SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वप्न शास्त्र : एक मीमांसा ४६१ . स्वप्नशास्ववेत्ताओं के अनुसार उक्त ३० शुभस्वप्नों में से कोई भी स्त्री या पुरुष अगर ये स्वप्न देखते हैं तो वे उनके लिए शुभ सूचक ही है। कुछ विशिष्ट स्वप्न स्वप्नशास्त्रवेत्ताओं ने अपने अनुभव, अध्ययन तथा परम्परागत श्र तियों के आधार पर शुभाशुभ स्वप्नों की सूची दी है, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि बस, शुभ या अशुभ स्वप्नों के इतने ही प्रकार हैं । वास्तव में तो स्वप्नों की कोई ईयत्ता (सीमा) नहीं है। किसी भी समय किसी भी प्रकार का स्वप्न देखा जा सकता है और उसका अर्थ व संकेत समझने के लिए वातावरण, परिस्थिति, व्यक्ति की अवस्था, पद आदि अनेक वस्तुओं पर विचार किया जाता है । एक ही प्रकार का स्वप्न यदि दो व्यक्ति देखते हैं तो उसका फल एक ही हो यह जरूरी नहीं। उनकी स्थिति के अनुसार एक ही स्वप्न के दो भिन्न अर्थ व फल मिल जाते हैं । आचार्यों ने एक उदाहरण देकर बताया है-एक भिखारी ने स्वप्न में पूर्ण गोल चन्द्र को मुंह में प्रवेश करते देखा । और एक श्रेष्ठी पुत्र ने भी यही स्वप्न देखा । दोनों ने स्वप्नशास्त्री से इसका अर्थ पूछा तो उसने भिखारी को बताया-तुम्हें आज एक गोल पूर्ण रोटी (पूरण पोली-मीठी रोटी)२ भिक्षा में प्राप्त होगी । और श्रेष्ठी पुत्र को बताया- तुम्हें राज्य की प्राप्ति होगी। तो, स्वप्न-फल का निर्णय करने में पात्र एवं परिस्थितियाँ मुख्य कारण होती है। स्वप्नशास्त्र में स्वप्नों के जो अर्थ बताये हैं वे सामान्य अर्थ हैं । विशिष्ट अर्थ व्यक्ति अपनी बुद्धि से लगाता है । इस प्रकार के कुछ स्वप्नों का वर्णन प्राचीन ग्रन्थों में आता है जो स्वप्न भी विचित्र थे और उनके अर्थ भी विचित्र ही लगाये गये, समय पर उनकी यथार्थता भी जाहिर हो गई। भरत चक्रवर्ती के स्वप्न-महापुराण में भरत चक्रवर्ती के १६ स्वप्नों का वर्णन है । एक रात भरत जी ने एक साथ ये विचित्र स्वप्न देखे । इनके क्या संकेत हैं, वे कुछ समझ नहीं पाये। मन में ऊहापोह लिये ही वे भगवान आदिनाथ की सेवा में पहुंचे तो भगवान ने उनका विशिष्ट अर्थ बताया है। (१) भरत–एक सघन वन में २३ सिंह स्वेच्छया भ्रमण करते हुए पर्वत शिखर पर चढ़कर उस पार पहुँच गये । उनकी गूंज सुनाई देती रही। भगवान ऋषभदेव-तेबीस सिंह भावी तेबीस तीर्थंकरों के प्रतीक हैं । तेबीस तीर्थंकरों के समय जैन साधु अपने धर्म में दृढ़ रहेंगे। इन तीर्थकरों के निर्वाण पद प्राप्त कर चुकने पर भी उनके उपदेशों की गूंज सुनाई देती रहेगी। (२) मरत-एक सिंह के पीछे बहुत सारे हरिण चले जा रहे थे। भगवान ऋषभदेव-सिंह चौबीसवें तीर्थंकर का द्योतक है। हरिण उनके धर्मानुयायी हैं, जिनमें उस सिंह जैसी न तो शक्ति है, और न धर्मपरायणता । वे लोग तीर्थंकर के पद-चिन्हों का अनुकरण करना तो चाहेंगे, किन्तु कर नहीं पायेंगे। ऐसा भी होगा कि भटक कर पथभ्रष्ट हो जायें और मिथ्या प्ररूपणाएँ करें। (३) भरत-एक अश्व गज से भाराकान्त हो रहा था भगवान ऋषभदेव-अश्व मुनि का प्रतीक है । पंचमकाल में मुनिजन अपने पर ऐसी सत्ताओं का आरोप कर बैठेंगे जो उन्हें दबा देंगी। उस युग में साधु लोग शक्ति प्राप्त करने के इच्छुक हो जायेंगे और वही शक्ति (चमत्कार) उनको धर दबोचेगी। (४) भरत-अजा समूह सूखी पत्तियाँ चर रहा था । भगवान ऋषभदेव-इसके दो अर्थ हैं-पंचम काल में अतिवृष्टि और अनावृष्टि के कारण दुर्भिक्ष होंगे। अन्न की अत्यन्त अल्पता हो जायेगी। जिससे जन-साधारण अभक्ष्य और अनुपसेव्य पदार्थों का भक्षण करेंगे । स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थों के प्रयोग से भावी सन्तति अजा समूह की तरह निर्बल हो जायेगी। (५) भरत-हाथी की पीठ पर वानर बैठा था । भगवान ऋषभदेव-हाथी सत्ता का प्रतीक है। पंचम काल में सत्ता निम्नस्तरीय (पाशविक) व्यक्तियों के हाथ में चली जायेगी। राजसत्ता क्षत्रियों का साथ छोड़ देगी। धर्म-सत्ता मानवता से शून्य हो जायेगी। पाशविक वृत्तियाँ बढ़ेगी और सत्ता की बन्दर-बाँट होगी। राजनीति, समाज और धर्म में छल, दम्भ, चोरी, सीनाजोरी, स्वार्थ और वैमनस्य आदि अतिशय बढ़ जायेंगे । सत्ताधारियों में चरित्रवान व नीतिज्ञ व्यक्तियों की अल्पता हो जायेगी। (६) भरत-एक हंस अनगिन कौवों द्वारा मारा जा रहा था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212248
Book TitleSwapnashastra Ek Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherZ_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf
Publication Year
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & Science
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy