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III
विभिन्न दर्शनों में योगजन्य शक्तियों का स्वरूप
● साध्वी श्री संघमित्रा
( युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी की शिष्या )
तप एवं ध्यान की प्रक्रिया का परिणाम आत्म-स्य है। निर्मलता के उच्चस्तरीय आरोहण क्रम में आश्चर्यजनक, अलौकिक शक्तियों का अभिजागरण होता है। आत्मा के इस सामर्थविशेष को पातञ्जल योग दर्शन में विभूति, ' श्रीभागवत महापुराण में सिद्धि, दिगम्बर साहित्य में ऋद्धि एवं श्वेताम्बर साहित्य में लब्धि संज्ञा से अभिहित किया गया है। आगम तथा आगम के व्याख्यात्मक ग्रन्थों में लब्धि सम्बन्धी नाना उल्लेख प्राप्त हैं। विशेषावश्यक भाष्य में लब्धि के अट्ठाईस प्रकार हैं:
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१. आमशौषधि सन्धि ४. श्लेषमौषधि लब्धि ७. अवधिज्ञान लब्धि १०. चारण लब्धि १३. गणधरत्व लब्धि १६. ि १६. क्षीर, मधु सर्पिरास्रव लब्धि
२२. तेजोलेश्या लब्धि
२५. वैकुविक देह लब्धि २८. पुलाक लब्धि
२. संभि श्रोता लब्धि ५. जल्लोषधि लब्धि जुमति लब्धि
११. आशीविषय लब्धि १४. पूर्वधारत्व लब्धि १७. बलदेवत्व लब्धि २०. कोष्टक बुद्धि लब्धि २१. आहारक लब्धि
२६. पदानुसारी लब्धि
पातञ्जल योग दर्शन विभूतिपाद३.
श्री भाग० महा० ११।१५।१.
गुणप्रत्ययो हि सामर्थ्य विशेषो लब्धिः । -आ० म० १ अ०.
भगवती शतक ८२३१६.
आमोसहि विप्पोसहि बेनोसहि जल्लोसहि चै
मोसहि भिन्नेो हि रिउ विलम लड़ी ।। १५०६ ।। चारण आसीदिस केवलिय गमहारिणी व पुलधरा अरहंत चक्कट्टी बलदेवा वासुदेवा य ।। १५०७ ।। खीरमसप्पि आसव, कोट्टय बुद्धि पथाणुसारी य तह बीयबुद्धि यग आहारग सीय लेसा य ॥ १५०८ ।।
विदेहली अक्खीण महाणसी पुलाया व
परिणाम तववसेणं एमाई हुति लडीओ || १५०६ ।। – विशे० भा०
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३. विप्रौषधि लब्धि ६. सर्वोपधि लब्धि
६. विपुलमति लब्धि
१२. केवल fr
१५. अर्हत् लब्धि
१८. वासुदेवत्व लब्धि
२१. बीज बुद्धि लब्धि २४. शीतललेल्या लब्धि १७. अक्षीण महानसिक लब्धि
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