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________________ 0.0 +0+0+0+0 समाज सेवा में नारी की भूमिका श्रीमती मालती शर्मा २५/२ पावर, बम्बई-सूना मार्ग, पूना ३ धरती सी उर्वर और सहिष्णु हमारी मातृमयी संस्कृति में प्रकृति से ही नारी सेवा रूपा और करुणाभूपा रही है। क्या इसे महज संयोग कहा जाय कि जीवन का आधार धरती, प्रेम, प्रकृति और ध्येय संस्कृति नारीरूपा है ? जागृति, कर्म और मिलन विश्राम की बेलाएँ उषा, दोपहरी, सन्ध्या नारी वेवा है ? बिना नारी शक्ति के शिव निर्जीव शव है? सेवा, मुवा और परिचय सेवा टहल के तीनों शब्द नारी बोक हैं? तथा सेवा भावना के उत्प्रेरक भाव दया, माया, ममता, करुणा नारी लिंगी है? सच पूछा जाय तो सेवा का दूसरा नाम नारी प्रकृति है । विश्व के समस्त जीव, समूचा विश्व ही नारी पक्षिणी के पंखों तले सेवा, पोसा जाकर ही ज्ञान की आँख और कर्म की पाँख पाता है गति, शक्ति और भक्ति मुक्तिमय होता है। नाम की अबला नारी में बजा की सेवाशक्ति है, उसकी मोहक आंखों में करुणा ममता का जल और आंचल में पोषक संजीवनी है। पालने से लेकर युद्ध क्षेत्र तक वही अपनी प्राणदाविनी सेवासुश्रूषा से 'न' में 'अ' लगाकर उसे नर-पुरुष बनाती है, चलाती उठाती है। कुटुम्ब परिवार कबीला हो या देश राष्ट्र, युद्ध और शान्ति क्रान्ति और भ्रान्ति की कैसी भी असमंजसमयी स्थितियों क्यों न हो सबमें नारी ही समाज सेवा की जगमगाती मशाल 'फलोरेन्स नाइटेंगिल' है । अनादि काल से ही सेवा और नारी पर्यायवाची रहे हैं। तभी तो विश्व की विशेषत: भारत की मनीषा धर्म, दर्शन, कला, संस्कृति की समस्त ऊँचाइयों में नारी माँ से ऊँची निस्पृह, निःस्वार्थ, त्याग, ममतामयी किसी दूसरी सेवामूर्ति की कल्पना नहीं कर सकी और आज भी क्या हम इस सेवा प्रतिमा के बिना पालता घर, शिशु गृहों, आश्रमों को चलाने की कल्पना कर सकते हैं ? क्या नर्सों के बिना अस्पताल हो सकते हैं ? कदापि नहीं । पर ऐसा क्यों ? आज तो यह प्रयोग, परीक्षण और आंकड़ों का सत्य है कि निसर्गतः ही नारी में पुरुष की अपेक्षा किसी भी एक रस कार्य को लम्बे समय तक करते रहने की अधिक सामर्थ्य, अधिक धैर्य है । वह दुःखों को, भारी कामों को उठाने वाली क्रेन तो नहीं मगर धारदार आरी जरूर है जो अनवरत अनथक चलती रहती है, और बड़े से बड़े ऊबाऊ काम को पार पाड़कर ही रहती है। पुरुष में वह माद्दा कहाँ कि दुखती आँखों की किरकिरी कोमल हथेली के स्पर्श से शमित कर दे, शीतला से बिलखते शिशु को छाती से लगाये कोरी आँखों रातें बिता दे, अपने मैले आँचल में दुनियाँ भर का दुःख कष्ट समेट उसी आँचल को देवी मानवीय सारे वरदानों की छाया बना दे ? वह नारी ही है जो ज्वर से तपते मस्तकों की शीतल पट्टी, सूखे ओठों की तरी, ठंडी गोद और चोट खाये हृदयों पर सान्त्वना भरा हाथ बन सकी है। Jain Education International इस प्रत्यक्ष भूमिका में भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण है नारी की अप्रत्यक्ष भूमिका पर हो या बाहर जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कहीं भी नारी की उपस्थिति मनोरम मधुर वातावरण को सृष्टि करती है । जहाँ वह होती है वहाँ का समा ही और होता है, हवा ही और बहती है । बृहद् धर्म पुराण कहता है-"गृहेषु तनया भूषा ।" घर ही क्यों, कहीं भी नारी का होना उदासी और ऊब के क्षणों में प्रेरणा और रुचि जगा तरोताजगी लाता है। मैं विज्ञान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.212148
Book TitleSamaj Seva me Nari Ki Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Sharma
PublisherZ_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
Publication Year1982
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Jain Woman
File Size2 MB
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