________________ की संख्या कम नहीं है। कभी है तो उनके स्वाध्यायियों लक्षण पर्वो को समर्पित मत करो। प्रत्येक दिन अहिंसा और उपासकों की है / इस संख्या को बढ़ाने की ओर का है, क्षमावाणी का है। जब तक धर्म की इस दार्शध्यान देना अतीव आवश्यक है। भगवान की मूर्तियाँ, निक व्याख्या हृदयंगम नहीं करोगे, धर्म जीवन का एक एक मन्दिर में अनेक है। देव दर्शन के नियमों का अंग बनेगा। अग्नि और उसका दाहकत्व, पानी और पालन करने में अपनी धर्म प्रवत्ति लगाओ। धर्म और उसका शीतत्व. अग्नि से पथक होकर नहीं रहता। लौटने पर मूर्ति आँखों से परोक्ष हो गई / भावचक्षुओं की सुरक्षा के लिए यह स्मरण रखना आवश्यक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org