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मार दिया है न चाहते हुए भी शिक्षक व बालकों को अगले पीरियड में लगना पड़ता है। कालांश पद्धति का एक बड़ा दुर्गुण यह भी है कि बालक भावनात्मक दृष्टि से किसी भी शिक्षक से नहीं जुड़ पाता है। उसके लिए तो वे सब विषय शिक्षिक (Subject Teacher) हैं जबकि इन्हीं में से उस को दीदी, ताई या मौसी चाहिये किसका जब चाहे पल्लू पकड़कर मन की बात कर सके ।
दूसरे- बच्चों के नैसर्गिक स्वस्थ विकास में बाधक बनता है पहले से तय शुदा दैनिक पाठ्यक्रम शिक्षक को अपने कालांश में आना है और पहले से तैयार पाठ पढ़ाना है। उसके पास इसके लिए कोई गुंजाइश नहीं है कि उसके बच्चे आज क्या जानना चाहते हैं, क्या करना या पढ़ने की इच्छा है, आज वातावरण को देखते हुए उनकी उत्सुकता किसमें है? शिक्षक को मासिक, त्रैमासिक वार्षिक विभाजन के अनुसार पाठ्यक्रम पूरा कराने से मतलब है। अमेरिकन शिक्षाशास्त्री जान हाल्ट ने अपनी पुस्तक “बच्चे असफल कैसे होते हैं?" में विस्तार से प्रका डाला है।
तीसरा- बालक की शिक्षा में माध्यम का अति महत्वपूर्ण स्थान है। प्राथमिक स्तर तक हर हालत में शिक्षा का माध्यम बालक की मातृभाषा होना चाहिये सभी शिक्षा शास्त्रियों ने इसकी अनिवार्यता बताई है। अरे, किस भाषा में बालक ने शिशु अवस्था में ही रोना, गाना, गुनगुनाना सीखा है। जिस भाषा में वह घर में वे सारी बातें करता है, आनन्दित होता है। स्कूल में जाते ही सब छूट जाते हैं और सौतेली मां अंग्रेजी माध्यम उसकी झोली में डाल दिया जाता है। अभिव्यक्ति की शिक्षा का लक्ष्य होता है जिस बालक की अभिव्यक्ति शक्ति जितनी पुष्ट होगी उसका सर्वांगीण विकास उतना ही उत्तम होगा ।
साठ के दशक की बात है। मैं बालनिकेतन जोधपुर में कक्षा ४ का अध्यापक था। एक दिन की बात है कि हिन्दी में अपनी पूर्व निश्चित पाठ्य सामग्री लाया था। अचानक बादल छाने लगे। हल्की बूंदें भी पड़ने लगी। वारिश का मौसम था ही। बच्चे वर्षा व बादलों सम्बन्धी चर्चा करने लगे मैंने रोका नहीं, प्रोत्साहित किया। कुछ मिनटों बाद अचानक मैंने उनसे कहा'आप वर्षा ऋतु पर निबंध लिखना चाहेंगे।' सबने बड़े उल्लास के साथ हां भर दी। मैंने कहा- "आज की विशेषता यह होगी कि आज समय कितना भी लगे, हर बालक, बालिका विस्तार से अपने विचार प्रकट करे।" एक कक्षा एक शिक्षकवाली व्यवस्था होने से कालांश व शिक्षक बदलने की कोई आवश्यकता नहीं थी । आज ५० वर्ष बाद भी मुझे उस सरिता का चेहरा याद है जिसने अपनी कापी के १४ पृष्ठ भरे थे। इस लेख में पुनरावृत्ति के अंश काट भी दिये फिर भी १० या ११
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पृष्ठ का तो था ही देखा आपने माध्यम व अभिव्यक्ति का
चमत्कार |
स्वामी विवेकानन्दजी ने लिखा है (पुस्तक - शिक्षा) " मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है ।" जन्मजात व वातावरण से प्राप्त शक्तियों का कैसे होगा सुन्दर विकास कैसे हो जायेगी अभिव्यक्ति ?
आइए, विचार करें हम पालक, शिक्षक व यह शिक्षण व्यवस्था । हम क्या चाहते हैं? क्या कर रहे है ? और क्या पाएंगे ? पा सकेंगे, बुद्धि व भावना से पूर्ण सुविकसित इन्सान | एक सुसंस्कृत, अनुशासित व प्रसन्नचित्त समाज ।
अभी तक हमारी सारी कथा व्यथा हुई, बच्चे के स्वास्थ्य, शिक्षण व्यवस्था और उसकी दशा पर । अब हम चले घर परिवार में जहां बच्चा पैदा होता है, आंखें खोलता है, किलकारी करता है, तुतलाता है, बोलना चहता है-म म म मां मां व बा दद दा । आस पास की वस्तुओं से परिचित होना चाहता है, उनके नाम जानना बोलना चाहता है हम सबको बोलते देखकर । और हम बड़ा प्यार दिखाते हुए बताते हैं मा मम्मी पापा, एप्पल, आंटी, अंकल । थोड़ा और आगे बढ़ें तो टीचर, मेडम, फादर । यह सब बताते रटाते हुए हम अपने बच्चे के प्रति बड़े गौरवपूर्ण उत्तरदायित्व निर्वहन की अनुभूति करते हैं मा, दादा, बहिन, ताई, गुरुजी ये सब तो पिछड़े लोगों के सम्बोधन हो गये।
बच्चा कुछ माह का ही हुआ और कच्छी पहनाना अनिवार्य कर दिया। साल डेढ़ साल का बच्चा कहीं बिना कच्छी सामने आ गया। माता-पिता शेम कहते उसे जबरन कच्छी पहनाने दौड़ पड़ते हैं। बच्चा मस्ती में रहना चाहता, खुला घूमना, कूदना, फांदना चाहता है। हम उससे वह सब छीन लेते हैं। तारीफ की बात यह है कि हम अविवेकी होकर बच्चे पर यह सब लाद रहे हैं। जर्मनी के प्रोफेसर जुस्ट ने अपनी पुस्तक रिटर्न टू नेचर में लिखा है कि बच्चे को ५ साल की उम्र तक नंगा घूमना चाहिये उसे पुष्ट होने दें, निकर न पहनायें ।
मेरा पोता जब डेढ़ दो साल का रहा होगा, नंगा खेलता, घूमता रहता था । उसकी मां ने मुझे लाचारी भाषा में कहा " यह बच्चा चड्डी नहीं पहन रहा है। मैने कहा मत पहनने दो, घूमने दो ऐसे ही। फिर मां ने कहा “अच्छा नहीं लगता और उसकी ऐसी आदत पड़ जायेगी।" मैने कहा "डरो नहीं, जब समय आयेगा, वह अपने आप पहनने लगेगा।" और समयानुसार वह अपने आप पहनने लग गया।
बरसते पानी में मेरा पोता ६-७ का था तब नहाना चाहता है । मैं, हां भर देता हूँ। हर साल बरसात में वह ४-५ बार तो नहाता ही है। उसकी मां कहती है। सर्दी लग जायेगी। पर कभी नहीं लगी ।
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