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________________ 104 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड mor e ................... . ... ................... .................... अंधेरा / एक तरह से आजादी से पहले की निःस्वार्थ सेवाभाव की वह सुगन्ध ही गायब हो गई। सामाजिक कुप्रथा. कुरीतियों, रुढ़ियों के विरुद्ध जागरण काल में छिड़ी आदोलनपूर्ण सामाजिक सेवाएँ काफी हद तक पश्चिमी 'वीमेन्सलिब" की बन्द गली में भटक गई / यद्यपि सेका मूर्ति मदर टेरेसा, भूखों के लिए झूठन एकत्र करती बम्बाई की मेहता बहन जैसी स्वैच्छिक सेवाएँ अभी भी विद्यमान हैं, मगर ऐसे रूपों का उद्गम वही पिछला काल खण्ड है। पिछले डेढ़ दशक में राष्ट्रीय चरित्र पतन का सीधा प्रभाव समाज सेवाओं ने भुगता है समाज-सेवक और समाज सेविका शब्द का अवमूल्यन ही होता गया है। वैसे आज पुलिस, रेल्वे, टेलीफोन, विमान सेवाओं, सेल्सगर्ल, निजी सचिव, शिक्षा व राजस्व, औद्योगिकी, यान्त्रिकी आदि सभी सेवाओं में नारी है। समाजकल्याणकारी राज्य और ग्राम विकास की अवधारणाओं ने ग्रामसेवक के साथ ग्राम-सेविकाएँ भी दी हैं पर दुखती रग वही है कि क्या स्वतन्त्रता के तीन दशकों में भी हमारे समाज में ऐसा वातावरण बन सका है जहाँ नारी बिना शोषित हुए अपनी सेवाएं दे सके ? उसे स्त्रीत्व की रक्षा का अभय, सुरक्षा एवं उचित प्रतिदान के साथ अपना कार्य करने की छूट, खुलापन नसीब हो ? विभिन्न समाजसेवाओं में लगी, यहाँ तक कि आपादसेवामूर्ति अस्पताल की नसों से भी कितनी और कैसी-कैसी सेवाएं ली जाती हैं ये अब अखबारों की सुखियाँ हैं, आँखों देखी हैं, अज्ञात तथ्य नहीं।। हमारे समाज के अधीश नारी और नारी की आधी कार्यशक्ति इसी वातावरण और सुरक्षा की चिन्ता में बन्द रह जाती है, मिट जाती है कि महिला होकर अमुक-अमुक जगह कैसे जायँ, अमुक कार्य कैसे करें ? असामाजिक तत्त्वों का निरन्तर भय आज भी नारी द्वारा सेवा के अवसर और क्षेत्र संकुचित किये हैं। अभी टेलीफोन आपरेटरों ने मांग की, उन्हें रात की ड्यूटी न दी जाय, क्यों ? महिला डाक्टर द्वार पर तख्ती लगाती है 6 बजे के बाद विजिट संभव नही, क्यों ? ग्राम-सेविकाएं शिकायत करती हैं कि ग्राम सरपंच उन्हें निरीक्षण के लिये आये अधिकारियों की मेज पर परोस देते हैं, नहीं तो तरह-तरह की धमकियाँ, क्यों? गोंडा की निरीह नसें अपने आवास में गुण्डों से पीड़ित अपमानित होती है, क्यों? मंदा के आंसू थमने का नाम नहीं लेते-“बीबीजी, अब हम काम ना करी, हमार भी इज्जत आबरू हैसाहब.......?" नारी समाज सेवा के क्षेत्र से ये चीखते-चीरते घटना प्रमाण अनायास ही कलम की नोंक पर उतर आये हैं, ये और इन जैसी बहुत सी आये दिन होती अनपेक्षित घटनाएँ क्या घोषित करती हैं कि अभी भी हमारे समाज में सामन्तयुगीन संस्कारों के प्रेत जिन्दा हैं, कि अभी भी नारी भोग-मनोरंजन की वस्तु, यौनाकर्षण की छमछम गुड़िया है कि हमारा समाज अभी भी इस योग्य नहीं कि वह सेवाशक्ति की अजस्र स्रोत नारी की क्षमता का पूरा उपयोग कर सके, कि हमारे समाज ने सेवा की जागती मशाल, सामाजिक स्वास्थ्य की एक्सरे और कोबाल्ट किरण नारी से अपने देह मन प्राण को, गांव, नगर, राष्ट्र को रोगमुक्त कर स्वस्थ सबल नहीं बनाया, प्रकाशित नहीं किया, कालिख ही बटोरी है। हमारा समाज ऐसा कब होगा? क्या सचमुच हम ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते कि नारी, नारी रूप में अक्ष ण्ण रहे, चौखट बाहर निरापद, निर्भीक भाव से समाज को अपनी सेवाएं दे सके ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212148
Book TitleSamaj Seva me Nari Ki Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Sharma
PublisherZ_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
Publication Year1982
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Jain Woman
File Size2 MB
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