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________________ जयभगवान जैन : वेदोत्तरकाल ब्रह्मविद्या की पुनर्जागृति : ४८७ उसके बाद वह अरुणि गौतम उन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिये राजा प्रवाहण के पास गया. राजा ने उसे आसन दे पानी मंगवाया और उसका अर्घ्य किया. तत्पश्चात् राजा ने कहा-हे पूज्य गौतम ! मनुष्य योग्य धन का वर मांगो. यह सुनकर गौतम ने कहा-हे राजन् ! मनुष्य धन तेरा ही धन है, मुझे नहीं चाहिए. मुझे तो वह वार्ता बता दे जो तूने मेरे पुत्र से कही थी. गौतम की यह प्रार्थना सुन राजा सोच में पड़ गया. सोच-विचार करने पर उसने ऋषि से कहा—यदि यही वर चाहिए तो चिरकाल तक व्रत धारण करके मेरे पास रहो. नियत साधना करने पर राजा ने उसे कहा-हे गौतम ! जिस विद्या को तू लेना चाहता है, उसे मैं अब देने को तैयार हूं, परन्तु यह विद्या पूर्व काल में तुझ से पहले ब्राह्मणों को प्राप्त नहीं होती थी, चूंकि सारे देशों में क्षत्रियों का ही शासन था. क्षत्रिय क्षत्रियों को ही सिखाते थे.' यह कहकर राजा ने पांच प्रश्नों का रहस्य गौतम को बताना शुरू कर दिया. पण्डित जयचन्द विद्यालंकार और डा० पार्जीटर के कथनानुसार पांचाल नरेश प्रवाहण जैबलि-जन्मेजय के पौत्र अश्वमेध दत्त अर्थात् पाण्डवपुत्र अर्जुन की पांचवीं पीढ़ी के समकालीन था. इस तरह उक्त वार्ता का समय लगभग १४ सौ ईसवी पूर्व होना चाहिए. कैकेय अश्वपति की कथा-कैकेय देश का राजा अश्वपति परीक्षित और जन्मेजय का समकालीन था. कैकेय देश (आधुनिक शाहपुर जेहलम गुजरात जिला) गान्धार से ठीक पूर्व में सटा हुआ है. कैकेय अश्वपति की कीर्ति उसकी सुन्दर राज्यव्यवस्था और उसके ज्ञान के कारण सब ओर फैली हुई थी. एक बार का कथन है कि उपमन्यु का पुत्र, प्राचीन शाल, पुलुषि का पुत्र सत्ययज्ञ, मालवी का पुत्र इन्द्रद्युमन, शर्कराक्ष का पुत्र जन और अश्वतराश्वि का पुत्र बुडिल जो बड़ी-बड़ी शालाओं के अध्यक्ष थे और महाज्ञानी थे, आपस में मिलकर विचारने लगे 'हमारा आत्मा कौन है ? ब्रह्म क्या वस्तु है?' उन्होंने निश्चय किया कि इन प्रश्नों का उत्तर वरुणवंशीय उद्दालक ऋषि ही दे सकता है, वह ही इस समय आत्मा के ज्ञान को जानता है, चलो उसके पास चलें. उन आगन्तुकों को देख उद्दालक ऋषि ने विचार किया कि ये सभी ऋषि महाशाला वाले हैं और महाश्रोत्रिय हैं, उन को उत्तर देने के लिये मैं समर्थ नहीं हूँ. उसने कहा कि इस समय कैकेय अश्वपति ही आत्मा का सब प्रकार ज्ञाता है, आओ उसके पास चलें. वहां पहुंचने पर अश्वपति ने उनका सत्कार किया और कहा : 'मेरे देश में न कोई चोर है, न कृपण, न शराबी, न अग्निहोत्र रहित, न कोई अपढ़ है और न व्यभिचारी, व्यभिचारिणी तो होगी ही कहां से ?' आप इस पुण्य देश में ठहरें. मैं यज्ञ करने वाला हूँ. आप उसमें ऋत्विज बनें, मैं आपको बहुत दक्षिणा दूंगा. उन्होंने कहाहम आपसे दक्षिणा लेने नहीं आये हैं, हम तो आपसे आत्मज्ञान लेने आये हैं. अश्वपति ने उन्हें अगले दिन सवेरे उपदेश देने का वायदा किया. अगले दिन प्रातःकाल वे समिधाएँ हाथों में लिये उसके पास पहुँचे और अश्वपति ने उन्हें आत्मज्ञान दिया. अजातशत्रु की कथा-काशीनरेश अजातशत्रु, विदेह के राजा जनक उग्रसेन तथा कुरुराज जनमेजय के पुत्र शतानीक का समकालीन था. वह अपने समय का एक माना हुआ आत्मज्ञानी था और ज्ञान की चर्चा में अभिरुचि रखने वाले विद्वानों का भक्त था. एक बार आत्मविद्याभिमानी गर्गगोत्रीय दृप्त बालाकि नाम वाला ब्राह्मण ऋषि उशीनर (बहावल पुर का प्रदेश) मत्स्य (जयपुर राज्य) कूरु (मेरठ जिला) पांचाल, (रुहेलखण्ड, आगरा का इलाका) काशी, विदेह, १. 'सह कृच्छी बभूव. त ह चिरं वसेत्याज्ञापयांचकार. ते हो काचयथा मां त्वं गौतमावदो यथेयं न प्राक् त्वत: पुरा विधा ब्राह्मणान् गच्छति. तस्मात् सर्वेषु लोकेपु क्षत्रस्यैव प्रशासनमभूदिति. -छां० उप० ५-३-७. २. भारतीय इतिहास की रूपरेखा-जिल्द प्रथम, पृष्ठ २८६. ३. छा० उप०५-११, १२. महाभारत शान्तिपर्व अध्याय ७७. ४. भारतीय इतिहास की रूपरेखा. जिल्द प्रथम, पृ० २८६. ५. (अ) बृहदारण्यक उपनिषत् २, १. (आ) कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषत् अध्याय ४.
SR No.211955
Book TitleVedottar Kal me Bramhavidya ki Punarjagruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaybhagwan Jain
PublisherZ_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf
Publication Year1965
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ritual
File Size2 MB
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