________________ वर्ण : पदार्थ का एक अभिन्न गुण 237 कि सफेद अथवा काला रंग नहीं हैं बल्कि वस्तु का कुछ विशिष्ट लाग है। अतः उपवार से हम कह सकते हैं कि सफेद या काला भी रंग होता है। जब सूर्य से आने वाला सफेद प्रकाश प्रिज्म में से गुजरता है, तो मुरूपतः सात रंगों का स्पेक्ट्रम दिखाई देता है / तब ये सात रंग पांच रंगों से भिन्न हुए / प्रकाश स्वयं एक स्कन्ध है / अतः जो कुछ हम देखते हैं, उसका माध्यम स्कन्ध है, न कि परमाणु / जब हम विभिन्न रंगों को देखने की बात कहते हैं, तो उसका मतलब स्कन्ध के रंगों से ही है / ये स्कन्ध प्रकाश के रूप में वस्तु से परावर्तित होकर हमारी आँखों तक आते हैं तथा हमें रंगों का आभास कराते हैं / स्कन्ध का रंग उसके विभिन्न परमाणुओं की विभिन्न तीव्रताओं का परिणाम है / इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुचे कि पदार्थ के सबसे सूक्ष्म कण-परमाणु का रंग तोन रंगों में से कोई एक अवश्य होता है। ये रंग नोला, पोला तथा लाल है। दो रंग-सफेद तथा काला उपचार से कहे गये हैं। लेकिन स्कन्ध का रंग इन पांच रंगों से भिन्न हो सकता है, वह उसके विभिन्न परमाणु के रंगों पर आश्रित है। अतः जैनधर्म में पुद्गल (पदार्थ) के रंगों के बारे में जो कुछ कहा गया है, वह परमाणु की अपेक्षा ही सही है; स्कन्ध की अपेक्षा से नहीं। सभी जीवों को अपनी आयु प्रिय है, सभी सुख चाहते हैं और दुःख से घबड़ाते हैं / सभी को बध अप्रिय है और जीवन प्रिय है, सभी जोना चाहते हैं / ज्ञानो होने का सार यही है, किसी प्राणो की हिंसा न करो। इतना ही जानो कि अहिंसा और समता हो धर्म है / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org