________________ AmmmmmmmwaIIIIIIIIIIIIIIIIIIIMALAAAAAAAAAAAAAmwwRIMARIHARANImmmmmmmmmmmmmmmm-[61] की। दूसरे देहरेमें मुनिसुव्रतनाथजी की पूजा की। वीर विहारकी दक्षिण ओर 11 गणधरोंके चरण हैं वहां पूजा की / कई भूमिगृहोंमें कई काउस ग्गिए स्वामी थे। ईसर देहरेके सामने धन्ना-शालिभद्रकी ध्यानस्थ बड़ी प्रतिमाओंकी पूजा करके तलहटीमें उतरे, मिश्रीकी परब दी। गुणशील चैत्य, शालिभद्रका निर्माल्य कूप, रोहणयाकी गुफा आदि स्थान बड़े हर्षोत्साह से देखे। विपुलगिरि पर चतुर्विशति जिनालयके दर्शन किये। अजितनाथ, चन्द्रप्रभु, पार्श्वनाथ और पद्मप्रभके चार मन्दिरों में पूजा की। उसके पास ही जंबू, मेधकुमार, खंधक आदि मुनियों के चरण हैं। तीसरे पहाड़ उदयगिरि पर चौमुख मन्दिर के दर्शन किये। फिर रत्नगिरि पर ऋषभदेव और चौबीस जिनके मन्दिरोंको वंदन कर, स्वर्णगिरिके देवविमान सदृश जिनालयकी पूजा की। राजगृही नगरीमें जिनेश्वरके तीन मन्दिरोंकी पूजा की। संघपति कुअरपालकी राणी अमृतदे और सोनपालकी राणी काश्मीरदे थी सो यहां संघपतिने छठी कड़ाही दी। गांधी वंशके साह जटमल वच्छा हीराने भी सुयश कमाया। राजगृहसे संघ वड़गाम आया। यहां ऋषभ जिनालयके दर्शन किये। शास्त्रप्रसिद्ध नालंदा पाड़ा यही है जहां त्रिशलानंदन महावीर प्रभु ने 14 चोमासे किये थे। यहांसे दक्षिणकी तरफ 1500 तापसोंकी केवलज्ञान-भूमि है, चार कोनोंके चोतरोंमें 2 गौतमपादुका हैं। यहां पूजन कर अनुक्रमसे पटना पहुंचे। सुन्दर बगीचेमें डेरा किया। साह चांपसीने प्रथम कहाड़ी दी, महिमके सेठ उदयकरणने दूसरी, महाराज कल्याणजीने तीसरी, श्री वच्छ भोजा साहा जटमलने चौथी कड़ाही दी, कपूराके पुत्र पचू सचू साहने पांचवी कड़ाही दी, सहिजादपुर निवासी साह सीचाने छठी, तेजमाल बरढ़ीया ने सातवी, लाहीरी साह सुखमल ने आठवीं कड़ाही दी। संघ वहांसे चला। अनुक्रमसे गोमतीके तट पर पहुंचे, स्नान करके भूदेवको दान दिया। जम्मणपुर पाए, डेरा दिया, भूमिगृहकी 41 जिन-प्रतिमाओंका वंदन किया। साह चौथा साह, विमलदास साह रेखाने संघकी भक्ति की। वहांसे मार्गके चैत्योंको वंदन करते हए अयोध्या नगर पहंचे। ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनन्दन, सुमतिनाथ, और अनन्तनाथ तीर्थंकरोंकी कल्याणक भूमिमें पांच थभों का पूजन किया, सातवीं कड़ाही की। अयोध्यासे रत्नपुरी पाए, धर्मनाथ प्रभुको वंदन किया। इस विशाल संघके साथ कितने ही नामांकित व्यक्ति थे जिनमेंसे थोड़े नाम रासकारने निम्नोक्त दिये हैं। संघपति कुअरपालके पुत्र संघराज, चतुर्भुज साह, धनपाल, सुन्दरदास, शूरदास, शिवदास, जेठमल, पदमसी, चम्मासाह, छांगराज, चौधरी दरगू, साह वच्छा हीरा, साह भोजा, राजपाल, सुन्दरदास, साह रेखा, साह श्रीवच्छ, जटमल, ऋषभदास, वर्द्धमान, पचू सच, कटारु, साह ताराचन्द, मेहता वर्द्धन, सुख पंसारी नरसिंह, सोहिल्ला, मेघराज, कल्याण, काल, थानसिंग, ताराचन्द, मुलदास, हांसा, लीलापति इत्यादि। अनुक्रमसे चलते हुए आगरा पहुंचे, सानन्द यात्रा संपन्न कर लौटनेसे सबको अपार हर्ष हुआ। संघपतिने आठवीं कड़ाही की। समस्त साधुनोंको वस्त्रादिसे प्रतिलाभा। याचकों को दो हजार घोड़े और तैतीस हाथी दान दिये। स्थानीय संघने सुन्दर स्वागत कर संघपतिको मोतियोंसे वधाया। सम्राट जहांगीर सम्मानित संघपतिने गजारूढ होकर नगरमें प्रवेश किया। संघपतिने सं. 1657 में शत्रुजयका संघ निकाला, बहुतसी जिनप्रतिमाओं की स्थापना की। बड़े-बड़े जिनालय कराये / सप्तक्षेत्र में द्रव्य व्यय कर चतुर्विध संघ की भक्ति की। बड़े-बड़े धर्मकार्य किये / सं. 1670 में गिरिराज सम्मेतशिखरकी यात्रा संघ सहित की, जिसके वर्णनस्वरूप यह रास कवि जसकीर्ति मुनि ने बनाकर चार खंडों में पूर्ण किया। શ્રી આર્ય કલ્યાણગૌતમ સ્મૃતિગ્રંથ 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org