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________________ Sab SORoad000 aap 04900 30-24 1. 30-4 RAO ५५२ - 0 उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ धारण रत्न-माणिक्य, वनस्पति-बिल्वपत्र की मूल, अंगूठी ताँबा की, रत्न या मूल चांदी में जड़वा कर रविवार को मध्याह्न में ऊं हैं ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय स्वाहा। इस मंत्र की एक माला उस पर जप कर अनामिका अंगुली में या भुजा में धारण कर लें। - सोना, मुंगा, ताँबा, गेहूँ, घृत, गुड़, लाल कपड़ा, लालचन्दन, रक्तपुष्प व केशर। समय - सूर्योदय काल। दान 000- 00-00- 0 मंत्र यंत्र: U जो ग्रह अनुकूल नहीं है-प्रतिकूल चल रहे हैं या भविष्य में अनिष्टकारी बनने वाले हैं तो उसी ग्रह के रंग के साथ महामंत्र के उस पद्य का जप-ध्यान पूजा पूर्ण विधि विधान से चालु किया जाए तो निश्चित ही उसमें सुधार होगा, उन कर्म पुद्गलों का क्षय होगा। 5 मैं एक ही ग्रह का पूर्ण विधान बता रहा हूँ ताकि निबन्ध लम्बा न हो जावे। जैसे सूर्य की दशा चल रही है वो अनिष्टकारी है तो उसके लिए बताया गया है:मंत्र - ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं। - ११०० ऊं ह्री पद्मप्रभवे नमस्तुभ्यं मम शान्तिः शान्तिः एक माला रोज। उपासना भगवान पद्मप्रभु के अधिष्ठायक देव कुसुम की पूजा। दिशा उत्तर या पूर्व। निद्रा के समय भी मस्तक पूर्व की ओर रहना चाहिए या दक्षिण की ओर। रंग प्रयोग - - वस्त्र, आसन व माला का रंग लाल-जप व पूजा । के समय स्नान कनेर, दुपहिरिया, नागरमोथा, देव दार, मैनसिल, केसर, इलायची, पदमाख, महुआ के फूल और सुगन्धि वाला के चूर्ण को पानी में डाल कर स्नान करें। व्रत ३० रविवार के तीस व्रत करें लगातार। ur9 my Yo धारण विधि-रविवार के दिन अष्टगंध स्याही, अनार की कलम से भोजपत्र पर लिखकर ताँबा, चांदी या सोने के मादलिये में डालकर-लाल डोरे में पिरोकर पुरुष दाहिनी भुजा व स्त्री गले में धारण कर लें। इस तरह प्रत्येक ग्रह के अलग-अलग विधान बताए गए हैं। पता: जे. पी. काम्पलेक्स शाप नं. ८ डोर नं. ८-२४-२६, मेन रोड पो. राजमुंदरी-५३३१०१ (आ.प्र.) 0000-sts SOMEBRAHES62626220 20PDADDEsh हाँ, मैं जैन हूँ 20300.00 -श्री परिपूर्णानन्द वर्मा VAH DATE. 0.00 . धुरन्धर साहित्यकार तथा विद्वान लोग मुझसे प्रायः पूछ बैठते । माँगने जाते हैं। मुझे उन करोड़ों हिन्दू नर-नारी की मूर्खता तथा हैं कि मैं आध्यात्मिक सभाओं में अपने को जैनी क्यों कहता हूँ अज्ञान पर रुलाई आती है सर्व अन्तर्यामी देवी-देवताओं से कुछ जबकि मैं अपने को कट्टर सनातन धर्मी, घोर दकियानूसी हिन्दू माँगते हैं-हमें यह दे दो, वह दे दो। मानो वह देव न तो अन्तर्यामी तथा श्राद्ध, तर्पणा, पिण्डदान तक में विश्वास करने वाला भी है, हमें जानता-पहचानता है. वह सो रहा है और हम उसे जगाकर कहता हूँ। मेरा उनसे यहाँ निवेदन है कि मैं वह जैनी नहीं हूँ जो । अपनी आवश्कयता बतला रहे हैं। हमारे धर्म शास्त्र बार-बार अपने नाम के आगे तो जैन लिखते हैं पर घोर कुकर्मी, मद्य-माँस निष्काम कर्म का उपदेश देते हैं पर कौन हिन्दू उसे मानता है। कब्र सेवी तथा रोजमर्रा के जीवन में छल कपट करते रहते हैं। जब मैं पर फातिव पढ़ने वाला मुसलमान या गिर्जाघर में ईसाई यह क्यों SOD.4 श्रद्धापूर्वक भगवान महावीर या पार्श्वनाथ वीतराग की प्रतिमा के भूल जाता कि ईश्वर सर्वज्ञ है तभी तो उपास्य है। हमने एक प्रभु सम्मुख नतमस्तक होकर उनसे यही चाहता हूँ कि उनके दर्शन से सत्ता तथा सार्व भौम शक्ति मानकर अपना काम हल्का कर लिया मैं भी वीतराग, माया मोह बन्धन से छूट जाऊँ तो मुझे दया भी कि एक कोई सर्व शक्ति हैं जिसका सहारा है। इसलिए ईश्वरवादी ra.0.00%hd आती है इन मूों पर जो वीतराग से सांसारिक पदार्थ या सुख । होना तो सरल है पर जैन मत पर चलने वाला जो एक परम तत्व Po:00:00 00.0.05 SSDADRAS/09-02 PCODED 3016090090056 OODo:00:0904007 क DODSD50.0000Baapaersranyongs P 1904 Sandegenerate 926600000000000000000000
SR No.212273
Book TitleHa Main Jain Hoo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParipurnanand Varma
PublisherZ_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf
Publication Year
Total Pages3
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size2 MB
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