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________________ साधना की सप्राणता : कायोत्सर्ग / २८५ अभिभव कायोत्सर्ग का काल जघन्य अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट एक वर्ष का है । बाहुबली ने एक वर्ष तक कायोत्सर्ग किया था।३० दोषविशुद्धि के लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता है उस कायोत्सर्ग के पांच प्रकार हैं, वे ये हैं-१. देवसिक कायोत्सर्ग २. रात्रिक कायोत्सर्ग ३. पाक्षिक कायोत्सर्ग । ४. चातुर्मासिक कायोत्सर्ग । ५. सांवत्सरिक कायोत्सर्ग। षडावश्यक में जो कायोत्सर्ग का उल्लेख है उसमें चतुर्विशतिस्तव अर्थात चौबीस तीर्थंकरों का ध्यान किया जाता है । चतुर्विशतिस्तव के सात श्लोक और अट्ठाईस चरण हैं। एक उच्छ्वास में एक चरण का ध्यान किया जाता है। इस प्रकार एक चतुर्विंशतिस्तव का ध्यान पच्चीस उच्छ्वासों में सम्पन्न हो जाता है। जैसे प्रथम सांस लेते समय मन में "लोगस्स उज्जोयगरे" कहा जायेगा। और सांस को छोड़ते समय "धम्मतित्थयरे जिणे।" द्वितीय सांस लेते समय "अरिहंते कित्तइस्सं" और सांस छोड़ते समय "चउवीसं पि केवली" कहा जायेगा। इस प्रकार चतुर्विशतिस्तव का कायोत्सर्ग होता है। कायोत्सर्ग का ध्येय परिमाण और कालमान इस प्रकार हैचतुर्विंशतिस्तव श्लोक चरण उच्छ्वास १. देवसिक-४ १०० २. रायिक-२ १२३ ३. पाक्षिक-१२ ३०० ३०० ४. चातुर्मासिक-१६ ४०० ४०० ५. सांवत्सरिक-२० ५०० दिगम्बर परम्परा के प्रभावक प्राचार्य श्री अमितगति ने विधान किया है कि देवसिक कायोत्सर्ग में एक सौ पाठ और रात्रि के कायोत्सर्ग में चउपन उच्छ्वासों का ध्यान करना चाहिए। सत्तावीस उच्छ्वासों में नमस्कार मन्त्र की नौ प्रावत्तियाँ हो जाती हैं। क्योंकि तीन उच्छ्वासों में एक नमस्कार महामन्त्र पर ध्यान किया जाता है । "नमो अरिहन्ताणं" "नमो सिद्धाणं" एक उच्छ्वास में "नमो पायरियाणं" "नमो उवज्झायाणं" दूसरे उच्छ्वास में "नमो लोए सव्वसाहूणं" का तीसरे उच्छ्वास में ध्यान किया जाता है। २५ ०.० १०० १२५ ३०. (क) तत्र चेष्टाकायोत्सर्गोऽष्टपंचविंशति सप्तविंशति त्रिशति अष्टोत्तर सहस्रोच्छवासान यावद् भवति । अभिभव-कायोत्सर्गस्तु-मुहूर्तादारभ्य संवत्सरं यावद् बाहुबलिरिव भवति । -योगशास्त्र ३, पत्र २५० (ख) मूलाराधना २,११६ विजयोदया वृत्ति । ३१. योगशास्त्र-३॥ ३२. मूलाराधना-विजयोदया वृत्ति १, ११६ ३३. अष्टोत्तरशतोच्छ्वासः कायोत्सर्गः प्रतिक्रमः । सान्ध्ये प्रभातिके वार्धमन्यस्तत् सप्तविंशतिः । सप्तविंशतिरुच्छ्वासाः संसारोन्मूलनक्षमाः । सन्ति नमस्कारे नवधा चिन्तिते सति ।। - अमितगति श्रावकाचार ८, श्लोक-६८, ६९ धम्मो दीवो संसार समुद्र में Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.212188
Book TitleSadhna ki Sapranta Kayotsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherZ_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf
Publication Year1988
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationArticle & Anekantvad
File Size2 MB
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