________________
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
गाथा० नं० संस्कृत
७३. ७५.
२१.
५१.
५५.
७७.
५.
२४.
३३. ३६.
३.
३०.
४६.
८१.
१९.
२८.
२८.
८.
२३.
९७.
आदि
आदि
इह
इह
इह
ऋजुसूत्री
कृत
गालयति
चूत: चूतादिभ्यः
ज्ञान
ज्ञानम्
ज्ञायक
ततः
त्रिधा
द्रवति
द्रूयते
मूलपाठ
आदि
-आइ
इध
इह
उज्जुसुता
कत
गालयति
चूतो
चूताई हितो
णाण
णाणं
जाणग
ततो
तिधा
दव
दूति
नमस्कारः णमोक्कारो
निपातात् णिवातणातो
निबुध्यते
णिबुज्झति
स्वो० टी०
आदि
आदि
इध
इह
इह
उज्जुसुता
कत
गालयति
चूतो
चूता०
णाण
णाणं
जाणग
ततो
तिधा
दव
दूति
णमोक्कारो
णिवातणातो
णि बुज्झति
को०
आइ
आइ
इह
इह
इह
उज्जुसुया
कय
गालयइ
चूओ
चूथाईए०
नाण
नाणं
जाणय
तओ
तिहा
दवए
दुयए
नमोक्कारो
निवायणाओ
निबुज्झइ
आइ
आइ
इह
इह
इह
उज्जुसुया
कय
गालयइ
चूओ
चूयाईए
नाण
नाणं
जे०
आदि
आति
इध
इह
इह
उज्जुसुता
कत
गालयति
चूतो
चूयाती
णाण
णाणं
त०
आदि
आइ
इध
इह
इह
उज्जुसुता
कत
गालयति
चूवो
चूताई
णाण
ཝཱ ༔ བྷྲ
णाणं
जाणग
जाणय
जाणग
तओ
ततो
तिहा
तिधा
दवए
दवते
दुयए
दूति
दुयए
नमोक्कारो
णमोक्कारो णमोक्कारो
निवायणाओ णिवातणावो णिवातणातो
णिबुज्झइ
णिबुज्झति णिबुज्झति
ततो
तिधा
दवते
७२
डॉ० के० आर० चन्द्र