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________________ लेखसार वास्तविकता और भौतिकी : कुछ पहलू डी० एस० कोठारी, दिल्ली ___ न्यूटन की यांत्रिकी में ईश्वरवाद के साथ परम आकाश और काल की मान्यता रही है। इस आधार पर स्थूल जगत की व्याख्या भी की जाती रही / लेकिन मैश और प्राइन्स्टीन के सापेक्षतावाद और क्वान्टम यांत्रिकी ने इस मान्यता में आमूल परिवर्तन कर दिया। ये नई मान्यतायें भारतीय उपनिषदों के समरूप ठहरती हैं। वास्तव में, शरीर और मन का सम्बन्ध एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें विज्ञान अभी कोई विशेष व्याख्या नहीं दे पाई है। अरबिन श्रोडिन्जर ने अपनी एक पुस्तक में 'तत्त्वमसि' के सम्बन्ध में विचार प्रकट किये हैं और उसके आधार पर तरंग यांत्रिकी का विकास किया / बोहर का पूरकवाद भी उपनिषदों के मानव और विश्व, आत्मा और शरीर आदि के सम्बन्धों पर आधारित है। यह पूरकवाद जैन दर्शन में भो विशेष महत्व का है जब भगवान् महावीर कहते हैं कि यह आत्मा द्रव्य दृष्टि से अनादि-अनन्त है और भाव दृष्टि से सादिसान्त है। इसी प्रकार स्याद्वाद का सिद्धान्त भी आज के वैज्ञानिक और नैतिक धरातल पर महत्वपूर्ण बन गया है / इसके अनुसार वस्तु का पूर्ण विवरण सात रूपों में किया जा सकता है। इस निरूपण का निदर्शन क्वान्टम यांत्रिकी के अध्यारोपण सिद्धान्त से होता है / यहाँ भी स्याद्वाद के समान सन्दर्भ विन्दुओं को महत्व दिया जाता है। यह दृष्टिकोण अरस्तू के एकान्तवादी तर्कशास्त्र से अधिक ब्यापक और व्यावहारिक है। यह सचमुच ही आश्चर्य की बात है कि स्याद्वाद केवल दार्शनिक क्षेत्र में ही क्यों सीमित रह गया ? इसने परिमाणात्मक विकास क्यों नहीं किया ? आधुनिक विज्ञान की वस्तुनिष्ठता का मूल यह स्याद्वादी दृष्टिकोण ही है। इसमें व्यक्तिनिष्ठता का समावेश नहीं हो सकता। इसको समझने के लिये मन और मस्तिष्क का अन्तर अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मस्तिष्क वस्तुनिष्ठ होता है / इसके विषय में विज्ञान ने पर्याप्त जानकारी दी है। इसके विपरीत, मन व्यक्तिनिष्ठ होता है / ध्वनि की लहरियां मस्तिष्क में विद्युत् प्रवाह के रूप में आती हैं। यह मन में संगीत की अनुभूति कैसे उत्पन्न करता है ? इस प्रश्न का उत्तर विज्ञान ने अभी तक नहीं दिया है / वस्तुतः मन न तो ऊर्जा के रूप में और न ही कण के रूप में समझा जा सका है। यह जीव-विज्ञान के क्षेत्र से बाहर की वस्तु है। फिर . मन और शरीर का संबन्ध क्या है ? फिर भी हम जानते हैं कि ये दोनों एक-दूसरे को निर्विवाद रूप से प्रभावित करते हैं। जोन-बान न्यूमैन ने मन को चेतना का पर्यायवाची माना है। व्यक्तिनिष्ठ ज्ञान हमें जीवन के अन्तरंग की ओर ले जाता है। इस आधार पर हम विश्व को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-दृश्य और दृष्टा / इन दोनों के मध्य की सीमारेखा पर्याप्त स्वैच्छिक और अस्पष्ट है। हमारा शरीर एक यन्त्र है पर उसका नियन्त्रण 'मैं' करता है। इन दो तथ्यों से "मैं" का प्राकृतिक अस्तित्व सिद्ध होता है / श्रोडिन्जर के अनुसार, यही "मैं" भारतीय उपनिषद् और वेदान्त का मूल है / मन और शरीर के इस नियामक संबंध की वैज्ञानिक दृष्टि से खोज आवश्यक है क्योंकि यह पूरकवाद पर आधारित है। जंग और पाउली आदि ने इस विषय पर विचार तो किया है, पर उनके निष्कर्ष समस्यात्मक हैं, समाधानपरक नहीं। विज्ञान कहता है-इस विश्व और मानव जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है / लेकिन हमारा “मैं” ठीक इससे विपरीत ही कहता है / इस विश्व और 'मैं' का बन्धन-सेतु क्या है ? वस्तुतः यहाँ मूलभूत प्रश्न "मैं" का है जो विश्व और जीवन से अधिक मौलिक और रहस्य मय है / विज्ञान आज भी इस समस्या के समाधान में उलझा हुआ है। उसके पास 'मैं' के लिये कोई उत्तर नहीं है, पर वह इसे अपनी समस्या तो मानता ही है। -374 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211861
Book TitleReality and Physics Some Aspects
Original Sutra AuthorN/A
AuthorD S Kothari
PublisherZ_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf
Publication Year1980
Total Pages10
LanguageEnglish
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size877 KB
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