________________
१३. मैं कैसे मानूं ?
सेठ ने कहा मुनिराज ! मैं कैसे मानूं"धन अनर्थ का मूल है इसलिए बुरा है" महाराज ! जब मैं निर्धन था तो कोई कदर न थी मैं संयमी था किन्तु फिर भी बेईमान कहा जाता था
महाराज ! आज मैं धनी हूं लोग चरण चूमते हैं असंयमी हूँ फिर भी लोग महानु कहते है अब बताओ मैं कैसे मानूं-धन बुरा है ?
१४. मिलन और विरह
मिलन में सुख है विरह में वेदना !
मानव मिलन प्रेमी है और विरह-विद्वेषी !
पर उसे क्या मालूम विरह के बिना मिलन का सुख कैसा ?
१५. काटना और साधना
काटना सहज है साधना कठिन ऊंची अकेली चलती है क्योंकि उसका काम है सीधा 'काटना ' सूई धागे के बिना चल नहीं सकती क्योंकि 'सोने' में अनेक घुमाव जो होते हैं !!
१६. नेपथ्य में
मैं ढूंढ रहा था भगवान् को `भगवान् खोज रहे थे मुझे !
अकस्मात् हम दोनों मिल गए न तो वे झुके और न मैं झुका
न वे मुझसे बड़े थे और न मैं उनसे लघु था
एक पर्दा मुझे उनसे विभक्त किए था
वह हटा और मैं भगवान् बन गया !
१७. अस्तित्वहीन
केवल यति ही नहीं स्थिति भी चाहिए पवन में गति है पर स्थिति नहीं
वह पल में होता है ठण्डा और पल में गरम
पल-पल में सुरभित और दुर्गन्धित भी ! · लगता है उसका कोई अपना अस्तित्व ही नहीं !
सृजन-संकल्प
Jain Education International
१८. समन्वय बादल चले जा रहे थे बरसने अनन्त ने उनका सम्मान किया ! बादल चले आ रहे थे बरस कर अनन्त ने उन्हें छाती से चिपका लिया !!
१६. सापेक्षता
वह ठंडक किस काम की
जो पानी को पत्थर बना दे ।
वह गर्मी भी क्या बुरी है
जो पत्थर को भी पानी बना दे ।।
२०. तप का चमत्कार
भला लघु बने बिना भी कोई ऊँचा उठ सकता हैं ?
जल बादलों से भरकर भारी हुआ कि नीचे चला गया !
पात्र में तपकर लघु हुआ कि वाष्प बन कर अनन्त में लीन हो गया तपे बिना कौन लघु हो सकता है ?
और
लघु बने बिना कौन अनन्त को छू सकता है ?
२१. गतिरोध
सिगनल झुका, रेल चलती गई।
वह स्तब्ध रहा, रेल रुक गई ।
गतिरोध वहां होता है जहां स्तब्धता होती है ।
२२. प्रकाश और तिमिर
सूर्य ! तुम्हारे पास सब कुछ है आवरण नहीं ! तिमिर अपने अंचल में
समूचे विश्व को छिपा लेता है।
तम में साम्य है, एकत्व है
रवि, तुम यह नहीं कर पाते !
तुम्हारे रश्मिजाल में विश्लेषण है, भेद है। शान्ति और मौन को लेकर
आता है तिमिर सहस्ररश्मि तुम लाते हो कान्ति और मुल
For Private & Personal Use Only
८५
www.jainelibrary.org