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संयोग से विज्ञान के इस दृष्टिकोण को भी हमने सापेक्षवाद उसने इन सभी को मिलाकर विश्व को सापेक्ष्य बना दिया है और नाम दे दिया है और इस रूप में वह स्याद्वाद का समानार्थी। इनकी वक्रता व साधनता-विरलता को ऊर्जा का, ऊर्जा को पदार्थों दिखाई देता है, पर ये दोनों दृष्टियां मूल में एक होकर भी विस्तार का, इस भरे पूरे संसार का रूप बताकर रूपाकार को सापेक्षता का में नितान्त भिन्न हैं। एरिंगटन के शब्दों में -
मूलाधार बना दिया है। bothi The relativelity theory of physics reduces Troजब संसार इस प्रकार का सापेक्ष दृश्य है तो द्रष्टा इसे कैसे everything to relation, that is to say. It is structure. समझे? ये दृश्य क्षणक्षण परिवर्तनशील तो हैं ही मनुष्य की पकड़ not material, which counts. The structure cannot से भी परे हैं । व्हाइटेद के शब्दों में you cannot recognise be built up without material, but the nature of the an event, because when it is gone, it is gone. BH material is of no importance.
घटना (परिवर्तन, परिणाम, विवत) को नहीं पहचान सकते क्यों मायभौतिकी का सापेक्षवाद सिद्धान्त हर चीज को सम्बन्ध
कि एक बार बीता कि वह सदा के लिए अतीत बन जाता है, (अपेक्षा) में बदल देता है, अर्थात् वहां महत्त्व पदार्थ का नहीं
हमारी पकड़ से बाहर पहुंच जाता है । और तो और हम परमाणु संरचना का है । यद्यपि संरचना, बिना पदार्थ के नहीं की जा
में इलेक्ट्रान की गति व स्थिति का पता नहीं लगा सकते क्योंकि सकती परन्तु वहां भी महत्त्व पदार्थ की प्रकृति का नहीं होता।
गति नापते हैं तो स्थिति बदल जाती है और स्थिति को छूते हैं तो
गति गड़बड़ा जाती है । यही दशा प्रकाश के तरंगमयरूप की है । केसिपस कायजर के अनुसार होने (अस्तित्व) का अर्थ है
क्वान्टम वाद के अनुसार प्रकाश कोरी तरंगों के रूप में नहीं आता सम्बद्ध या सापेक्ष होना । To be is to be related. प्वांकेट के
प्रकाश के पेकेट के रूप में आता है। अनुसार Science, in other words, in a system of relations. विज्ञान ने मूल तत्त्वोंकी संख्या भले ही १०५ तक
सदृश्य में द्रष्टा की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है | आइन्स्टाइन पहुंचा दी हो, पर ये १०० कौरव और ५ पांडवों की तरह
ने समय की सापेक्षता को सुख-दुःख की अनुभूति के अनुसार महाभारत के पात्र नहीं हैं, ये सब जिन अणुओं से बने हैं उनका
(उनकी अपेक्षासे) घटता-बढ़ता दिखाया है, पर विज्ञान तो निरपेक्ष अन्तिम रूप ऊर्जा है । हर पदार्थ न केवल ऊर्जा है अपितु हर
तथ्यों तक पहुंचने का प्रयास करता है । पर सापेक्षता तो यहां भी पदार्थ को ऊर्जा में बदला जा सकता है और हर प्रकार की ऊर्जा
पीछा नहीं छोड़ती । समय की सापेक्षता व्यक्तिगत ही नहीं का पदाथ में रूपान्तरित किया जा सकता है. यहां तक कि जिन पदाथगत भा ह, मानसिक ही नहीं भौतिक भी है. इस तथ्य को ऊष्मा, प्रकाश, विद्युत-चुम्बकत्व आदि को हम अलग-अलग देखते
इस बात से समझा जा सकता है कि अपनी गति में निरपेक्ष प्रकाश हैं वे भी एक दूसरे में रूपान्तरित किये जा सकते हैं । संसार ऊर्जा
