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________________ यहाँके कुण्ड और उनका महत्त्व यहाँके लगभग २६ कुंडोंने राजगृहकी महत्ताको और बढ़ा दिया है । दूर-दूरसे यात्री और चर्म रोगादिके रोगी इनमें स्नान करनेके लिये रोजाना हजारोंकी तादाद में आते रहते हैं। सर्यकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड और सप्तधाराओंका जल हमेशा गर्म रहता है और बारह महीना चालू रहते हैं । इनमें स्नान करनेसे वस्तुतः थकान, शारीरिक क्लान्ति और चर्मरोग दूर होते हए देखे गये हैं। लकवासे ग्रस्त एक रोगीका लकवा दो तीन महीना इनमें स्नान करने से दूर हो गया। कलकत्ताके सेठ प्रेमसुख जी को एक अङ्गमें लकवा हो गया। वे भी वहाँ ठहरे हैं और उनमें स्नान करते हैं । पूछनेसे मालूल हुआ कि उन्हें कुछ आराम है । हम लोगोंने भी कई दिन स्नान किया और प्रत्यक्ष फल यह मिला कि थकान नहीं रहती थी-शरीरमें फरती आजाती थी। राजगृहके उपाध्याय-पण्डे कुण्डोंपर जब हमने वहाँके सैकड़ों उपाध्यायों और पण्डोंका परिचय प्राप्त किया तो हमें ब्राह्मणकूलोत्पन्न इन्द्रभूति और उनके विद्वान् पाँचसौ शिष्योंकी स्मति हो आई और प्राचीन जैन साहित्यमें उल्लिखित उस घटनामें विश्वासको दृढ़ता प्राप्त हुई, जिसमें बतलाया है कि वैदिक महाविद्वान् गौतम इन्द्रभूति अपने पाँचसौ शिष्योंके साथ भगवान महावीरके उपदेशसे प्रभावित होकर जैनधर्म में दीक्षित हो गया था और उनका प्रधान गणधर हुआ था। आज भी वहाँ सैकड़ों ब्राह्मण 'उपाध्याय' नामसे व्यवहृत होते हैं । परन्तु आज वे नाममात्रके उपाध्याय हैं और यह देख कर तो बड़ा दुःख हुआ कि उन्होंने कुण्डोंपर या अन्यत्र यात्रियोंसे दो-दो, चार-चार पैसे माँगना ही अपनी वृत्ति-आजीविका बना रखी है। इससे उनका बहुत ही नैतिक पतन जान पड़ा। यहाँके उपाध्यायोंको चाहिए कि वे अपने पूर्वजोंकी कृतियों और कीत्तिको ध्यानमें लायें और अपनेको नैतिक पतनसे बचायें। श्वेताम्बर जैनधर्मशाला और मन्दिर यहाँ श्वेताम्बरोंकी ओरसे एक विशाल धर्मशाला बनी हुई है, जिसमें दिगम्बर धर्मशालाकी अपेक्षा यात्रियोंको अधिक आराम है। स्वच्छता और सफाई प्रायः अच्छी है । पाखानोंकी व्यवस्था अच्छी है-यंत्रद्वारा मल-मत्रको बहा दिया जाता है. इससे बदब या गन्दगी नहीं होती। यात्रियोंके लिये भोजनके वास्ते कच्ची और पक्की रसोईका एक ढाबा खोल रखा है. जिसमें पाँच वक्त तकका भोजन फ्री है और शेष समयके लिये यात्री आठ आने प्रति बेला शुल्क देकर भोजन कर सकता है और आटे, दाल, लकड़ीकी चितासे मुक्त रहकर अपना धर्मसाधन कर सकता है। भोजन ताजा और स्वच्छ मिलता है। मैनेजर बा० कन्हैयालालजी मिलनसार सज्जन व्यक्ति हैं। इन्हींने हमें धर्मशाला आदिकी सब व्यवस्थासे परिचय कराया। श्वेताम्बरोंके अधिकारमें जो मन्दिर है वह पहले दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनोंका था। अब वह पारस्परिक समझौतेके द्वारा उनके अधिकार में चला गया है । चार जगह दर्शन हैं । देखने योग्य है । बा० छोटेलालजीके साथ १३ दिन कई बातोंपर विचार-विमर्श करनेके लिये बा० छोटेलालजी कलकत्ता ता० ५ मार्चको राजगृह आ गये थे और वे ता० १८ तक साथ रहे । आप काफी समयसे अस्वस्थ चले आ रहे हैं-इलाज भी काफी करा चके हैं, लेकिन कोई स्थायी आराम नहीं हुआ। यद्यपि मेरी आपसे दो-तीन वार पहले भेंट हो चुकी थी। परन्तु न तो उन भेंटोंसे आपका परिचय मिल पाया था और न अन्य प्रकारसे मिला था । परन्तु अबकी बार उनके निकट सम्पर्कमें रह कर उनके व्यक्तित्व, कर्मण्यता, प्रभाव और विचारकताका आश्चर्यजनक परिचय - ४८४ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211814
Book TitleRajgruhi ki Meri Yatra aur Anubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherZ_Darbarilal_Kothiya_Abhinandan_Granth_012020.pdf
Publication Year1982
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Pilgrimage
File Size451 KB
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