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________________ स्वप्नशास्त्र : एक मीमांसा 466 + ++ ++ ++ ++ + ++ ++ + + + ++ ++ ++ ++ + ++ + ++ ++ + ++ ++ ++ M a + ++++++++++++ + + + + 25 महापुराण 121155 से 161 तथा उत्तरपुराण 74 / 258-256 26 महापुराण 15 / 123-126 27 चंद मंडल सरिसं पोलियं लहेसि 28 राया भविस्सई-उत्तरा० 3 टीका-अभिधान राजेन्द्र 7, पृ० 1002 26 महापुराण 41163-76 30 नवनीत (मार्च) 1955, 31 देखें-भगवती सूत्र श्री अमोलकऋषिजीकृत अनुवाद पृष्ठ 22-24-25 तथा जैन सिद्धान्त बोल संग्रह : भाग 3, पृष्ठ 226-230 32 आवश्यक मलयगिरिवृत्ति, पृ० 270 33 भगवती सूत्र 1636 सूत्र 580 में मोक्षगामी के चौदह स्वप्नों में इस स्वप्न का अर्थ बताया है-उसी भव में मोक्ष प्राप्ति होना। 34 अंगुत्तरनिकाय (3-240) तथा महावस्तु (2-136) में देखें 35 भगवतीसूत्र 16 / 6 सूत्र 580 MO-O-पुष्कर वाणी-0-0-0-0-or-o------------------------------ 4-0-0--0--0--0--0--0--0--0--0-0--0-0 अज्ञानी मनुष्य बालक के समान नादान है। बालक खिलौनों से खेलता है, वे ही उसे प्रिय लगते हैं / खिलौनों में रमकर वह अपनी पढ़ाई और माता-पिता तक को भूल जाता है। यही दशा अज्ञानी मनुष्य की है। वह संसार के नाशवान पदार्थों में इतना रम जाता है कि अपना स्वरूप भी मूल जाता है। प्रभु और गुरु को भी याद नहीं करता और सतत बालक की तरह इन्हीं भौतिक खिलौनों में मन लगाये रहता है। खिलौना टूटने-फूटने पर बालक रोता है। छीना जाने पर दुःखी होता है, ऐसा ही अज्ञान-मोहग्रस्त मनुष्य करता है, धन आदि वस्तुयें छूटने पर रोना-कलपना और उन्हें ही सब कुछ मान बैठना बिल्कुल बालक जैसी वृत्ति है। 4-0-0--0---0--0--0-0-0-0------ h-0-0-------------------------------------------------------------- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212248
Book TitleSwapnashastra Ek Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherZ_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf
Publication Year
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & Science
File Size2 MB
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