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________________ जें कबि सुधा पयोनिधि होई । परम रूपमय कच्छपु सोई। सोमा रजु मंदरू सिंगाऊ । मपै पानि पंकज निज मारू । एहिविधि उपजै लच्छि तव सुन्दरता सुखमूल । यो तदपि संकोच समेत कवि कहहिं सीय समतूल ॥ स्वयंभू में तुलसी के समक्ष सामाजिकता तथा समाजअनुशासन का अभाव है। 'पउम चरिउ' में विभीषण जनक और दशरथ को मरवाने का असफल प्रयास करता है | भामण्डल अपनी भगिनी सीता पर कामासक्त हो जाता है । रावण सीता को वायुयान में बिठाकर लंका घुमाता है । ये सब स्वयंभू की आश्चर्यजनक उद्भावानएं हैं। स्वयंभू ने रावण को दशमुखी राक्षस न मानकर विद्याधर वंशी माना है । उनके सभी पात्र जन्मतः जैन मतानुयायी हैं । स्वयंभू के लक्ष्मण रावण का वध करते हैं क्योंकि वे वासुदेव हैं। स्वयंभू ने राम-कथा-साहित्य के श्रृंगारी रूप का मार्ग प्रशस्त किया था । तुलसी ने रामकथा को घर-घर में गुंजायमान कर दिया और उसके शाश्वत आदर्शों से जनता प्रेरणा पाने लगी । स्वयंभू राज्याश्रित कवि थे परंतु तुलसी अपने चार चने में ही मस्त रहे और कमी किसी राजा की परवाह नहीं की । संरचना के दृष्टिकोण से स्वयंभू तुलसी को प्रभावित करते हैं | स्वयंभू में रसात्मकता मिलती है तो तुलसी में रमणीयता । प्रतिबिम्ब सूत्र : तुलसी ने महर्षि वाल्मीकि (रामायण) तथा वेद व्यास (महाभारत) की तो वन्दना की है परन्तु स्वयंभू का कहीं नाम नहीं लिया - सीताराम-गुण ग्राम पुण्यारण्य-विहारणौ । वन्दे विशुद्ध विज्ञानौ कवीश्वर कपीश्वरौ || और किन व्यास आदि कवि पुंगव नाना। जिन सादर हरि सुजस बखाना ॥ तुलसी के समान स्वयंभू ने भी अपने पूर्वज कवियों का ऋण स्वीकार किया है । तुलसी ने बिना किसी का नाम लिये प्राकृतकवियों का स्तवन किया है - जे प्राकृत कवि परम सयाने । जात भाषा जिन्ह हरि चरित बखाने । डॉ. शम्भूनाथसिंह (हिन्दी महाकाव्य का स्वरूप-विकास) ने इस प्रसंग में लिखा है कि यहां प्राकृत कवि का अभिप्राय प्राकृत और अपभ्रंश में रामकथा लिखने वाले विमलसूरि, स्वयंभू, पुष्पदेव आदि कवियों से है । रामचरित मानस की भाषा और शैली पर स्वयंभू का प्रभाव तो स्पष्ट दिखाई देता है। तुलसी ने 'मानस' की समाप्ति की पुष्पिका में लिखा है - या पूर्व प्रभुणा कृतं सुकविना श्रीशम्भुना दुर्गम । श्रीमद्रामपदाजभक्तिमनिशं प्राप्त्यै तु रामायणम् । मत्वा तद्रघुनाथनाम निरतं स्वान्तस्तमः शान्तये । भाषाबद्धमिदंचकार तुलसीदासस्तथा मानसम् ॥ कतिपय टीकाकारों ने 'कृतं सुकविना श्रीशम्भुना' से संकेतार्थ निकाला है कि सुकवि स्वयंभू ने पहले जिस दुर्गम रामायण की सृष्टि की थी, उसी को तुलसी ने 'मानस' के रूप में भाषाबद्ध कर दिया। लिया डा. संकटा प्रसाद उपाध्याय (कवि स्वयंभू) की भी सम्मति है कि स्वयंभू ने तुलसी को प्रभावित किया था परंतु वे धार्मिक बाधा के कारण स्वयंभ का नामोल्लेख नहीं कर सके । तलसी वर्णाश्रम-विरोधी किसी अन्य धर्म अथवा उसके उन्नायक कवि का नाम नहीं लेना चाहते थे। " स्वयंभू-रामायण तथा तुलसी-मानस में अनेक स्थलों में साम्य दिखायी पड़ता है । स्वयंभू ने अपने काव्य सरिता वाले रूपक में लिखा है कि यह अक्षर व्यास के जल-समूह से मनोहर सुन्दर अलंकार तथा छंद रूप मछलियों से आपूर्ण और लम्बे समास रूपी प्रवाह से अंकित है । यह संस्कृत और प्राकृत रूपी पुलिनों से शोभित देशी भाषा रूपी दो कूलों से उज्ज्वल हैं । इसमें कहीं-कहीं घन शब्द रूपी शिला-तल हैं । कहीं-कहीं यह अनेक अर्थरूपी तरंगों से अस्त-व्यस्त-सी हो गई है । यह शताधिक आश्वासन रूपी तीर्थों से सम्मानित है - अक्खर-बास-जलोह मनोहर | सु-अलंकार हन्व मच्छोदर ।। दीह समास पवाहावकिय । सक्कय-पायय-पुलिणा लंकिय ।। देसी-भासा-उभय-तहुज्जल | क वि दुक्कर-घण-सद्द-सिलायल । अत्थ-वहल-कल्लोलाणिट्ठिय । आसासय-सम-तूह-परिट्ठिय ॥ तुलसी का काव्य-सरोवर-रूपक इस प्रकार है - सप्त प्रबंध सुमग सोपाना । ग्यान नयन निरावत मन माना । रघुपति महिमा अगुन अबाधा । वरनव सोइ वर वारि अगाधा । रामसीय जस सलिल सुधासम । उपमा बीचि विलास मनोरम ॥ पुरइन सधन चारु चौपाई । जुगुति मंजु मनि सीय सुहाई ।। छंद सोरठा सुन्दर दोहा । सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा ॥ अरथ अनूप सुभाव सुभासा । सोइ पराग मकरन्द सुवासा ।। सुकृत पुंज मंजुल अलि माला । ग्यान विराग विचार मराला ॥ धुनि अवरेव कवित गुन जाती । मीन मनोहर जे बहु भांती । अरथ धरम कामादिक चारी । कहब ज्ञान विज्ञान विचारी ॥ नवरस जप तप जोग विरागा। ते सब जलचर चारु तड़ागा ।। 'पउम चरिउ' में राम-कथा का श्रीगणेश श्रेणिक की शंका से होता को परमेसर पर-सासणेहि सुबह विवरेरी। काकी श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनन्दन ग्रंथ / विश्लेषण (२७) दयाहीन दागी तथा, दुर्गुण देखन हार । जयन्तसेन तजो सदा, ये दुःख के दातार || . www.jairneidlary.org Jain Education Interational For Private & Personal Use Only
SR No.212286
Book TitleHindi Ramayan Manas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmi Narayan Dubey
PublisherZ_Jayantsensuri_Abhinandan_Granth_012046.pdf
Publication Year
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size4 MB
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