________________ 90000000 0 00000000000000000000000000000000300- 3486 उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ / ब्रह्मचर्य रखना ही यह व्रत नहीं है। इसका अर्थ तो है ज्ञान की जैनी यदि कहता है कि जीव से पुद्गल छूटा तो जीव परम - प्राप्ति का आचरण। आनन्द की अपनी पूर्व स्थिति को प्राप्त कर लेता है। इस कथन ब्रह्मणे वेदार्थ चर्यम् आचरणयिम् तथा हमारे सनातनी विश्वास में कोई अन्तर नहीं होता-चाहे ईश्वर की, जीव की या ब्रह्म किसी का कल्पना कीजिये। कल्पना मनसा वाचा कर्मणा किसी को दुःख न पहुँचाना अहिंसा है। इसलिए कह रहा हूँ कि मैं सांसारिक आदमी क्या जानूँ कि हिन्दू धर्म का तत्व भी यही है। “पुराणों का निचोड़ व्यास कहते हैं वास्तव में है क्या। हमारे महान् कठोपनिषद् में मृत्यु के देवता 3 8 8 कि बस दो ही बात हैं-परोपकार करना पुण्य है तथा दूसरे का / यमराज, जो धर्मराज भी हैं, उनका तथा नचिकेता के वार्तालाप में 2009 अपकार करना ही पाप है। मृत्यु की अपरिमेय जो व्याख्या की गयी है वैसी मुझे अन्यत्र नहीं परोपकारः पुण्याय पापाय परपीड़नम् मिलती। घण्टों मंदिर में नाक दबाये बैठे रहें और घर आकर हर आदि शंकराचार्य ने ब्रह्म सूत्र की व्याख्या में लिखा था तरह के जाल, फरेब रचने वाला कभी संसार से मुक्ति नहीं पा बुद्धावभिव्यक्त विज्ञान प्रकाशनम् सकता। जीवन भर मरता, जन्म लेता, मरता-कभी नीचतम घर में जन्म लेता, हर प्रकार का कष्ट उठाता रहेगा। असली चीज है। यानी घड़ा, कपड़ा, मकान, दिन, रात, बंधु, बांधव-जो भी आवागमन के बंधन से मुक्ति पाना। महान् पण्डित, शास्त्रज्ञ, विद्वान / कुछ कुछ भी है वह केवल दिखायी पड़ने में भिन्न हैं, अन्यथा सब एक मात्र रहते हैं, अविभिन्न है-दृष्टि दोष है-यही तो स्याद्वाद है। हो जाने से काम नहीं चलेगा-यदि वह व्यक्ति अपने मन की गति o नहीं जानता, जिसे अपनी वास्तविक आकांक्षा इच्छा तथा भावना अहस्वं, अदीर्घ, अनj, अदृश्ये, अनिरक्ते, अनिलयने 1088538 का न बोध हो, न बोध के प्रति सम्मान भी, ऐसा व्यक्ति जिसका संक्षेप में आत्मतत्त्व के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है। हमारे में OLD भी हाथ पकड़ेगा, उसे लेकर स्वयं भी डूब जायेगा। बाबा कबीर ने जो कुछ है, कामवासना है। यह चली जाय तो फिर अहिंसा, सत्य, * साफ कहा है अस्तेय, अपरिग्रह भी तथा साथ ही ब्रह्मचर्य भी समाप्त हो जायेगा जाना नहिं बूझा नहीं समुझि किया नहिं गौन॥ इसीलिये भगवान श्रीकृष्ण कहते हैंअंधे को अंधा मिला, राह बतावे कौन॥ धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ! 20100.006 संसार में केवल अटल सत्य है और वह है मृत्यु। जो लोग धन यमराज से नचिकेता का तीसरा प्रश्न था कि मनुष्य का शरीर 2 तथा सम्पत्ति को ही अपना लक्ष्य बनाये हैं उन्हें जैन धर्म से यह तो छुटने पर शरीर का नाश हो जाता है। भस्म हो जाता है पर उसमें सीखना ही चाहिए कि मृत्यु के बाद उनके साथ क्या कुछ जायेगा? स्थित चैतन्य जीव (आत्मा) की क्या गति होती है? तो यमराज ने X0G विजेता सिकन्दर के निधन के सम्बन्ध में यह कितना कटु सत्य | उत्तर दिया था योनिमन्ये प्रपद्यन्ते शरीरत्वाय देहिनः। DATE लाया था क्या सिकन्दर दुनियाँ से ले चला क्या? स्थाणुमन्येऽनुसंयान्ति यथाकर्म यथाश्रुतम्। GOD ये हाथ दोनों खाली, बाहर कफन से निकले। (द्वि. 7) ENDSP हम जिसे ब्रह्म मानते हैं, जैनी जिसे जीव मानते हैं-वह कौन अर्थात् कर्मानुसार तथा ज्ञान के अनुसार जीवात्मा का पुनः SPORP है, कहाँ है यह तो मुक्त, मोक्ष प्राप्त या तीर्थंकर ही जानते होंगे। जन्म होता है। किस कर्म के अनसार कौन-सी योनि प्राप्त होती है H D हम तो सुनी, सुनायी बात ही कह सकते हैं। यह मृत्यु रोज दिखायी यह तो इस श्लोक में प्रकट नहीं है पर यह तो ज्ञानी पुरुष ही 38 पड़ रही है। ब्रह्मलीन अनन्त श्री स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती ने बतला सकते हैं। संक्षेप में39008 अपने प्रवचन में कहा था कि एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति “अन्तिम निष्कर्ष यह होना चाहिए कि मुझमें अद्वितीय, कर्म-संस्कार-जन्म-मरण यह सब रहस्य केवल मुक्त ही स्पष्ट DD परिपूर्ण, अविनाशी, प्रत्यक् चैतन्याभिन्न ब्रह्म में न माया है, न कर सकता है। मैं तो इतना ही जानता हूँ कि अच्छा सनातनी हिन्दू Rose छाया, न विद्या, न अविद्या, न व्यष्टि बुद्धि न समष्टि बुद्धि, न मन, या निर्मल जैनी होने के लिये एक-दूसरे से पूरी तरह परिचित होना 200000 न इन्द्रिय, न देह, न विषय। इस प्रक्रिया से विचार करने पर नितान्त आवश्यक है। 100000 आत्मनिष्ठा सम्पन्न होती है।" in colejit 66 6 00 00000000000000001806 WOOROS 1994SPrateekshaPLS AGO 0000000030 20:00:00:00: 00-00-00QNKALIdiosorry 6600.0000NAKOWAbsod 000000000000000000DDALTD