(किरणे) सूर्य से हम तक तत्काल नहीं पहुंचती, उन्हें पृथ्वी तक का रूपान्तरण है पर न तो ऊर्जा नये सिरेसे बनाई जा सकती है न
उतरने में ८ मिनट से अधिक लगते हैं । कुछ आकाशगंगाओं या विद्यमान ऊर्जा का कभी किसी प्रकार अन्त होता है । अतः यहां
तारों से हम तक पहुंचने में उसे लाखों वर्ष लग जाते हैं । इसका भी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य लागू होता है कि पदार्थ में परिवर्तन होता है
अर्थ यह हुआ कि उनका जो रूप हम आज देखते हैं वह लाखों पर कुछ मौलिक तत्त्व शाश्वत बना रहता है।
वर्ष पहले का है । इस बीच वे पदार्थ नष्ट भी हो गये तब भी वे
उसी क्रम में हमें दिखाई देते रहेंगे और दूरी के अनुपात में इतने हमारी सामान्य दृष्टि में तो पदार्थ को रहने के लिए स्थान
समयतक उनका अस्तित्व बना रहेगा | इस प्रकार समय स्थान या चाहिए और बदलने के लिए समय, पर वैज्ञानिक सापेक्षवाद ने तो
दूरी के सापेक्ष है, समकालीनता जैसी वस्तु नहीं होती वैसे ही जैसे इन दोनों का मिश्रण बना दिया है । मिंकोवस्की के शब्दों में
पदार्थ की स्वतन्त्रता सत्ता है वह दूसरों से तदाकार भले ही हो Space by itself and time by itself. or doomed तादात्य नहीं होती । इस तादात्य या आइडेन्टिटीने ही अपेक्षा का to fade away into more shadows, and only a kind उपहास किया है जिसकी विस्थापना का प्रयास वर्तमान विज्ञान का of union of the two will proserve an independent लक्ष्य है। reality.
इस क्षेत्र में सबसे बड़ी बाधा भाषा द्वारा उपस्थित की जाती अकेले आकाश या दिक् और अकेले काल को परछाइयों में है। संसार को जानने का माध्यम हमारा मन तो है ही, पर बिना बदलना होगा, स्वतन्त्र सत्ता तो इनके एक प्रकार के संयोग की भाषा के वह लंगड़ा है । पर भाषा का सहारा लेते ही वह इतना होगी। जिसे दिक्काल कहा जा सकता है। परन्त आइन्स्टाइन ने पराधीन हो जाता है कि उसे बार-बार सावधान करना पड़ता है कि तो इस मिश्रण के मूलाधार ईश्वर को ही गायब कर दिया है | For भाषा या शब्द संसार या पदार्थ नहीं Einsstein, 'space-time' is, semantically, 'fulness', 'not हैं | आम शब्द आम पदार्थ का emptiness', and, in his language. he does not need स्थान नहीं ले सकता । कोई भी any term like 'ether' of astins 'plenum' 'structurally. शब्द आपका पूरा या यथार्थ वर्णन covers the ground. आइन्स्टाइन के लिए दिक्काल का अर्थ है नहीं कर सकते । एडिंगटन के परिपूर्णता, रिक्तता (शून्य) नहीं परिपूर्णता की संरचना ही उसके अनुसार - मूलाधार का काम दे देती है अतः उसे न ईश्वर की आवश्यकता है ।
We cannot describe न दिशा के तीन और काल के एक अलग-अलग आयामों की ।
substance, we can only
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श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनन्दन ग्रंथ / विश्लेषण Jain Education International
सभी कला में श्रेष्ठ है, जीवन कलाविचार जयन्तसेन रहे सदा, उन का शुध्दाचार |Lrary.org
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