________________ 000000000000000DDOGS Blas:0-380002400609001060637 Bela 00000000000000000 600D D. 00000000000 12280 09 FOODS 16201622 उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ समझने लगें। विभिन्न प्रचार-माध्यमों से यह भी खूब प्रसारित किया लायसन में सूखी मछली और मांस का चूरा सम्मिलित होता है। 200000 गया कि अण्डा भी एक सब्जी है। भारत की विज्ञापन मानक ऐसी परिस्थितियों के परिणाम स्वरूप भी क्या अण्डा शाकाहार रह परिषद ने इसका अध्ययन किया और इस निष्कर्ष पर पहुँची कि अण्डा सब्जी नहीं है और ऐसा विश्वास दिलाकर इसका विक्रय यह तो जन्म से पूर्व चूजे को खाना है, किन्तु अफलित अण्डा तो नहीं किया जा सकता। ऐसा करना अपराध भी मान लिया गया है। सर्वथा अप्राकृतिक पदार्थ है-जहाँ तक उसके भोज्य रूप को मानने का संबंध है।२ अहिंसावादियों का इन अण्डों को शाकाहारी मानना अण्डा शाकाहारी भी होता है : उनकी सारी भूल ही है। चूजों को बड़ी दयनीय अवस्था में रखकर विकसित किया भ्रांति का तथाकथित आधार : जाता है। उन्हें प्रचण्ड प्रकाश में रखा जाता है और इतने छोटे से 9. यह सत्य है कि अण्डे दो प्रकार के होते हैं, यद्यपि इससे यह स्थान में अनेक मुर्गियों को रखा जाता है कि वे अपने पंख फैलाना DDIT तथ्य सुनिश्चित नहीं हो जाता कि अण्डों का एक प्रकार सजीव तो दूर रहा-ठीक से हिल डुल भी नहीं सकती। मुर्गियां एक-दूसरे और दूसरा निर्जीव है। वस्तुस्थिति यह कि कुछ अण्डे ऐसे होते हैं पर चोंचों से आक्रमण करती हैं और घायल होती रहती हैं। इसी 388 जो मुर्गे के संयोग होने पर मुर्गी देती है और उनसे चूजे निकल कारण मुर्गियों की चोंचें तक काट डाली जाती है। भीड़ भड़क्के के 2060 सकते हैं। ये निषेचित या फलित होने वाले अण्डे होते हैं। मुर्गे से मारे वे दाने पानी तक भी नहीं पहुँच पातीं। यह बीभत्स वातावरण संयोग के बिना भी मुर्गी अण्डे दे सकती है और देती है। ये उनमें विक्षिप्तता का विकास कर देता है। सतत् उद्विग्नता के कारण अनिषेचित या फलित न होने वाले अण्डे होते हैं, जिनसे चूजे नहीं उनका अशान्त रहना तो स्वाभाविक ही है। ऐसा इस प्रयोजन से निकलते हैं। यह अविश्वसनीय नहीं माने कि मुर्गे के संयोग के किया जाता है कि वे शीघ्र बड़ी होकर अण्डे देना आरम्भ कर दें। उनमें उत्पन्न हिंसक वृत्ति अण्डों में भी उतर आती है और इनका DO ऐसा प्राकृतिक रूप से होता ही है। जैसे स्त्री को मासिक धर्म में रज उपभोग करने वाला भी इस कुप्रभाव से बच नहीं पाता। शाकाहार साव होता है-ये अण्डे मुर्गी की रज के रूप में बाहर आते हैं। यह तो तृप्ति, शांति, संतोष और सदयता उत्पन्न करता है। इस दिशा में उसके आन्तरिक विकार का विसर्जन है। यह सत्य होते हुए भी कि अण्डों को शाकाहार की श्रेणी में लेना अस्वाभाविक है। चाहे अण्डे T 658 दूसरी प्रकार के