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________________ उन महान नारियों के त्याग और बिलदान। नारी शान्ति और क्रान्ति, ज्योति और ज्वाला दोनों रूपों में समाज के रंग मंच पर अभिनय करती आयी है। यह शताब्दियों का सत्य है “नारी नर की खान” इस लोक के सर्वोत्कृष्ट तीर्थंकर पद पर आसीन महान आत्माओं को जन्म देने वाली स्त्री ही होती है। देवता ही सर्वप्रथम उन्हें ही वन्दन करते हैं। इसलिए जैन दर्शन में कहा भी है कि नारी कभी सातवें नरक में नहीं जा सकती, क्योंकि उसके हृदय में ऐसी कठोरता, क्रुरता आ ही नहीं सकती जो उसे सातवें नरक के बंधन में बांधे। नारी का सर्वोत्कृष्ट रूप माँ है। मातृत्व ही नारी का चरम विकास है। यही नारी की अंतस् चेतना है। मातृत्व ही नारी हृदय का सार है। वात्सल्य का निर्झर झरना प्रत्येक नारी हृदय का आविभूतगान है। नारी प्रतीक है प्रेम की, नारी प्रतीक है श्रद्धा की, भक्ति की, कोमलता की। प्रत्येक मानव के भीतर एक अटूट अभीप्सा है। प्रेम की, नारी हृदय इस प्रेम की पूर्ति के लिए सदा ही प्रवाहमान रहा है। नारी का यही प्रेम और वात्सल्य मानव जाति को हरा भरा रखता है। मनुष्य हृदय को जीवित रखा है, वरन मनुष्य शायद जड़ हो जाए। उसके भीतर रही हुई संवेदनशीलता शायद लुप्त हो जाय। जो स्नेह और सहानुभूति एक स्त्री दे सकती है, वह पुरुष नहीं दे सकता क्योंकि प्रेम मांगता है समर्पण और नारी प्रतीक है समर्पण रुस के एक वैज्ञानिक ने नवजात शिशु बन्दरों को लेकर एक प्रयोग किया, उसने एक बड़ा यत्र बनाया। उसमें तार लगाए गये बन्दरों के उछलने-कूदने के सभी उपाय रखे गये। कुछ कृत्रिम बन्दरियों को भी उस यन्त्र में रखा गया, छोटे बन्दर उछलते कूदते हैं। कृत्रिम बन्दरियों को माता समझकर उनके साथ चिपकते हैं। उन्हें दूध पिलाने एवं खिलाने के सभी प्रकार के साधन रखे गये। समय बीतने पर वैज्ञानिक ने देखा कि बन्दर बड़े हो गये हैं, किन्तु सभी विक्षिप्त हो गये हैं, पागल हो गये हैं। कारण खोजा गया तो पता चला कि उन्हें उनकी माँ का प्रेम नहीं मिला। प्रेम के बिना वे विक्षिप्त हो गये। इसीलिए प्राचीन युग में जो गुरु कुल होते थे, उनमें ऋषि प्रवर तो शिष्यों को शिक्षा प्रदान कर उनकी बुद्धि को विकसित करते थे। जब कि ऋषि पत्नी, गुरुमाता अपनी वात्सल्यमय धारा से उनके हृदय को विकसित करती थी। वह माता मंदालसा ही थी जिसके संस्कारों ने सात भव्य माताओं को महापथ पर लगा दिया। . मदालसा वाच्य मुवाच पुत्रम्। शुद्धोऽस बुद्धोऽस निरन्जनों ऽसि। - माता जीजाबाई की प्रेरक कहानियों से ही बाल शिवाजी छत्रपति शिवाजी बने, वह राजमति जिसने रथनेमि की वासना पर अंकुश लगाया। वह मदन रेखा ही थी जिसके गोद में पड़ी है पति की खून से लथपथ देह, लेकिन उसने अद्भुत धैर्य से क्षमता से उसके मन को मैत्री करुणा में स्थिर कर उच्चगति प्रदान की। वह रानी कैकयी जिसने देवासुर संग्राम में दशरथ के रथ की खूटी खिसकने पर उस स्थान पर अपनी अंगुली लगा दी। साधुमार्ग से च्युत होने वाले भवदेव को स्थिर करने वाली नागिला ही थी। तुलसी से महाकवि तुलसीदास बनने के पीछे नारी का ही मर्मस्पर्शी वचन था। वर्तमान में नारी किसी भी बात में पीछे नहीं है, पुरुष के कधे से कंधा मिलाकर चलने को तैयार है। सरोजीनी नायडू, कस्तूरबा, विजय लक्ष्मी पंडित, मदर टेरेसा, इन्दिरा गाँधी जैसी महान नारियाँ जागृत नारी शक्ति की परिचायक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211935
Book TitleVishwa Chetna me Nari ka Gaurava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmuni
PublisherZ_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf
Publication Year1992
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Jain Woman
File Size502 KB
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