SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साहित्यिक उन्नयन में भट्टारकों का अवदान २१७ १७ वीं शताब्दी के भट्टारक भ० रत्नकोति-संवत् १६०० से १६५६-रचनाए-(१)नेमिनाथ फागु, (२) महावीर गीत, (३) नेमिनाथ का बारहमासा, (४) सिद्धधूल, (५) बलिभद्रनी विनती, (६) नेमिनाथ विनती तथा३८ पदों की खोज की जा चुकी है। __ भ० ललितकीति-सम्वत् १६०३ से १६२२-रचनाए-सस्कृत में-(१) अक्षय दशमी कथा, (२) अनन्तव्रत कथा, (३) आकाशपंचमी कथा, (४) एकावली व्रत कथा, (५) कमेनिर्जरा व्रत कथा, (६) कांजिका व्रत कथा, (७) जिनगुण सम्पत्ति कथा, (८) जिनरात्रि व्रत कथा, (९) ज्येष्ठ जिनवर कथा, (१०) दशपरमस्नान व्रत कथा. (११) दशलाक्षणिक कथा, (१२) द्वादशव्रत कथा, (१३) धनकलश कथा, (१४) पुष्पाञ्जलि व्रत कथा, (१५) रक्षाविधान कथा. (१६) रत्नत्रय व्रत कथा, (१७) रोहिणी व्रत कथा, (१८) षट्रस कथा. (१९) षोडश कारण कथा. (२०) सिद्धचक्रपूजा। भ० चन्द्रकीति-सम्बत् १६००-१६६०-रचनाए-(१) सोलहकारण रास, (२) जयकुमाराख्यान. (३) चारित्र चुनड़ी, (४) चौरासी लाख जीवनयोनी विनती। इनके अतिरिक्त करीब ४० पद भी उपलब्ध हुए हैं। भ० अभयचन्द्र–सम्वत् १६८५-१७२१-अब तक इनकी १० रचनाए व २० पद प्राप्त हो चुके हैं। भ० महीचन्द-रचनाए-(१)-नेमिनाथ समवसरण विधि, (२) आदिनाथ विनती (३) आदित्यव्रत कथा, (४) लवांकुश छप्पय आदि । भ० देवेन्द्रकीति --सम्वत् १६६२-१६९० रचनाए-इनके अनेक पद उपलब्ध होते हैं। भ० भवरेन्द्रकीति-सम्वत् १६९१-१७२२-रचनाए-(१) तीर्थंकर चौबीसना छप्पय । इसी प्रकार १७ वीं शताब्दी के अन्य भट्टारकों में भ० कुमुदचन्द्र, भ० अभयनंदि, भ० रत्नचन्द्र, भ० कल्याणकीर्ति, भ० महीचन्द्र, भ० सकलभूषण आदि-आदि के नाम लिए जा सकते हैं इन्होंने सैकड़ों ग्रन्थों की रचनाएं की हैं जिनका यहां नामोल्लेख करना भी कठिन कार्य है। १८ वीं शताब्दी के प्रमुख भट्टारक १८ वीं शताब्दी के प्रमुख भट्टारकों में-(१) भ० क्षेमकीर्ति-१७२०-१७५७, (२) भ० शुभचन्द्र [द्वितीय] १७२५-१७४८, (३) भ० रतनचन्द्र द्वितीय, (४) भ० नरेन्द्र कीर्ति, (५. भ. सुरेन्द्रकीति-१७२२-१७३३. (६) भ० जगतकीर्ति-१७३३-१७७१, (७) भ० देवेन्द्रकीर्ति-१७७१. १७९२, (८) भ० महेन्द्रकीर्ति१७९२-१८१५-के नाम गिनाये जा सकते हैं। १९वीं व २०वीं शताब्दी के भट्टारकों में--भ० क्षेमेन्द्रकीर्ति . १८१५-१८२२, भ० सुरेन्द्रकीति - १८२२-१८५२. भ० सुखेन्द्रकीर्ति, भ० चारुकीर्ति, भ० लक्ष्मीसेन. आदि-आदि प्रमुख हैं। सम्वत् १३५१ से २००० तक इन भट्टारकों का कभी उत्थान हुआ तो कभी वे पतन की ओर अग्रसर हुए लेकिन फिर भी ये समाज के आवश्यक अंग माने जाते रहे । यद्यपि दिगम्बर जैन समाज में तेरापंथ के उदय से इन भटटारकों पर विद्वानों द्वारा कडे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212200
Book TitleSahityik Unnayan me Bhattarako ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP C Jain
PublisherZ_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf
Publication Year1994
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size435 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy