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शिवप्रसाद
23. भोगीलाल सांडेसरा -- "महामात्य वस्तुपाल का साहित्यमंडल और संस्कृत साहित्य में उसकी देन, जैन
संस्कृति संशोधन माल, सन्मति प्रकाशन नं 15, वाराणसी, 1959 ई., पृ. 106--109. 24. वेलणकर, पूर्वोक्त, पृ. 288 और 423-424. 25. द्रष्टव्य संदर्भ संख्या 16. 26. शिवप्रसाद -- "जालिहरगच्छ का संक्षिप्त इतिहास" श्रमण, वर्ष 43, अंक 4-6, पृ. 41-46. 27. नाहटा, पूर्वोक्त, पृ. 148. 28. वही, पृ. 148-149.
एवं मुनिकान्तिसागर -- शत्रुजयवैभव, कुशल संस्थान, पुष्प 4, जयपुर 1990 ई., पृ. 369-270. 29. शिवप्रसाद -- "थारापद्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास" निन्थ, वर्ष 1, अंक 1, अहमदाबाद 1994 ई. 30. नाहटा, पूर्वोक्त, पृ. 148-149.
मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, बम्बई, 1933 ई., पृ. 384. पं. लालचन्द भगवानदास गांधी -- ऐतिहासिकलेखसंग्रह, बडोदरा - 1963 ई., प्र. 162. हीरालाल रसिकलाल कापड़िया -- जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास भग 2, बडोदरा, 1968 ई., पृ. 132.
गुलाबचन्द्र चौधरी -- जैन साहित्य का बृहद्इतिहास, भाग 6, वाराणसी 1973 ई., पृ. 270-71. 31. नाहटा, पूर्वोक्त, पृ. 150. 32. शिवप्रसाद -- "धर्मघोषगच्छ का संक्षिप्त इतिहास" श्रमण, वर्ष 41,अंक 1-3, पृ. 45-103. 33. नाहटा, पूर्वोक्त, पृ. 151. 34. U.P. Shah -- Akota Bronzes, [Bombay 1959 1 pp. 34-35.
सांडेसरा, पूर्वोक्त, पृ. 96-100. 35. नाहटा, पूर्वोक्त, पृ. 151. 36. शिवप्रसाद "नाणकीयगच्छ" श्रमण, वर्ष 40, अंक 7, पृ. 2-34. 37. शाह, पूर्वोक्त, पृ. 29, 33-34.
इस गच्छ के सम्बन्ध में विचार के लिये द्रष्टव्य -- शिवप्रसाद " निवृत्तिकुल का संक्षिप्त इतिहास"
निर्गन्थ वर्ष 1, अंक 1, अहमदाबाद 1994 ई. 38. अगरचन्द नाहटा -- "पल्लीवालगच्छपट्टावली" श्री आत्मारामजी शताब्दी ग्रन्थ, पृ. 182-196. 39. भोगीलाल सांडेसरा -- हेमचन्द्राचार्य का शिष्य मण्डल, जैन संस्कृति संशोधन मण्डल, पत्रिका नं. 31,
वाराणसी, 1951 ई., पृ.3-20. पिप्पलगच्छ और पूर्णिमागच्छ तथा उनकी शाखाओं के उदभव एवं विकास पर इन पंक्तियों के लेखक ने
विस्तृत शोध-निबन्ध लिखा है, जो अद्यावधि अप्रकाशित है. 41. वही, 42. नाहटा, पूर्वोक्त, पृ. 153. 43. शिवप्रसाद -- "बृहद्गच्छ का संक्षिप्त इतिहास" पं. दलसुख भाई मालवणिया अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ.
105-117. 44. मुनिजिनविजय, संपा. कल्पप्रदीप अपरनाम विविधतीर्थकल्प सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक 10, शांतिनिकेतन - 1934 ई., पृ. 51.
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