________________ पैदा हो पाता है। वैसे ही होम्योपैथी में भी माना गया है कि जीण स्वाध्याय करें। हम क्वालिफाइड डॉक्टर न भी हो पायें पर इतना रोग तभी प्रकट होते हैं जब सोरा, साइकोसिस, सिफलिस मनुष्य तो ज्ञान व अनुभव हमें सहज मिल सकता है कि हमें अपनी शरीर को अपना घर बना लेते हैं। इनके कारण रोग शरीर में छोटी-मोटी बीमारियों के लिये व परिवार तथा इष्ट मित्रों की गहरा पैठकर शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को आक्रांत कर मानव बीमारियों के लिये व्यर्थ डॉक्टरों के दरवाजे न खटखटाना पड़े। को स्थायी बीमार बना देता है और हम जानते हैं कि सोरा मन डॉ. एस. के. दूबे ने मात्र एलेन्स-की-नोट पर अपनी मास्टरी की कलुषित अवस्था का द्योतक है तो गनोरिया व सिफलिस हासिल कर होम्योपैथी की जादुई शक्ति को सबके सामने सिद्ध संसर्गजनित दोष हैं। मन कलुषित होकर जब कोई स्त्री व पुरुष करके बता दिया कि आज उनके पढ़ाये छात्र जहाँ-जहाँ भी गये ऐसे स्त्री या पुरुष से संसर्ग कर बैठते हैं तो पहले से ही गनोरिया उन्होंने होम्योपैथी का परचम सब दूर फहरा दिया। यदि किसी या सिफलिस से ग्रसित है तो स्वस्थ व्यक्ति को भी यह रोग में भी समर्पण भाव व निष्ठा हो तो फिर कठिन कुछ भी नहीं। जकड़ लेता है और जब इस रोग से शीघ्र मुक्ति पाने के लिए जयपुर तेज जहरीली दवाओं का वह सेवन करता है तो रोग लक्षण दबकर वह जहर भीतर पहुँचकर मानव को कई असाध्य बीमारियों का घर बना डालता है। इस दुष्कर्म का फल उसको ही नहीं उसकी कई पीढ़ियों तक को भोगना पड़ता है। पूर्व जन्म में किये गये दुष्कर्मों का प्रभाव तो फिर भी इस जन्म में कर्मफल भोग कर शीघ्र शान्त हो जाता है पर जब व्यक्ति के साथ इस जन्म में किये पाप भी जुड़ जाते हैं तो स्थिति ज्यादा जाते हैं तो होम्योपैथी की मियाज्मेटिक दवाएँ उन कर्मफलों को हल्का करने में रोगी की बहुत मदद करती हैं। यह कार्य अन्य किसी पैथी से नहीं हो पाता। एलोपैथी तो रोग की जटिलता को और बढ़ा ही सकती है। क्योंकि उन्हें शरीर व मन पर उभर रहे लक्षणों को दबाने के लिये निरन्तर ऐसी दवाएँ अधिकाधिक मात्रा सुलझती नहीं, उलझती ही चली जाती है और अन्त में वे कह उठते हैं, अब हमारे पास रोगी को ठीक करने के लिये कोई दवा नहीं बची, अब तो उसे इसी हालत में जीने की आदत डालनी होगी। इसलिये होम्योपैथी हमें यही सिखाती है कि यदि हम जीवन में सुख व शान्ति से जीना चाहते हैं तो अपने विचारों को शुद्ध व निर्मल बनाये रखने के अलावा कोई चारा नहीं है। जितना हम अपने को बाह्य सुखों से विलय कर, अपने आप में स्थिर होने का प्रयत्न करेंगे, क्रोध, मान, माया, लोभ पर अंकुश रखेंगे उतनी ही शारीरिक व मानसिक शान्ति हासिल कर हम निरोगी जीवन हासिल कर पायेंगे। होम्योपैथी ही आज सबसे ज्यादा सुलभ, कारगर, सस्ती व ऐसी अहानिकारक पद्धति है, जिसका कोई मुकाबला नहीं। इसको अध्ययन कर आत्मसात करना भी ज्यादा कठिन नहीं है बशर्ते हम रोज एक घंटा इसका नियमित 0 अष्टदशी / 1470 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org