________________
Mo.
४६०
श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
(१) गज-चार दांत वाले हाथी को देखने का अर्थ है-चार प्रकार के धर्म की प्ररूपणा करेंगे (श्रावकश्राविका, श्रमण-श्रमणी)
(२) वृषभ-वृषभ की भांति धर्म की खेती (बोधि बीज का वपनकर) तथा धर्म-धुरा का वहन करेंगे।
(३) सिंह-सिंह की मांति पराक्रमी, काम विकार रूप उन्मत्त हाथियों को विदीर्ण करेंगे। विकारों के वनचर सदा ही उनसे दूर रहेंगे।
(४) लक्ष्मी-त्रिभुवन की समस्त लक्ष्मी-धर्मलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, यशलक्ष्मी उनका वरण करेंगी तथा वे महान् दानी होंगे। साथ ही विपुल ऐश्वर्य उनके चरणों में लोटेगा।
(५) माला-माला की भांति सदा प्रसन्न, प्रफुल्ल व सभी को कंठ व मस्तक में धारण योग्य-पूज्यभाव
युक्त होंगे।
(६) चन्द्र-चन्द्रमा की मांति संसार को शांतिदायक, अमृतवर्षी तथा भव्यात्मारूप कुमुदों को प्रफुल्लित करने वाले होंगे।
(७) सूर्य-सूर्य की भांति तेजस्वी व अज्ञान अंधकार नष्ट करेंगे। (८) ध्वजा-अपने कुल व धर्म-परम्परा की यश ध्वजा फहरायेगा।
(8) कलश-वंश या धर्मरूपी प्रासाद शिखर पर स्वर्ण कलश की भांति शोभित होंगे। या कुम्भ की तरह धर्म जल को धारण करने में समर्थ होंगे।
(११) पन-सरोवर-फूलों से खिले सरोवर की भाँति उनका धर्म-परिवार सदा फला-फूल खिला हुआ रहेगा और स्वर्ण कमल पर उनका आसन रहेगा।
(११) समुद्र--समुद्र की तरह अनन्त ज्ञान-दर्शन रूप मणिरत्नों के आगार होंगे, तथा उनकी गंभीरता, शक्तिमत्ता का कोई पार नहीं पा सकेगा । आत्म-गुणों की अक्षमता होगी।
(१२) विमान-विमानवासी देवों के भी पूज्य होंगे। (१३) रत्नराशि-संसार की समस्त धन-संपदा उनके चरणों में लोटेगी और वे उससे निस्पृह रहेंगे।
(१४) निषूम अग्नि-अग्नि की भांति अन्तर विकारों को भस्म करने में समर्थ होंगे, किन्तु फिर भी निर्धूम-निष्प्रकम्प व अक्षुब्ध रहेंगे । कठोर तपश्चरण व ध्यान साधना करते हुए भी बाहर में शांत, सौम्य व तेजयुक्त ही दोखेंगे।
दिगम्बर परम्परा के अनुसार तीर्थंकर की मातो १६ स्वप्न देखती है । उनमें १३ स्वप्न तो उक्त स्वप्नों के अनुसार ही है । आठवें स्वप्न, ध्वजा के स्थान पर मीनयुगल है और सिंहासन तथा नागभवन दो अधिक हैं । मीनयुगल देखने से सुखी होना- सुखी मत्स्ययुगेक्षणात् और सिंहासन देखने से भूमंडल की राज्यलक्ष्मी के अधिपति-सिंहासनेन साम्राज्यम् । तथा नागभवन देखने का तात्पर्य है जन्म से ही वह पुत्र अवधिज्ञान से युक्त होगा
फणीन्द्र भवनालोकात् सोऽवधिज्ञानलोचनः ।२५ इस प्रकार तीर्थंकरों की माताएं ये शुभ स्वप्न देखती हैं जो होने वाली सन्तान के और उनकी माता के अनन्त सौभाग्य तथा कल्याण के सूचक होते हैं।
श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार चक्रवति की माता भी इसी प्रकार के १४ शुभ स्वप्न देखती है, किंतु उनके अथं अधिकतर भौतिक समृद्धि सूचक ही माने जाते हैं। तीर्थकर जहाँ धर्म चक्रवर्ती होने से उनकी समृद्धि-धर्म लक्ष्मी रूप में मानी जाती है वहां चक्रवर्ती की लक्ष्मी प्रायः भौतिक समृद्धियों की ही सूचक है।।
दिगम्बर परम्परा के आचार्य जिनसेन ने भरत चक्रवर्ती की माता का नाम महादेवी यशस्वती बताया है और वे १४ स्वप्न के स्थान पर सिर्फ ६ स्वप्न ही देखती है ।२६ (१) सुमेरू पर्वत
(२) सूर्य (३) चन्द्रमा
(४) ग्रसी हुई पृथ्वी (५) हंस सहित सरोवर (६) चंचल लहरों वाला समुद्र
वासुदेव की माता उक्त १४ स्वप्नों में से कोई भी सात स्वप्न देखती है । बलदेव की माता ४ स्वप्न । माण्डलिक राजा तथा भावितात्मा अणगार की माता कोई भी एक शुभ स्वप्न देखती है जो आने वाली संतान के सौभाग्य का सूचक होता है।
०
०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org