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कन्हैयालाल भूरा
व्यसन मुक्त समाज-निर्माण
व्यसनी क्यों?
सर्वप्रथम हम यह विचार करें कि मनुष्य व्यसनी क्यों बनता है? एक बच्चा जन्म लेता है, कोई भी व्यसन लेकर जन्म नहीं लेता फिर वह क्यों इसका आदी हो जाता है। बड़े-बड़े मनोवैज्ञानिकों ने इसका कारण जानने का प्रयास किया, मुख्यतया निम्न कारण सामने आये१. संगति (साथी, संगी, मित्र) : जहाँ वह उठता-बैठता है,
जिनके साथ पढ़ता है, खेलता है, अनजाने या जाने में उनको
देखकर कुव्यसन अपना लेता है। २. पारिवारिक जन : पारिवारिक जनों को लिप्त देखकर अपना
लेता है। ३. अवसाद-असफलता-हानिभाव : इस अवस्था में मनुष्य
मानसिक रूप से दुर्बल होकर टूट जाता है और गम गलत करने हेतु नशा, कुव्यसन की ओर दौड़ पड़ता है। उसे
लगता है-यही एक मात्र समाधान है। ४. झूठी शान शौकत व मान-प्रतिष्ठा दिखाना सभी धर्मों की प्ररूपणा :
हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध सभी प्रमुख धर्मों ने हिंसा-क्रूरता, अनैतिकता, असत्य भाषण, व्यभिचार, क्रोध, द्वेष, राग (मोह) इत्यादि को घृणास्पद व त्याज्य बताया है। उनकी मुख्य शिक्षा प्राणी कौम के साथ सह-अस्तित्व, दया व करुणापूर्ण व्यवहार की है। व्यसन मुक्त समाज निर्माण की दशा में पहला कदम :
सर्व प्रथम हमें तम्बाकू, शराब, पान मसाला, गुटका इत्यादि नशीली चीजों पर विचार करना होगा। जन साधारण को इनसे होने वाले नुकसान, हानियां, स्वास्थ्य पर प्रभाव, कैंसर व हृदयरोग जैसी बिमारियों के बारे में जानकारी देनी होगी। १. : प्रशासन व पुलिस की चार प्रमुख समस्यायें :
१. शराब, २. मादक द्रव्य, ३. जुआ, ४. अनैतिकता - अगर ये ठीक हो जायें तो अपराध का आधा आंकड़ा समाप्त हो जाय। ध्यान रहे-वेश्यावृत्ति व सुरापान का चोली-दामन का साथ है। अवैध संतानों की उत्पत्ति का मुख्य अड्डा, मद्यपान व ड्रग्स है। पुरुषों व महिलाओं में चारित्रिक पतन का मुख्य कारण शराब है।
२. तम्बाकू : यह किन-किन रूपों में सेवन की जाती हैबीड़ी, सिगरेट, जर्दा, खेनी, चिलम, सिगार, गुटका, नसवार, तम्बाखू वाले दंत मंजन, गुड़ाकू, मसेरी, पान मसाला, किमाम, जैसे अन्य पदार्थ।
शाब्दिक व्याख्या :
व्यसन का अगर शाब्दिक अर्थ खोजते हैं तो पाते हैं लत, काम, और क्रोध जनित दोष, निष्फल, प्रयत्न, आपत्ति, दु:ख कष्ट इत्यादि। प्रायः प्रत्येक धर्म में ही व्यसन को एक मत से नशे, लत के रूप में ही लिया है। भगवान महावीर :: सप्त कुव्यसन
भगवान महावीर ने अति सूक्ष्मता में जाते हुए व्यसन के आगे कु शब्द और जोड़कर व उनके भेद कर सप्त कुव्यसन (सात खराब लत) से मनुष्य को विरत रहने की बात की है। जैसेजुआ, मांस, शराब, चोरी, परस्त्री गमन, वेश्यागमन और शिकार इत्यादि। परिहार :
मनुष्य मात्र चाहे वह अन्य धार्मिक क्रियाएं कर पाये या न पाये अगर इन सात कुव्यसनों का सर्वथा परिहार कर इनसे अगर सर्वतोभावेन बचा रहे तो समाज का स्वस्थ निर्माण स्वयमेव हो जावेगा। आज की ज्वलन्त समस्या पर्यावरण, अनैतिकता, अराजकता, आतंकवादिता, हिंसा का ताण्डव इत्यादि स्वयमेव समाप्त हो जायेंगे।
० अष्टदशी/1060
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