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________________ उसने तदनुसार नेमिनाथ के जिनालय का निर्माण कराया। इस मन्दिर की प्रतिष्ठा मुनिचंद्रसूरि के शिष्य वादीन्द्र श्री देवसूरि ने की थी। विमल शाह को भगवती अम्बिका का इष्ट था। उसकी साधना करने से उसे अपार धन सम्पति मिली। इससे ही उसने अनेक मन्दिर, संघयात्रायें आदि कीं। विमल वसहि की देहरी सं. 21 में एक मूर्ति है। वहां दो मूर्तियां हैं जो सम्वत् 1088 के आसपास में बनी हुई है। प्राचीन उल्लेख : __ अम्बिका देवी एक प्राचीन देवी है। इसके कई उदाहरण प्राचीन उल्लेखों में भी दिये गये हैं। वैदिक साहित्य में भी शक्तिस्वरूपा देवी का उल्लेख है। ये प्राचीन देवियां देवगतिप्राप्त देवियां हैं। वे विभिन्न नामों से जानी जाती हैं। प्रतीकात्मक गुणों से संयुक्त होने से एक पद विशेष है। चार प्रकार के देवों की आयु कम से कम दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की आयु जैनागमों के अनुसार है। नाम का अर्थवर्णन प्रतीकात्मक है। यानी वह जैसे महिषासुर मर्दिनी, मोह महिषासुर और अंधकासुर अज्ञान, त्रिशूल त्रिरत्न आदि समझना चाहिए। अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार उनकी पूजा करना चाहिए। ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी उत्पाद व्यय और ध्रौव्य के प्रतीक हैं। देवियां कुछ वैमानिक, कुछ भुवनपति, व्यंतर बाण, कराररूप प्रकार की होती हैं। जैसा कि अपनी जाति कर्म प्रकृत्यानुसार कुछ सम्यग्दृष्टि और कुछ मिथ्यादृष्टि वाली होती हैं। एक की आयुष्य पूरी होने पर उस पद पर आने वाली देवियां अपनी कर्मप्रकृत्यानुसार उत्पन्न होकर अपनी आराधना विराधना या प्रवृत्ति पूर्वजन्म के संस्कारों के अनुसार होती हैं। कई मिथ्या दृष्टि देवियां जैनाचार्यों के सम्पर्क में आकर सम्यक् दृष्टि प्राप्त कर अपनी हिंसक प्रवृत्ति त्याग देती हैं। मणिधारी जिनचन्द्रसूरि के सम्पर्क में आने से आधिगाली देवता समकिती देवी होकर दिल्ली के मन्दिर में अधिष्ठाता का स्थान प्राप्त किया। सेठ माणकचन्द्र तपागच्छ के अधिष्ठाता मणिभद्र बने। नगरकोट का वीरा सुनार भी जिनपतिसूरिजी के उपदेश से आराधक बना। फिर अनशन पूर्वक मर करके अधिष्ठायक देव हुआ। सुसाणी माता सुराणों व दूगडों की कुल देवी सम्यक्त्व धारिणी है। नाकोड़ा भैरव के सम्बन्ध में कहा जाता है कि सखलेचा गोत्रीय श्रावक थे। इसी प्रकार से भगवान नेमिनाथ जी की अधिष्ठात्री देवी गिरनारतीर्थ की शासन देवी हई। धरेणन्द्र एवं पद्मावती तो भगवान पार्श्वनाथ की कृपा से इन्द्र एवं इन्द्राणी हुए। शत्रुजय का अधिष्ठायक कापर्दि यक्ष भी ग्राम महत्तर या सरपंच था जो सातों व्यसन-पाप कर्म में आसक्त था। मुनिराज के चातुर्मास में नवकार मंत्र और आदिश्वर भगवान की भक्ति से अनशन करके कपर्दियक्ष (कवड यक्ष), अधिष्ठायक देव हुआ। उसकी पत्नी भी अनशनपूर्वक मरकर कपर्दिका वाहन हाथी हुई। पउमचरिय में जो 472 ई. के आसपास लिखा गया था, सिंहवाहिनी अम्बिका का वर्णन है। विशेषावश्यक भाष्य की टीका में कोट्याचार्य वादी गणि ने अम्बु कुष्माण्डी की गाथा 3590 में उल्लेख किया है। वि.सं. 