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________________ वर्तमान युग में महावीर के उपदेशों यशपाल की सार्थकता सन् 1969 में जब महात्मा गाँधी का जन्म-शताब्दी समारोह देश-विदेश में मनाया गया था, कुछ व्यक्तियों ने खुले आम कहा था कि अब लोगों के सोचने का ढंग कुछ और हो गया है, समाज की मान्यताएँ बदल गई हैं, देश का मुह दूसरी ओर हो गया है, ऐसी दशा में गाँधी जी के नाम और सिद्धान्तों का ढिंढोरा पीटने से लाभ क्या है ? उन लोगों की धारणा यह थी कि गाँधीजी के उसूल पुराने पड़ गये हैं, और आज युग के लिए उनकी कोई सार्थकता नहीं है। पाठक भूले नहीं होंगे कि इस संदर्भ में बहुत-सी गोष्ठियाँ आयोजित की गई, समाचार-पत्रों में लेख लिखे गये, काफी साहित्य का प्रकाशन किया गया और यह सिद्ध करने की भरपूर कोशिश की गई कि गाँधीजी के सिद्धान्त आज भी उपयोगी हैं और कि वे युग-युगान्तर तर्क संगत एवं उपयुक्त रहेंगे। जिनके निधन को मुश्किल से 27 वर्ष हुए हैं, उन गांधीजी के बारे में जब ऐसा कहा जा सकता है, तब भगवान महावीर के विषय में यही बातें कही जाएँ तो आश्चर्य क्या, जिनके निर्वाण को 2500 वर्ष हो गये। सच यह है कि हमारे देश में महापुरुषों के सिद्धांतों की मूल आत्मा को समझकर आत्मदर्शन करने का प्रयास बहुत कम हुआ है। यही कारण है कि महापुरुषों का निरन्तर गुणानुवाद करके भी हम उनके आत्म-शोधक तथा लोककल्याणकारी मार्ग का अनुसरण नहीं कर पाये । भगवान महावीर के 2500 वें निर्वाण महोत्सव को 13 नवम्बर, 1974 से 15 नवम्बर 1975 तक देश विदेश में मनाने की योजना बड़ी भावना, उमंग और उत्साह से बनाई गई। राष्ट्रीय समिति बनी, जैन महासमिति का गठन हुआ. विभिन्न प्रान्तों में समितियों का निर्माण किया गया, छोटी-बड़ी अन्य संस्थाओ ने भी अपने-अपने क्षेत्र में, अपने-अपने साधनों के अनुसार इस महायज्ञ में अपना हविर्भाग अर्पित करने की चेष्टाएँ की। योजनाएं ३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211889
Book TitleVartaman Yug me Mahavir ke Updesh ki Sarthakata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherZ_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
Publication Year
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Society
File Size468 Kb
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