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विमलसूरिकृत पउमचरिय में प्रतिमाविज्ञान-परक सामग्री
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बनती थी। जिन-बिम्ब-युक्त रत्नजटित मुद्रिका, अंगूठे बराबर जिन प्रतिमा तथा रावण द्वारा लघुका जिन प्रतिमा के सर्वदा साथ रखने से सम्बन्धित विभिन्न सन्दर्भ जिन प्रतिमा पूजन की लोकप्रियता के साक्षी हैं । पउमचरिय में विभिन्न स्थलों पर ऋषभनाथ एवं महावीर तीथंकरों के साथ सामान्यतः पाँच ( सिंहासन, छत्र, चामर, अशोक वृक्ष, भामण्डल ) २ या सात ( आसन, छत्र, चामर, भामण्डल, कल्पवृक्ष, दुन्दुभिघोष, पुष्पवर्षा ) प्रातिहार्यो के उल्लेख मिलते हैं । किन्तु दो स्थलों पर अजितनाथ और महावीर के साथ महाप्रातिहार्यों की संख्या आठ भी बताई गई है | ज्ञातव्य है कि गुप्तकाल तक जिनमूर्तियों में अष्टप्रातिहार्यो का नियमित रूप से अंकन होने
लगा था।
पउमचरिय में जिन मूर्तियों एवं मन्दिरों के निर्माण के भी प्रचुर सन्दर्भ हैं । एक उल्लेख के अनुसार मथुरा में सात जैन मुनियों ने शत्रुघ्न को जिन मन्दिरों के निर्माण तथा घर-घर में जिन प्रतिमाओं की स्थापना का निर्देश दिया था।७ एक स्थान पर कहा गया है कि अंगूठे के आकार की जिन प्रतिमा भी महामारी का विनाश करने में सक्षम है। संभवतः घर-घर में जिन प्रतिमा की स्थापना का सन्दर्भ इसी सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से प्रेरित था । विदेह, साकेतपुरी, मथुरा, दशपुर, लंका, पोतनपुर, कैलाशपर्वत, सम्मेतशिखर एवं इसी प्रकार अन्य कई स्थलों पर जिन मन्दिरों (या चैत्यों ) की विद्यमानता के उल्लेख हैं । मिथिला, लंकापुरी ( २ मन्दिर), दशपुर और साकेतपुरी के मन्दिर क्रमशः ऋषभनाथ, पद्मप्रभ ( और शान्तिनाथ ), चन्द्रप्रभ एवं मुनिसुव्रत को समर्पित थे । इस प्रकार पउमचरिय में केवल ऋषभनाथ, पद्मप्रभ, चन्द्रप्रभ, शान्तिनाथ एवं मुनिसुव्रत की ही मूर्तियों एवं मन्दिरों के उल्लेख मिलते हैं । अन्तिम तीन तीर्थंङ्करों - नेमिनाथ पार्श्वनाथ एवं महावीर के मन्दिरों एवं मूर्तियों का सन्दर्भ न देकर रचनाकार ने ऐतिहासिक काल
१. पउमचरिय ३३.५६-५७ १०.४५-४६
२. पउमचरिय २.५३
३. उप्पज्जइ आसणं जिणिन्दस्स | छत्ताइछत्त चामर, तहेव भामण्डलं विमलं ॥ कप्पदुमो य दिव्वो, दुन्दुहिघोसं च पुप्फवरिसं च । सव्वाइसयसमग्गो, जिणवरइड्ढि
समणुपत्तो ॥
- पउमचरिय ४.१८-१९
.....
४. इस सूची में दिव्यध्वनि का अनुल्लेख है ।
५.
अट्टमहापारिपरियरिओ । विहरइ जिणिन्दभाणू, बोहिन्तो भवियकमलाई ।
- पउमचरिय २.३६
'चोत्तीसं च अइसया, अट्ठ महापाडिहेरा य ॥
- पउमचरिय ५.६०
६. चामरघर, प्रभामण्डल एवं देव दुन्दुभि का उल्लेख मिलता है ।
७. पउमचरिय ८९.५०-५१
८. पउमचरिय ८९.५३-५४
९. पउमचरिय २८.३९; ३३.१२६; ७७.२५, २७; ६६.२६; ६७.३६; ७७.३; ८९.२०
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