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है और उसकी व्यक्तिगत विशेषताएँ भी सामने आती हैं । इस सम्बन्धमें बीजड़ियों खवास (बात वीरमदे " 2 सोनगरा री) और फोगसी एवाल (बाल फोगसी एवाल री) आदिके नाम उदाहरणस्वरूप लिये जा
सकते हैं ।
राजस्थानी बातों में प्रायः शीर्षक किसी पात्रके नामके अनुसार मिलता है। इसका स्पष्ट कारण यही है कि वहाँ पात्रको प्रधानता दी गई है और उसका जीवन तथा चरित्र प्रकट करना बातका मूल उद्देश्य है ।
पात्रोंकी चारित्रिक विशेषताओंका प्रकाशन भी राजस्थानी बातोंमें दो प्रकारसे हुआ है । प्रथम प्रकार में लेखक द्वारा पात्र विशेषके गुण अथवा अवगुणोंका उद्घाटन कर दिया जाता है। प्रायः ऐसा बातके प्रारंभ में ही हो जाता है और आगे चलकर पात्र तदनुसार ही कार्य करता है । एक उदाहरण द्रष्टव्य है
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"पातसाह री बेटी परणीयों, देपाल घंघ रजपूत अठै देपालपुर राज करें। अठै ओ भोमोयौचारो करें सोई पास असवार २५ रहे। सो बड़ा सामंत, बड़ा तरवारीया अर देपाल पिण बड़ी तरवारीयों । जैसोई दातार, बड़ी रजपूत सो ओ भौमोचारी करें परखंडा रा माल ले आवे। त गांम मोहे के मैं खावै खरच | गांम मांहे बड़ी गड़ी, बलवंत सु देपाल अठे ईमें भांत सु रहे ।
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चरित्र-चित्रणका दूसर प्रकार वह है, जिसमें लेखक स्वयं अपनी तरफसे पात्रकी विशेषताएँ प्रकट न करके उसके कार्यों एवं शब्दों द्वारा ही ऐसा करवाता है । यही तरीका श्रेष्ठ है । अधिकतर राजस्थानी बातों में यही तरीका अपनाया गया है ।
पात्रोंके चरित्र चित्रण में आदर्श और यथार्थका विभेद महत्त्वपूर्ण विषय है । इस विषय में दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी विशेषताएँ रखते हैं। इनके द्वारा कलात्मक सामग्रीके मूल उद्देश्यका प्रकाशन होता है। मानव चरित्रमें जहां आदर्शका महत्व है, वहाँ यथार्थका भी है। असल में आदर्श और यथार्थके समन्वित रूपका नाम ही मानव-जीवन है । ऐसी स्थिति में मानवजीवनके इन दोनों पक्षोंपर ध्यान देनेसे ही कलात्मकसामग्री का उद्देश्य सफल होता है । कहीं एक पक्ष कुछ अधिक बलवान् हो सकता है तो कहीं दूसरा ।
राजस्थानी बातों में पात्रोंके चरित्रपर ध्यान देनेसे प्रकट होता है कि वहाँ आदर्श और यथार्थ दोनों रूपों में चित्रण हुआ है । बातोंमें जहाँ बहुत अधिक आदर्श पात्र हैं तो राजस्थानी बातोंकी वह एक विशेषता है ।
यथार्थ पात्र भी कम नहीं हैं ।
आदर्श
भारतीय साहित्यकी मूळ प्रवृत्ति सदासे आदर्श चरित्रोंको प्रकट करनेकी रही है। प्रधान रूपमें यहाँ कथापात्र अनेक गुणोंसे विभूषित देखे जाते हैं। लेखकोंने पाठकोंके सामने दिव्य चरित्र प्रस्तुत करने में अपनी कलाको सार्थक माना है । यही प्रेरणा राजस्थानी बातोंमें भी है । वहाँ इस प्रकारके बहुसंख्यक पात्र हैं, जो आश्चर्य जनक रूपसे गुणान्वित हैं। समाजको बल देने के लिए इस प्रकारके चरित्रोंको बातोंमें प्रकाशमान किया गया है। इस सम्बंध में कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं
(१) जगदेव पँवारको बातमें - जगदेव अपनी बिमाताको डाहके जाता है और सिद्ध राजकी सेवा स्वीकार करता है । वहाँ वह अपने स्वामीकी
१. राजस्थानी वातां (श्री सूर्यकरण पारीक )
२. वरदा, भाग ५, अंक ४ ।
३. बातां रो झूमखो, दूजो ।
२४६: अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ
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कारण राज्य छोड़कर चला आयुवृद्धिके लिए अपने पूरे
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