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(४) दूसरे के क्रोध को अपने कर्म का परिणाम सत्य का अर्थ है-असत्य का परित्याग । सत्य का समझना एवं
अर्थ सुनृत बताया गया है। सुनृत का अर्थ है(५) क्षमा से उत्पन्न गुणों का विचार करना। वह सत्य जो प्रिय एवं हितकारी हो । उत्तराध्ययन इन सब भावों से सुशोभित क्षमा के द्वारा मन
सूत्र में क्रोध, लोभ, हास्य, भय एवं प्रमाद आदि ॐ) का संयम होता है, अहिंसा की भावना जागृत होती
इन झूठ बोलने के कारणों के मौजद रहने पर भी है । अतः जैनाचार्यों ने इसको उत्तम धर्म की संज्ञा
मन-वचन-काय तथा कृत-कारि प्रदान की है।
कभी भी झूठ न बोलकर सावधानीपूर्वक हितकारी, AL
सार्थक और प्रिय वचनों को ही बोलना सत्य कहा 12 (२) उत्तम मार्दव-मार्दव का अर्थ है-मृदुता, गया है। कोमलता, विनयभाव, मान का त्याग । कुल, रूप, जाति, ऐश्वर्य, विज्ञान, तप, बल और शरीर आदि
इसी प्रकार निरर्थक और अहितकर बोलाकी किचित् विशिष्टता के कारण आत्मस्वरूप को
गया वचन सत्य होने पर भी त्याज्य है। जैनधर्म
दर्शन में सत्य की पांच भावनाओं का उल्लेख किया न भूलना एवं इनका मदन चढ़ने देना ही उत्तम मार्दव है । अहंकार दोष है और स्वाभिमान गुण ।
गया है जो इस प्रकार हैअहंकार में दूसरे का तिरस्कार छिपा है और स्वा- (१) वाणी विवेक, (२) क्रोध त्याग, (३) लोभ भिमान में दूसरे के मान का सम्मान है। अतः त्याग (४) भय त्याग और (५) हास्य त्याग । अभिमान न करना एवं मन में हमेशा मृदुभाव (६) उत्तम संयम-संयम मानवीय जीवन का रखना उत्तम मार्दव के अन्तर्गत आता है। एक अति महत्वपूर्ण प्रत्यय है । सामान्य रूप से मन,
(३) उत्तम आर्जब--मन,वचन और काय की वचन और काय का नियमन करना अर्थात् विचार, कुटिलता को छोडना-उत्तम आर्जव कहलाता है वाणी, गति और स्थिति आदि में सावधानी करना जो विचार हृदय में स्थित है. वही वचन में रखता संयम है। गोम्मटसार में संयम का स्वरूप स्पष्ट है तथा वही बाहर फलता है अर्थात्-शरीर से भी करते हुए बताया गया हैतदनुसार कार्य किया जाता है, यह आर्जव है। व्रतप्तमितिकषायाणां दण्डानां तपेन्द्रियाणां पंचानाम् । दूसरे शब्दों में मायाचारी परिणामों को छोडकर धारणपालन निग्रहत्यागजण: संयमी भणितः ॥ शुद्ध हृदय से चरित्र का पालन करना उत्तम आर्जव अर्थात्-अहिंसा, अचौर्य, सत्य, शील (ब्रह्मधर्म है । जो मन में हो, वही वचन में और तदनु- चर्य),अपरिग्रह इन पांच महाव्रतों का धारण करना सार ही शरीर की चेष्टा हो, जीवन व्यवहार में ईर्या भाषा एषणा आदान निक्षेपण उत्सर्ग इन एकरूपता हो । इस प्रकार मायाचार का त्याग, पांच समितियों का पालना, क्रोधादि चार कषायों ऋजुता और सरलता ही उत्तम आर्जव धर्म है। का निग्रह करना, मन, वचन, कायरूप दण्ड का
(४) उत्तम शौच-सुचिता, पवित्रता, निर्लोभ त्याग करना तथा पाँच इन्द्रियों का जय, इसको वृत्ति, प्रलोभन में नहीं फंसना आदि उत्तम शौच संयम कहते हैं। धर्म माना गया है । लोभादि कषायों का परित्याग जैनाचार्यों ने संयम के निम्नलिखित १७ भेदों कर पाप वृत्तियों में मन न लगाना उत्तम शौच की चर्चा की है- पाँच अव्रतों (हिंसा,झूठ, चोरी, कहलाता है । अर्थात् यह पूर्ण निर्लोभता की स्थिति अब्रह्म और परिग्रह) का त्याग । पांच इन्द्रियों
(स्पर्शन, रसन, घ्राण, श्रोत्र और चक्ष ) का निग्रह, (५) उत्तम सत्य-भारतीय दर्शन के अनुसार चार कषायों (क्रोध, मान, माया और लोभ) का तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन
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0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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