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मण्डलकी दाहिनी ओर गजारूढ़ इन्द्राणी और बाँई ओर गरूड़ारूढ़ चक्रेश्वरीकी मूत्तियाँ हैं जिनके मध्य ऊपरी भागमें भगवान नेमिनाथकी ध्यान मुद्रामें लघु मूत्ति उत्कीर्ण है । मूत्तिके नीचेके भागमें कई उपासक बैठे हैं जिनके हाथ अंजली-मुद्रामें दिखाये गये हैं। (८) अमेरिका : (अ) क्लीवलैण्ड कला संग्रहालय, क्लीवलैण्ड, ओहायो
___ इस संग्रहालयमें प्रदर्शित जैन मूर्तियोंमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण मूर्ति पार्श्वनाथकी है जिसका निर्माण मालवा क्षेत्रमें लगभग दसवीं शतीमें हुआ था । लगभग आदमकद इस मूर्ति में पार्श्वनाथ सर्पके साथ फणोंके नीचे कायोत्सर्ग मुद्रामें खड़े हैं और कमठ अपने साथियों सहित उनपर आक्रमण करता दिखाया गया है। जैन साहित्यसे ज्ञात होता है कि जब पार्श्वनाथ अपनी घोर तपस्यामें लीन थे, तब दुराचारी कमठने अनेक विघ्न-बाधायेंडाली जिससे वे तपस्या न कर सकें और उनके लिये उसने उन पर घोर वर्षा की, पाषाण शिलाओंसे प्रहार किया तथा अनेक जंगली जंतुओंसे भय दिलानेका भरसक प्रयत्न किया। परन्तु इतना सब सहते हुये पार्श्वनाथ अपने पुनीत कार्यसे जरा भी विचलित नहीं हुए और अपनी तपस्या पूर्ण कर ज्ञान प्राप्त करने में सफल रहे। परिणाम स्वरूप कर्मठको लज्जित होकर उनसे क्षमा 'माँगनी पड़ी। प्रस्तुत मूर्ति सम्पूर्ण दृश्यको बड़ी सजीवतासे दर्शाया गया है । यद्यपि इस आशयको अन्य प्रस्तर प्रतिमाएँ भारतके अन्य कई भागोंसे भी प्राप्त हुई हैं, परन्तु फिर भी यह मूर्ति अपनी प्रकारका एक अद्वितीय उदाहरण है। (ब) बोस्टन कला संग्रहालय, बोस्टन, मैसाचुसैहस
इस संग्रहालयमें मध्य प्रदेशसे प्राप्त जैन मूर्तियोंका काफी अच्छा संग्रह है। इनमें अधिकतर तो प्रथम तीर्थकर आदिनाथ की मूर्तियाँ हैं जिनमेंसे कुछमें वह ध्यान मुद्रामें तथा कुछमें कायोत्सर्ग-मुद्रामें दर्शाये गये हैं। उन प्रतिमाओंके अतिरिक्त यहाँ एक अत्यन्त कलात्मक तीर्थंकर वक्ष भी है, जिसे संग्रहालय की पट्टि कामें महावीर बताया गया हैं। परन्तु यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रस्तुत मूर्तिमें केश ऊपरको बँधे हैं और जटाएँ दोनों ओर कंधोंपर लटक रहीं हैं । इससे प्रतिमाकी आदिनाथके होनेकी ही सम्भावना प्रतीत होती है। इनके शीशके दोनों और बादलोंमें उड़ते हुए आकाशचारी गन्धर्व और "त्रिछत्र" के ऊपर आदिनाथकी ज्ञान-प्राप्तिकी घोषणा करता हुआ एक दिव्य-बादक बना हुआ है। यह सुन्दर मूर्ति दसवीं शतीकी बनी प्रतीत होती है। (स) फिलाडेल्फिया कला संग्रहालय, फिलाडेल्फिया
इस संग्रहालयमें सबसे उल्लेखनीय जैन मूर्तियाँ जबलपुर क्षेत्रसे प्राप्त कल्चुरिकालीन दसवीं शतीकी हैं। इसमेंसे एक भगवान महावीरकी है जिसमें उन्हें कायोत्सर्ग मुद्रामें दिखाया गया है । द्वितीय प्रतिमामें पार्श्वनाथ तथा नेमिनाथको इसी प्रकार खड़े दिखाया गया है। पार्श्वनाथकी पहचान उनके शीशके ऊपर बने सर्फ फणोंसे तथा नेमिनाथकी पहचान पीठिका पर उत्कीर्ण शंखसे की जा सकती है। (द) सियाटल कला संग्रहालय, सियाटल
इस संग्रहालयमें भी मध्य प्रदेशसे प्राप्त कई मध्यकालीन जैन प्रतिमाएँ विद्यमान हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ गुजरातसे बिली भगवान कुन्थुनाथकी एक पंचतीर्थी है जिसकी पीठिका पर सन् १४४७ ई० का लघु लेख उत्कीर्ण है। साथ ही, यहाँ आबू क्षेत्रसे प्राप्त नर्तकी नालार्जनाकी भी सुन्दर मूर्ति प्रदर्शित है जिसका प्राचीनतम अंकन हमें मथुराकी कुषाण कलामें देखनेको मिलता है ।
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