1390 में जिन प्रभ सूरि जी द्वारा हस्तिनापुर तीर्थकल्प स्तवन गाथा 20 में "भाषते उत्त जगसेव पवित्री कारकारणम्। भवनं च अम्बिका देव्या पात्रिकोसप्त कछंद ।। (7) में उल्लेख किया है। खरतरगच्छ पट्टावली संग्रह पृ. 42 में इस प्रकार उल्लेख है"तस्मिन्नवसरे विमलदण्ड नायकेन गुर्जरराज्ञा सम्मानिते नार्बुदाचलधारित्र्यां आरासन नगरे अम्बाया: कुलदेव्या प्रासादःकारित स्तत्रगम्य स्वप्नेदेव्या दर्शनं दत्तं खड्गे ग्रहाणेत्युक्त्वा रूप्यत्रम्बक खानीदर्शते च तया तत स्तेन महत् सैन्यं कृत्वा देवी महात्म्येन चतुविंशति देशागृहीताः । छत्राणि अग्रेताड्यन्ते बणिक् कुलत्वात् शीर्षे वन स्थाप्यन्ते तस्येति। अन्य साक्ष्य : खरतर गच्छ के साहित्य में अम्बिका देवी का काफी विस्तार से उल्लेख मिलता है। इसकी पट्टावली (खरतरगच्छ वृहद गुर्वावली) में निम्न उल्लेख है 1- स्तम्भन, शत्रुजय, उज्जयंत आदि स्थानों पर पार्श्वनाथ, ऋषभदेव, नेमिनाथ की मूर्तियां एवं अम्बिका की मूर्तियां स्थापित करने का उल्लेख। पृष्ठ सं. 17 2- सं. 1236 में अजमेर में महावीर एवं अम्बिका की मूर्तियां स्थापित की। (पृ. 29) 3- वि.सं. 1318 में भीलड़ी में अम्बिका सहित कई प्रतिमाओं की प्रतिष्ठाएं कराई। (पृ. 51) 4- वि. सं. 1362 यशोधवल के पुत्र थिरपालने उज्जयन्त में अम्बिका देवी की माला ग्रहण की। (पृ. 63) 5- वि. सं. 1380 में मानतुंग विहार शत्रुजय की प्रतिष्ठा के समय अनेक मूर्तियों की प्रतिष्ठायें की। इनमें अम्बिका देवी की एक थी। (पृ. 72) 6- दिल्ली के रयपति सेठ के संघ में जिन कुशल सूरि ने बड़े विस्तार से पूजा उत्सव किया था। (पृ. 76) 7- वि. सं. 1377 में अम्बिका की एक मूर्ति देरावर नगर के लिए जिन कुशल सूरि ने प्रतिष्ठापित की थी। 8- 'शत्रुञ्जय वैभव' के पृष्ठ 180 में इस प्रकार से उल्लेख किया गया है, रत्नाकर सूरि अत्यन्त निस्पृह प्रकृति के महापुरुष थे। समत्व उनके जीवन में साकार था। गिरिनार यात्रार्थ पधारते हुए परीक्षार्थ देवी ने एक मणि मार्ग में रख दी। समस्त शिष्य परिवार का ध्यान उस पर जाना जरूरी था। इस सुंदर प्रभाव पूर्ण मणि को देखते ही शिष्यों ने जिज्ञासा की कि यह क्या है ? पूज्य ने कहा, “चिन्तामणि रत्न" रत्न की वास्तविकता की परीक्षा के लिए गुरु ने कहा कि हे मणि! स्तम्भ तीर्थ जाकर के ज्ञानागार से सटीक पंचमांग ले आ! तत्काल भगवती सूत्र उपस्थित किया गया। परीक्षण पूर्ण हुआ। संयम के सामने इस मणि का कोई मूल्य न था। यथा स्थान रख दी गई जो अदृश्य हो गई। अन्य प्रबन्धों में भी अम्बिका देवी के कई उल्लेख मिलते हैं। अम्बिका के प्राचीनतम उल्लेख मथुरा के कंकाली टीले के समकालीन मूर्ति अभी भी हस्तीनापुर में मिली है इसमें अम्बिका की मूर्ति स्थापित करने का उल्लेख है। हस्तिनापुर से भी अभी हाल ही में कुछ मूर्तियां हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / ७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211993
Book TitleShasan devi Ambika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherZ_Jain_Vidyalay_Hirak_Jayanti_Granth_012029.pdf
Publication Year1994
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & Shasan Deva and Devi
File Size2 MB
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