अफलित-अनिषेचित अण्डे चूजों को जन्म नहीं देते, फलित अथवा अफलित हों-उनकी तामसिकता तो ज्यों की त्यों किन्तु केवल इस कारण इन्हें प्राणहीन मानना तर्क संगत नहीं। इन बनी रहती है। अण्डों में भी प्राणी के योग्य सभी लक्षण होते हैं, यथा ये OP श्वासोच्छ्वास की क्रिया करते हैं, इनमें विकास होता है, ये खुराक यद्यपि यह मानना सर्वथा भ्रामक है कि अफलनशील अण्डे Dog भी लेते हैं। अब विश्वभर के विज्ञानी और जीवशास्त्री इन अफलित अहिंसापूर्ण, अजैव और निरामिष होते हैं, तथापि एक तथ्य और तु अण्डों को जीवयुक्त मानने लगे हैं। अमरीकी विज्ञानवेत्ता फिलिप भी ऐसा है कि जो आँखें खोल देने वाला है अनिषेचित अण्डों को जे. एकेबल ऐसी ही मान्यता के हैं। मुर्गे के बिना उत्पन्न होने के शाकाहारी मानने वाले इस ओर ध्यान दें कि मुर्गे के संयोग में आने कारण इन्हें निर्जीव मानना मिशिगन विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने वाली मुर्गी पहले दिन तो फलित वाला अण्डा देती ही है, आगे यदि 2000 भी उपयुक्त नहीं माना है। इनका जन्म मुर्गी से हुआ, वह स्वयं संयोग न भी हो, तो भी वह लगातार अण्डे देती है और तब वे प्राणी है। उसकी जीवित कोशिकाओं से जन्मे ये अण्डे निर्जीव नहीं / अजैव, अफलनशील नहीं होते। मुर्गे के शुक्राणु मुर्गी के शरीर में हो सकते। चाहे ये मुर्गी की रज रूप में ही क्यों न हों = इनकी / लम्बे समय तक बने रहते हैं और यदा कदा प्रतिक्रिया भी देते सजीवता में संदेह नहीं किया जा सकता। हम कह सकते हैं कि रहते हैं। कभी-२ तो यह अवधि छह माह तक की भी हो सकती है। प्राणवानता की दृष्टि से तो सभी अण्डे एक समान ही होते हैं। इन्हें बीच-बीच में कभी भी वह फलनशील अण्डे दे देती है। दूसरे और शाकाहारी मानना भयंकर भूल होगी। पाँचवें दिन तो ऐसा होता ही है। फिर इस बात की क्या आश्वस्तता एक ओर भी तथ्य ध्यान देने योग्य है। कोई भी मुर्गी तब तक कि संयोगविहीन मुर्गी के अण्डे सदा प्राणशून्य ही होंगे, जैसा कि अण्डे नहीं दे सकती जब तक उसे जैविक प्रोटीन का आहार नहीं भ्रम कुछ लोगों में व्याप्त है। दिया जाता। मांस, मछली, रक्त, हड्डी आदि का आहार इन्हें दिया मानव मात्र को यह सत्य गाँठ-बाँध लेना चाहिए कि अण्डा 536ही जाता है। शैशवावस्था में जो चूजे मर जाते हैं, उन्हें सूखाकर / आहार है ही नहीं, शाकाहार तो वह कदापि-कदापि नहीं। उसका उसका चूरा तक मुर्गियों को खिलाया जाता है। चूजावस्था में-जन्म आहार रूप में उपभोग निरर्थक है क्योंकि उसमें पुष्टिकारक तत्व है P306 के बाद आठ सप्ताह तक लायसन युक्त आहार दिया जाता है। ही नहीं। 0. 0 EDDDE1. ए. सी. कैम्पबेल रीजस-"प्रोफिटेबल पोल्ट्री कीपिंग इन इण्डिया" 2. विक्टोरिया मोरान-"कम्पाशन द अल्टिमेटिक एथिक' सरकत GDSON00 DD.00.00SODDS POUP660603000300500000 DD.000000003000303000RDHANDRAa000