SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साहित्यिक उन्नयन में भट्टारकों का अवदान २१५ उपदेश दिया। शांत एवं आध्यात्मिक रस के अतिरिक्त इन्होंने वीर, शृङ्गार एवं अन्य रसों में खूब साहित्य सृजन किया । महाकवि वीर द्वारा रचित "जम्मूस्वामीचरित" (१०७६) एवं भट्टारक रत्नकीर्ति द्वारा वीरविलास फाग इसी कोटि की रचनाएँ हैं । रसों के अतिरिक्त छन्दों में जितनी विविधता इन भट्टारकों की रचनाओं में मिलती हैं उतनी अन्यत्र नहीं । इन भट्टारकों की हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती भाषा की रचनाएँ विविध छन्दों में आप्लावित हैं । मेरा तो विश्वास है कि भारतीय साहित्य की जितनी अधिक सेवा एवं सुरक्षा इन जैन भट्टारकों ने की है शायद ही उतनी अधिक सेवा किसी अन्य सम्प्रदाय अथवा धर्म के साधु वर्ग द्वारा की गई है । इन जैन भट्टारकों ने तो विविध भाषाओं में सैकड़ों-हजारों कृतियों का सृजन किया ही किन्तु अपने पूर्ववर्ती आचार्यों, साधुओं, कवियों एवं लेखकों की रचनाओं का भी बड़े प्रेम, श्रद्धा एवं उत्साह से संग्रह किया। एक-एक ग्रन्थ की कितनी ही प्रतियाँ लिखवाकर ग्रन्थ भण्डारों में विराजमान की और जनता को उन्हें पढ़ने एवं स्वाध्याय के लिए प्रोत्साहित किया । भारतवर्ष के हजारों हस्तलिखित ग्रन्थ भण्डार उनकी साहित्यिक सेवा के ज्वलंत उदाहरण हैं । ये जैन भट्टारक, साहित्य-संग्रह की दृष्टि से कभी जातिवाद एवं सम्प्रदाय के चक्कर में नहीं पड़े किन्तु जहाँ से उन्हें अच्छा उपदेशात्मक एवं कल्याणकारी साहित्य उपलब्ध हुआ वहीं से उसका संग्रह करके शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत किया । साहित्य संग्रह की दृष्टि से इन्होंने स्थान-स्थान पर ग्रन्थ भण्डार स्थापित किये । इन्हीं भट्टारकों की साहित्यिक सेवा के परिणामस्वरूप भारतवर्ष के जैन ग्रन्थ भण्डारों में ३५ लाख से अधिक हस्तलिखित ग्रन्थ अब भी उपलब्ध होते हैं । ग्रंथ संग्रह के अतिरिक्त इन्होंने जैनेतर विद्वानों द्वारा लिखित काव्यों एवं अन्य गन्थो पर टीकाएं लिखकर उनके पठन-पाठन में सहायता पहुँचायी है । १४वीं शताब्दी के भट्टारक भ० प्रभाचन्द्र - संवत् १३१४- १४०८ - वे प्रमेयकमलमार्त्तण्ड, महापुराण, परमात्मप्रकाश, समयसार, तत्त्वार्थसूत्र आदि अनेक ग्रन्थों के व्याख्याता थे । भ० पद्मनन्दि - सं० १३८५- १४५० – (१) पद्मनन्दि श्रावकाचार, (२) अनन्त व्रत कथा, (३) द्वादशव्रतोद्यापनपूजा, (४) पार्श्वनाथस्तोत्र, (५) नन्दीश्वर पंक्तिपूजा, (६) लक्ष्मीस्तोत्र, (७) वीतराग स्तोत्र, (८) श्रावकाचार टीका, (९) देवशास्त्र गुरु पूजा, (१०) रत्नत्रय पूजा, (११) भावना चौतीसी (१२) परमात्मराज स्तोत्र, (१३) सरस्वती पूजा, (१४) सिद्धपूजा, (१५) शान्तिनाथ स्तवन । इनकी उपरोक्त सभी रचनायें संस्कृत भाषा में निबद्ध हैं, श्रावकाचार एवं उसकी टीका को छोड़कर बाकी सभी रचनायें पूजास्तोत्र एवं कथापरक हैं । १५वीं शताब्दी के भट्टारक -- भ० सकलकीर्ति-संवत् १४५६-१४९९ : संस्कृत रचनाएं - ( १ ) मूलाचारप्रदीप, (२) प्रश्नोत्तरपासकाचार, (३) आदिपुराण, (४) उत्तरपुराण, (५) शान्तिनाथचरित्र, (६) वर्द्धमानचरित्र, (७) मल्लिनाथचरित्र, (८) यशोधरचरित्र, (९) धन्यकुमार चरित्र, (१०) सुकुमाल - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212200
Book TitleSahityik Unnayan me Bhattarako ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP C Jain
PublisherZ_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf
Publication Year1994
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size435 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy