________________ 10. कुछ फड़कते नारों के पोस्टर छपा कर जगह-जगह बाँटे - लार, सूंघने की शक्ति, निशाचर, शब्द (आवाज) का फर्क है। मांसाहारी की प्रत्येक चीज प्रकृति विरूद्ध व अप्रिय है। मांसाहारी जीवों के बच्चे जन्म के बाद एक सप्ताह तक प्राय: दृष्टि शून्य होते हैं। शाकाहारी जीवों के बच्चे प्रारम्भ से ही दृष्टि वाले होते शाकाहार सात्विक आहार है। कहते हैं "जैसा खाये अन्न वैसा होवे मन।" आज समाज में सुख-शांति लानी है तो मनुष्य 1. पान मसाला मौत मसाला जीभ जलाओ 3. गुटका खाओ गाल गलाओ 4. धूम्रपान खतरे में जान 5. मुंह का मजा मौत की सजा 6. नशे से छुट्टी मुसीबतों से मुक्ति अंत में नशा नाश का द्वार, व्यसन विनाश का कगार। औषधियों का उपचार : (क) तम्बाकू की आदत से छुटकारा पाने हेतु- कैलेडियम 200 शक्ति की 12 गोली लेकर सुबह, दोपहर शाम चूसें। इसमें तम्बाकू से अरूचि व नफरत हो जावेगी, (ख) पान मसाला व गुटका से मुक्ति के लिए - आवंला या अदरक के नमक लगायें टुकड़े चूसें। धीरे-धीरे आदत छूट जायेगी एवं विटामिन-सी की प्राप्ति भी होगी। (ग) सिगरेट से अरुचि के लिए टेबोकेम 200 शक्ति 12 गोली तब तक चूसते रहे जबतक सिगरेट से अरुचि न हो जाय। (घ) शराब से अरुचि के लिए- अजवायन व नींबू रस मिलाकर, सुखाकर, पीसकर गोलियां बनालें, व चूसते रहें। जीभ को शराब पीने जैसा आनन्द आता रहेगा। 2. घोड़ी का पसीना या पिशाब की एक बूंद पियक्कड़ के अनजाने में खाने की चीज में डालकर खिला दें। सम्भावना यही है कि इससे शराब पीते ही उल्टी आ जावेगी और पियक्कड़ उसे छोड़ देगा। व्यसन मुक्ति में शाकाहार : व्यसन मुक्ति में अब तक शाकाहार का जिक्र न कर सिर्फ नशाकारी प्रवृत्तियों का ही विवेचन किया गया लेकिन शाकाहार का भी बड़ा महत्व है। मांसाहार और शिकार (सप्त कुव्यसनों में से) आपस में एक दूसरे से जुड़े हुवे हैं। प्रकृति अपने आप अपना भार-साम्य (संतुलन) रखती है। प्रकृति के नियमों को अपने हाथ में लेना समाज पर कुठाराघात करना है। प्रकृति ने मनुष्य को शरीर रचना के हिसाब से शाकाहारी की श्रेणी के अनुकूल बनाया है। पशुओं में मांसाहारी व शाकाहारी दोनों है। सभी शाकाहारी जीवों की शरीर रचना, हाथ, पांव, दांत, नाखून, पंजे, जीभ, पानी पीने की आदत, आंत की लंबाई, पाचन का समय, लीवर, गुर्दे, हाडड्रोक्लोरिक एसिड, मांसाहारी थे, वहां आज करोड़ों लोग शाकाहारी बन रहे हैं। हमारे देश में जितने भी धर्मगुरु हैं अपने-अपने स्तर पर सभी व्यसन मुक्त जीवन जीने की प्रेरणा दे रहे हैं इसी दिशा में समाज के दुख-दर्द की अनुभूति करते साधुमार्गी परंपरा के आचार्यश्री रामलालजी म.सा० ने वर्षों पूर्व समाज को व्यसन मुक्त होने का आह्वान किया। उनके आह्वान पर हजारों लोगों को व्यसन मुक्ति के संकल्प कराये जा चुके हैं। इस तरह व्यसन मुक्त समाज निर्माण की दिशा में कार्य हो तो रहा है पर यह पूरा नहीं है। लाखों लोगों को इससे जोड़ना है। गांव-गांव, नगर-नगर, डगर-डगर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चेतना लानी है। मैं आशावादी होकर चिन्तन करता हूँ सारा विश्व व्यसन मुक्त होगा। एक अच्छे समाज का निर्माण होगा। भाईचारा, प्रेम बढ़ेगा। जैन सिद्धांत "परस्परोपग्रहो जीवानाम" की गूंज होगी। राष्ट्रीय संयोजक व्यसन मुक्ति संस्कार जागरण समिति एन०एन० रोड, कूचबिहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org