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________________ भीमग के पुत्र थे। इन की माता का नाम रांमली था। उन्होंने वाल्यावस्था में ही विरक्त होकर अमरसिंह सूरि से दीक्षा ग्रहण की और बाद में आचार्य बनी। इनकी रचना का प्रारम्भिक पद्य इस प्रकार हैं - अहे जुहारिस जगत्रय अधिपति, मनुपति सुमति जिणंद, __ अहे गायसुं रंगि धनागम, आगम गच्छ मुणिंद। श्री हेमरत्न सूरि भगतिहिं, विगतिहिं गुण वर्णवे सु, गुरु पद पंकज सेविय, जाविय सफल करे सु। अन्तिम छन्द देखिए - इणिपरि सुह गुरु सेवउ, केवउ नहीं भववासि, दुर्लभ नरभव लाघउ, साधउ सिद्धि उल्हास। रचना काव्य की दृष्टि से सामान्य कोटि की है। ५ ६. हेमश्री - ये साध्वी बड़तप गच्छ के नयनसुन्दर जी. की शिष्या थीना जैन गुर्जर कविओ भाग-१ के पृष्ठ-२८६ पर इनकी एक रचना कनकावती आख्यान का उल्लेख मिलता है यह ३६७ छन्दों की रचना है। इसका निर्माण सम्वत् १६४४ वैशाख सुदी ७ मंगलवार को किया गया। रचना इस प्रकार सरसति सरस सकोमल वाणी-रे, सेवक उपरि बहु हीत आंणी रे। श्री जिनचरण सीसज नामी-रे, सहि गुरु केरी सेवा पांमी रे। सेवा पांमी सीस नांमी, गाउं मनह उलट घणई। कथा सरस प्रबन्ध भण सूं, सुजन मनई आणंदनी। ७. हेमसिद्धि - इनका सम्बन्ध खतर गच्छ से था। इन के दो गीतों में पहली रचना है -लावण्य सिद्धि पहुवणी गीतम्। इस रनचा में साध्वी लावण्य सिद्धि का परिचय दिया गया है। रनचा के अनुसार लावण्य सिद्धि वीकराजशाह की पत्नी गुजरदे की ये सुपुत्री थी। पहुतणीरत्र सिद्धि की ये पट्टधर थी। जिन चन्द्र सूरि जी के आदेश से ये वीकानेर आई और वहीं अनशन आराधना की। सम्वत् १६६२ में स्वर्ग सिधारी रचना का आदि अन्त इस प्रकार है - आदि भाग - आदि जिणेसर पयनमी, समरी सरसती मात । गुण गाइसुं गुरुणी तणा, त्रिभुवन मांही विख्यात। अन्त भाग - परता पूरण मन केरी, कल्पतरु थी अधिकेरी। हेमसिद्धि भगति गुण गावइतें सुख सम्पत्ति, नितुपावइ। ५ - हिन्दी जैन साहित्य का वृहद इतिहास ले.डा. शितिकंठ मिश्र पृ. ४९५ - ४९६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212275
Book TitleHindi Kavya ke Vikas me Shramaniyo ka Yogadana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Gaud
PublisherZ_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf
Publication Year1992
Total Pages6
LanguageHindi
ClassificationArticle & Kavya
File Size507 KB
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