन्ध में है, जबकि गोविन्दनियुक्ति किसी आगम ग्रन्थ पर नियुक्ति नहीं है। उसके सबन्ध में निशीथचूर्णि आदि में जो उल्लेख है वे सभी उसे दर्शनप्रभावक ग्रन्थ और एकेन्द्रिय में जीव की सिद्धि करने वाला ग्रन्थ बतलाते हैं। अतः उनकी यह मान्यता कि नन्दीसूत्र और पाक्षिकसूत्र में नियुक्ति के जो उल्लेख है, वे गोविन्दनियुक्ति के सन्दर्भ में है,समुचित नहीं है। वस्तुतः नन्दीसूत्र एवं पाक्षिकसूत्र में जो नियुक्तियों के उल्लेख है वे आगम ग्रन्थों की नियुक्तियों के है। अतः यह मानना होगा कि नन्दी एवं पाक्षिकसूत्र की रचना के पूर्व अर्थात् पाँचवी शती के पूर्व आगमों पर नियुक्ति लिखी जा चुकी थी। 2. दूसरे इन दस नियुक्तियों में और भी ऐसे तथ्य है जिनसे इन्हें वाराहमिहिर के भाई एवं नैमित्तिक भद्रबाहु (विक्रम संवत् 566) की रचना मानने में शंका होती है। आवश्यकनियुक्ति की सामायिकनियुक्ति में जो निनवों के उत्पत्ति स्थल एवं उत्पत्तिकाल सम्बन्धी गाथाये है एवं उत्तराध्ययननियुक्ति में उत्तराध्ययन के तीसरे अध्ययन की नियुक्ति में जो शिवभूति का उल्लेख है, वे प्रक्षिप्त है। इसका प्रमाण यह है कि उत्तराध्ययनचूर्णि,जो कि इस नियुक्ति पर एक प्रामाणिक रचना है, में 167 गाथा तक की ही चूर्णि दी गयी है। नितनवों के सन्दर्भ में अन्तिम चूर्णि 'जेठा सुदंसण नामक 167वीं गाथा की है। उसके आगे निल्नवों के वक्तव्य को सामयिकनियुक्ति (आवश्यकनियुक्ति) के आधार पर जान लेना चाहिए ऐसा निर्देश है। ज्ञातव्य है कि सामायिक नियुक्ति में बोटिकों का कोई उल्लेख नहीं है। हम यह भी बता चुके है कि उस नियुक्ति में जो बोटिक मत के उत्पत्तिकाल एवं स्थल का उल्लेख है, वह प्रक्षिप्त है एवं वे भाष्य गाथाएँ है। उत्तराध्ययनचूर्णि में एक संकेत यह भी मिलता है कि उसमें निड्नवों की कालसूचक गाथाओं को नियुक्तिगाथाएँ न कहकर आख्यानक संग्रहणी की गाथा कहा गया है। इससे मेरे उस कथन की पुष्टि होती है कि आवश्यकनियुक्ति में जो निड्नवों के उत्पत्तिनगर एवं उत्पत्तिकाल सूचक गाथाएँ है वे मूल में नियुक्ति की गाथाएँ नहीं है, अपितु संग्रहणी अथवा भाष्य से उसमें प्रक्षिप्त की गयी है। क्योंकि इन गाथाओं में उनके उत्पत्ति नगरों एवं उत्पत्ति-समय दोनों की संख्या आठ-आठ है। इस प्रकार इनमें बोटिकों के उत्पत्तिनगर और समय का भी उल्लेख है -- आश्चर्य यह है कि ये गाथाएँ सप्त निहनवा की चर्चा के बाद
SR No.212304
Book TitleNiryukti Sahitya Ek Punarchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherSagarmal Jain
Publication Year
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size3 MB
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