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-यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्म - कहा गया है
के बाद भी ये रोग ठीक नहीं हो पाते हैं। व्यक्ति को अपने दश कामसमुत्थानि तथाऽष्टौ कोधजानि च।
सामने अपनी मृत्यु दिखाई देती है। तब वह पश्चात्ताप करता है। व्यसनानि दुरन्तानि यत्नेन परिवर्जयेत्॥
और उस घड़ी को कोसता है जब उसने व्यसन प्रारंभ किया, मृगयाऽक्षो दिवास्वप्नः परिवादः स्त्रियो मदः। . किन्तु अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। समय तीर्थत्रिकं वृथाऽट्य च कामजो दशको गणः।।
रहते आदमी को चेत जाना चाहिए। पहली बात तो यह कि उसे पैशून्यं साहसं द्रोहे ईर्ष्याऽसूयार्थदूषणम्।
किसी व्यसन में पड़ना ही नहीं चाहिए और यदि किसी कारणवश वाग्दण्डजं च पारूष्यं क्रोधजोऽपि गणोष्टकः।।
उसे कोई व्यसन लग गया है तो तत्काल उसे मुक्त होने का अठारह व्यसन में दस व्यसन कामज है और आठ व्यसन प्रयास करना चाहिए। किन्तु व्यक्ति ऐसा न करते हुए उसमें और कोधज हैं। जो इस प्रकार है
अधिक डूबता चला जाता है। उसकी आँख तो तब खलती है दस कामज व्यसन - (१) मुगया, (२) अक्ष (जआ). (३) जब उसे अपने पतन का गर्त दिखाई देता है। अब हम जिन सात दिन का शयन, (४) परनिन्दा, (५) परस्त्री सेवन, (६) मद,
व्यसनों का नामोल्लेख ऊपर कर चुके हैं, उनके विषय में (७) नृत्य सभा, (८) गीत सभा, (९) वाद्य की महफिल और
संक्षिप्त रूप में विचार करेंगे। (१०) व्यर्थ भटकना।
जुआ - जुआ का जन्म कैसे हुआ? यह कहना तो कठिन है आठ क्रोधज व्यसन - (१) चुगली खाना, (२) अति साहस किन्तु अनुमान यह लगाया जा
किन्तु अनुमान यह लगाया जा सकता है कि बिना किसी श्रम करना, (३) द्रोह करना, (४) ईर्ष्या, (५) असया. (६) अर्थ के सम्पत्ति प्राप्त करने की लालसा से इसका जन्म हुआ होगा। दोष, (७) वाणी से दण्ड और कठोर वचन
अथवा मनोरंजन के लिए खेले जाने वाले किसी खेल के माध्यम
से इसकी उत्पत्ति हुई होगी। कुछ भी हो, यह एक ऐसा व्यसन है __इस संबंध में जैन साहित्य का आलोडन करते हैं तो पाते
कि जिसे भी एक बार इसकी आदत या यों कहें लत लग जाती हैं कि जैनाचार्य मुख्य रूप से सात प्रकार के व्यसन बताते हैं।
है वह इसमें और अधिक डूबता चला जाता है। हारने के बाद यथा
भी व्यक्ति दाँव पर दाँव लगाता चला जाता है। अपना सब कुछ द्यूतं च मांसं च सुरा च वेश्या पापद्धि चौर्य परदारसेवा।
खो जाने के पश्चात् वह चिंताग्रस्त हो जाता है। ऋण लेकर भी एतानि सप्तव्यसनानि लोके घोरातिघोरं नरकं नयन्ति।
जुए पर दाँव लगाता है। उसकी आशा मृग मरीचिका ही सिद्ध सात व्यसन इस प्रकार हैं
होती है। धन प्राप्त करने की लालसा में वह दाँव पर दाँव (१) जुआ, (२) मांसाहार, (३) मद्यपान, (४) वेश्यागमन, लगाकर अपने आपको बर्बाद कर लेता है। (५) शिकार, (६) चोरी और (७) पर स्त्रीगमन। यदि हम
हमारे ऋषिमुनियों ने जुए को त्याज्य माना है। तभी तो सक्ष्मता से विचार करें तो जितने भी व्यसन हैं, वे सभी इन सात
ऋग्वेद में कहा गया है- अक्षर्मा दिव्यः। (१०.३४.१३) व्यसनों में आ जाते हैं।
सूत्रकृतांग सूत्र ९/१० में चौपड़ अथवा शतरंज के रूप में ___ वर्तमान युग में कुछ नवीन प्रवृत्तियां पाई जाती हैं। जैसे
जुआ खेलना मना किया गया है। जए को लोभ का बालक भी अश्लील साहित्य पढ़ना, अश्लील चलचित्र देखना, तम्बाकू कहा गया है और यह कहा गया है कि यह फिजूलखर्ची का सेवन, गुटखे के रूप में या बीड़ी, सिगरेट के रूप में, विभिन्न
माता-पिता है। जुआ किसी भी रूप में खेला जावे, वह असाध्य प्रकार के गुटखों का सेवन आदि। ये सब भी व्यसनों की भाँति
रोग है। यदि इतिहास के पृष्ठ पलटेंगे तो हमें ज्ञात हो जाएगा कि ही हानिप्रद है। प्रारंभ में तो व्यसन सामान्य से लगते हैं, किन्तु
जुआ प्राचीन काल में भी प्रचलित था और न केवल सामान्य आगे चलकर ये उग्र रूप धारण कर लेते हैं। व्यक्ति को इनकी
जन पतन के गर्त में समा चुके हैं। महाभारत का उदाहरण हमारे बुराई उस समय दिखाई देती है, जब वह कैंसर अथवा व्यसन ।
सामने है। युधिष्ठिर ने अंधा होकर अपनी पत्नी द्रौपदी तक को जन्य किसी भयंकर रोग से ग्रस्त हो जाता है और उपचार कराने
दाँव पर लगा दिया था। इससे अधिक व्यक्ति का पतन और
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