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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
सुमन वचनामृत गुरु
प्रस्तुति : श्रीमती विजया कोटेचा, अम्बत्तूर, चेन्नई ★ "गुरु" सदा ही उपदेशक होते हैं। उनके उपदेश * सद्गुरु की संगति/उपासना से ही हमें मोक्ष सिद्धि की महति आवश्यकता है। उनके उपदेश से ही “जिन" का मार्ग मिल सकता है। का स्वरूप ज्ञात हो सकता है। यदि उनके उपदेश का हमें
* सद्गुरु से ही आत्म-परमात्म, स्व-पर, जड़-चेतन निमित्त न मिले तो फिर “उपकार" का क्या अर्थ रह का अलौकिक ज्ञान प्राप्त हो सकता है। किन्तु यह तभी जाएगा? उपदेश से ही “जिन भगवान" का स्वरूप अर्थात् प्राप्त होता है जब व्यक्ति/जिज्ञास साधक अपने पक्ष, “स्व-पर" का अर्थ-परमार्थ समझा जा सकता है।
विचार मोह, परम्परागत मान्यता, पूर्वाग्रह को छोड़ देता ★ गुरु शब्द एक व्यापक अर्थ को लिए हुए है। वह है, अन्यथा नहीं। उदार है, सार्वभौम है। मार्ग दर्शक के रूप में इस शब्द को
* गुरु द्वारा प्रदत्त दृष्टि ही भगवान् से साक्षात्कार सर्वत्र सम्मान दिया गया है। धर्म क्षेत्र के अतिरिक्त
कराने में सक्षम है। विद्या, कला, शिल्प आदि सभी क्षेत्रों में भी गुरु का स्थान सर्वोपरि है।
____ * जिसमें ज्ञान, चारित्र, सन्तोष, शील, आदि गुण
विद्यमान हो, ऐसे गीतार्थ पुरुष को 'सद्गुरु' कहते हैं। ___★ वस्तुस्थिति / स्वरूप को न समझने, ज्ञान नहीं होने के कारण ही व्यक्ति ने अनंत दुःख को प्राप्त किया
हृदय परिवर्तन की प्रक्रिया सद्गुरु के बिना उपलब्ध
नहीं हो सकती। है। किन्तु जब सद्गुरु-चरण की शरण ली तो उसे वस्तु । स्वरूप/स्व-पर को जानने की दृष्टि मिली।
___★ गुरुजन कष्टसहिष्णु होते हैं। उनको कष्ट सहने ★ गुरू वही होता है जो हमारा मार्ग बदल दे, जो
का अभ्यास होता है, इसलिये वे दूसरों को भी वही शिक्षा हमारे जीवन में आमूलचल परिवर्तन ला दे।
देकर उनके परीषह-तप्त मन को प्रशांत करते रहते हैं। * सद्गुरु की चरण उपासना, हमारे लिये बहुत बड़ा
हम गुरु उसे ही स्वीकार करें जो हमारे मन को आलंबन है, सहारा है, क्योंकि गुरु मार्गदर्शक होते हैं।
बदल दे, वासना एवं कषाय की ग्रन्थियों को खोल दे, जो उनके पथ निर्देशन में हम चलते रहें तो पथ-भ्रष्ट नहीं होते
हमें एक दिशा दे। जो हमारे जीवन को मोड़ देता है वही तथा हमें वस्तु स्वरूप का ज्ञान भी प्राप्त होता है।
सच्चा 'गुरु' होता है। ___★ जिस प्रकार सूर्योदय होने / प्रकाश होने पर भी
* आत्मज्ञान, समदर्शिता, उदयक्रम से विचरण, अपूर्व आँख के बिना नहीं देखा जा सकता, इसी प्रकार कोई
वाणी, परमश्रुत - ये पांच लक्षण ‘सद्गुरु' में होते हैं। कितना ही चतुर क्यों न हो, निर्देशक/गुरु के अभाव में * गुरु बांटता नहीं, गुरू तोड़ता नहीं, गुरू तो मनों तत्त्वदर्शन प्राप्त नहीं कर सकता।
को जोड़ता है।
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सुमन वचनामृत
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