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स्तुति की, और यह प्रार्थना की कि भगवन् ! हमें चौथी कृति 'मेषमाला व्रतकथा' है। इस कथा आपका ही सहारा है, हम सब लोगों की इस विपत्ति की उपलब्धि भट्टारक हर्षकीर्ति अजमेर के शास्त्र से रक्षा हो । ऐसा कहने के पश्चात् भी लोगों को यह भंडार के एक गुटके पर से हुई है। यह कथा 115 विश्वास न था कि इस विपत्ति से हमारा संरक्षण हो कठवक और 211 श्लोकों के प्रमाण को लिए हुए है। जावेगा। किन्तु उसी समय जनता को यह स्वयं आमास इस ग्रन्थ की आदि अम्त प्रशस्ति में इस कथा के रचने होने लगा कि घबड़ाओ नहीं, शान्त चित्त से रहो, में प्रेरक, तथा कथा कहाँ बनाई गई, वहाँ के राजा सब शान्ति हो जायेगी और लोगों के देखते-देखते और कथा का रचना काल दिया हुआ है। । ही वह भयंकर विपदा सहसा ढल गई । लोगों को अभय मिला, प्रजा में शान्ति होगई, चित्त में निर्भयता आई | यह दृश्य देख जनता पार्श्वनाथ की जय बोलने लगी। जो लोग भय से भाग गये थे, वे अधिक दुःखी हुये, किन्तु नगर में रहनेवाले जन सुखी रहे। यह कवि का आँखों देखा घटना वर्णन कवि के शब्दों में इस प्रकार है :
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जब सुलीय उ राणि संग्राम, रणथंमुवि दुग्ग गहु । जब इब्राहिम साहि कोपिङ, बलु बोली मोकलिउ । बोलु कवल सबु तेण लोपिङ, जिव लग उग्झलि हाय सउं मेच्ख मूढ भय वज्जि, चंपावति विणु देस सब गणवह दिसमंज 1121
तबहि कंपि सथल पुरलोउ, कोइ न कसु वर जिउ रहइ भाजि दहै दिसि जाण लगे, मिलिबिकरी तब बीनती । पारसणाह स्वामी सु अर्थ, सवणा जोतिक केवलि । चितु न करे विसासु, कालि पंचम पास पहु, जुग लगउ तु आस ॥22॥
एम पि विकरि विथुई पुज्ज, महिलदास पंडित पमुह । स इह था समीपु चायउ उच्चावंत न उच्चयउ । वो जाणि सुरविर सवीय इणविधि परतिउवारतिहु पूरि वि हरी भणति, जयवंतहु हो पास पहु, जेण करी सुख सांति ॥24॥
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कवि की तीसरी कृति 'जन चउबीसी' है, जिसमें जैनियों के चौबीस तीर्थ करों का स्तवन किया गया है । स्तवन सुन्दर है ।
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मेघमाला व्रत भाद्रपद मास की प्रथम प्रतिपदा से शुरू करे, उस दिन उपवास करे और जिन पूजा विधान तथा अभिषेक करे, सारा दिन धर्म ध्यान में व्यतीत करे और पांच वर्ष पर्यन्त इस व्रत का अनुष्ठान करे । पश्चात् उसका उद्यापन करें, उद्यापन की शक्ति न हो तो दूने दिनों तक व्रत पाले । जिन लोगों ने उस समय इस व्रत का पालन किया था, कवि ने उनका नाम भी प्रशस्ति में अंकित किया है। उससे ज्ञात होता है कि उस समय चम्पावती में इस व्रत के अनेक अनुष्ठाता थे, जिन्होंने निष्ठा से व्रत का पालन किया था । उस समय वहाँ राजा रामचन्द्र का राज्य था, और भट्टारक प्रभाचन्द्र वहां मौजूद थे ।
इस ग्रन्थ की आदि प्रशस्ति में बतलाया है कि कि देश के मध्य में चम्पावती ( जयपुर राज्य दुढ़ाहड वर्तमान चारसू ) नाम की एक नगरी है, जो उस समय धन-धान्यादि से विभूषित थी और जिसके शासक राजा रामचन्द्र थे । वहाँ भगवान पार्श्वनाथ का मन्दिर भी बना हुआ था जिसमे तात्कालिक मट्टारक प्रभाचन्द्र गौतम गणधर के समान बैठे थे और जो नगर निवासी भव्यजनों को धर्मामृत का पान करा रहे थे। उनमें मल्लिदास नामक वणिक पुत्र ने कवि ठकुरसी से मेघमाला व्रत कथा कहने की प्रेरणा की । उस समय चम्पावती नगरी में अन्य समाजों के साथ खंडेलवाल जाति के अनेक घर थे जिनमें अजमेरा और पहाडया गौत्रादि के सज्जनों का निवास था, जो श्रावकोचित
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