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मलधारगच्छीय लक्ष्मणगणि द्वारा रची गयी है । इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा का इस प्रकार उल्लेख किया है :
जयसिंहसूर
अभयदेव सूर
हेमचन्द्र सूर
लक्ष्मणगणि (वि.सं. १९९९ / ई. सन् १९४३ में सुपासनाहचरिय के रचनाकार)
संग्रहणीवृत्ति :
यह मलधारगच्छीय श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य देवभद्रसूरि की कृति है । इसकी प्रशस्ति५ के अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी गुरू-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है :
अभयदेवसूर
चन्द्रसूरि
श्रीचन्द्रसूरि
देवभद्रसूरि (संग्रहणीवृत्ति के रचनाकार)
यह कृति वि.सं. की १३वीं शती के प्रथम अथवा द्वितीय दशक की रचना मानी जा सकती है ।
पाण्डवचरितमहाकाव्य :
यह लोकप्रसिद्ध पाण्डवों के जीवनचरित पर जैन परम्परा पर आधारित ८ हजार श्लोकों की रचना है । इसके रचनाकार मलधारगच्छीय देवप्रभसूरि हैं । ग्रन्थ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि ग्रन्थकार ने अपने ज्येष्ठ गुरू- भ्राता देवानन्दसूरि के अनुरोध पर यह रचना की । इस कार्य में उन्हें अपने एक अन्य गुरुभ्राता यशोभद्रसूरि और शिष्य नरचन्द्रसूरि से भी सहायता प्राप्त हुई ।
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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