SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इन पांच तत्वों के धर्म को गहन चिन्तन से परखो। मिट्टी की करुणा, जल का समन्वय, वायु का निराकार रूप में प्राण फूंकना, आकाश का विश्वबन्धुत्व, अग्नि का ऊर्जा-वितरण एवं प्रकाश देना ही धर्म का सार है। सेवा को ही परमोधर्मः कहा है- हमारे शास्त्रों ने, धर्म ग्रन्थों ने। ईश्वर ने यह विराट शक्तियां हमें इसीलिए प्रदान की हैं- ताकि हम शक्तियों का मूल्यांकन करें- अपने जीवन का मूल्यांकन करें। कुछ रुपयों की ही पाकेटमारी हो जाये- तो हम अपने सभी साथियों को इसकी जानकारी करायेंगे। लेकिन समय के निरर्थक चले जाने की चर्चा हम कहीं नहीं करेंगे। जीवन का एक छोटा सा हिसाब समझो। यदि एक व्यक्ति औसत में अस्सी वर्ष जीता है तो उसे कुल 29000 दिन मिले। आठ घंटे सोने के हिसाब से उसका 1000 दिन सोने में चला जाता है। आठ घंटा अध्ययन अथवा रोजगार करे तो 10000 दिन एवं करीब चार घंटा नित्य-कर्म तथा आने-जाने में लगने से 4500 दिन और चले गये। बाकी बचे 4500 दिन भी यदि जन्मदिन, विवाह, टीवी, सिनेमा, घूमना-फिरना, गप्पबाजी आदि में व्यतीत कर दें तो अच्छे कार्यों के लिये अमूल्य समय कहां बचा। समय का सदुपयोग ही जीवन का सही मूल्यांकन है। - अब अपने विचार करें कि हम क्या कर सकते हैं? इसके लिये सबसे पहले तुम्हारे मन में औरों के लिये कुछ करने के जो विचार मन में उठते हैं- उन्हें कागज पर नोट करो। कागज पर अपने विचार नहीं उतारोगे तो विचार इसी तरह आते रहेंगे- जाते रहेंगे एवं तुम वहीं के वहीं रह जाओगे। तुमने सुना होगा- कुछ पंडित भांग पीकर एक नौका में बैठ गये। रात का समय था। नौका की रस्सी खूटे से ही बंधी रह गई एवं वे रात भर नौका खेते रहे। उन्हें सुबह पता चला कि वे जहां थे वहीं हैं। अत: संकल्प के साथ अपनी आत्मा के निर्देश को समझते हुए उस ओर आगे बढ़ो। ___ तुम अर्थ-युग से गुजर रहे हो। तुम जानते ही हो कि पिछली बार शेयरों की आंधी ने क्या किया। तुम्हारे ही अनेक साथी पैसों की अंधी दौड़ में दौड़ पड़े। पैसा कमाना ही आज जीवन का मापदण्ड बन गया है। परन्तु तुमने क्या किसी पैसे वाले का चित्र किसी के घर में टंगा देखा है। तुमने चित्र देखे होंगे- हमारे ऋषि-मुनियों के, देश एवं समाज सेवकों के। आज फैशन एवं फिजूलखर्ची की दुनिया है। क्रिकेट, सिनेमा आदि की टिकटें हम ऊंचे दामों में खरीदते कभी नहीं हिचकिचाते। बर्थ डे पार्टी, शादी-विवाह, पहनावा आदि मदों में खर्चों की कोई परवाह नहीं करता परन्तु इसी धन का सही उपयोग में हमारा हाथ खिंच जाता है। चिन्तन को नया मोड़ देना है तुम्हें। एक दृष्टांत है- एक धोबी को एक हीरों का हार मिल गया। उसने अपने गधे को उसे पहना दिया। एक छोटे व्यापारी ने उस हार को अपनी पत्नी के लिये अल्प रुपयों में खरीद लिया। एक जौहरी की नजर उस पर पड़ गई। उसने उसे और कुछ रुपये देकर खरीद लिया। वह पारखी था- उसने उस हार का एक-एक हीरा हजारों लाखों में बेच दिया। तुम्हारे पास भी अनेक अमूल्य शक्तियों का भण्डार भरा पड़ा है- संगठन शक्ति, स्मरण शक्ति, सहन शक्ति, योग शक्ति, कुण्डलिनी शक्ति, आकर्षण-शक्ति, संकल्प शक्ति, शब्द शक्ति, कल्पना शक्ति आदि-आदि। इन शक्तियों को पहचानो एवं उनका सदुपयोग करो। यह खेदजनक ही है कि आज राष्ट्र के कर्णधार भी अपना सही पथ भूल गये हैं। जुआ, लॉटरी, धूम्रपान, शराब आदि को सरकारी आय का स्रोत समझ कर स्वयं वे असहाय नजर आ रहे हैं। अपने निहित स्वार्थ के लिये युवा शक्ति को भ्रमित कर रहे हैं। चुनाव के जंजाल में फंसा रहे हैं- इस विराट शक्ति को। इसीलिए आज समाज एवं देश की निगाहें सिर्फ तुम्हारी यानी युवा शक्ति पर है। दहेज, कुव्यसन, फिजूलखर्ची, निरक्षरता, भ्रष्टाचार आदि अनेक ऐसी चुनौतियां हैं, जिनका सामना तुम्हीं कर सकते हो। हमारे देश का इतिहास हजारों ऊंचे चरित्र और विलक्षण गुणों वाली अनेक गाथाओं से भरा पड़ा है। बचपन की अच्छी आदतों और अच्छे कार्यों से जीवन में ऊंचा उठने की शक्ति मिलती है। तुम अपनी लगन, दृढ़ता, धीरज, बुद्धि, सूझ-बूझ, और चेष्टा से बड़े से बड़े काम कर सकते हो। आज ही संकल्प करो कि तुम्हें प्रति दिन ऐसे काम करने हैं, जिनसे तुम्हारी उन्नति हो और दूसरों को भला हो। भगवान ने तुम्हें जो अद्भुत शक्तियां दी हैं उन्हें नष्ट मत होने दो, उनका सही उपयोग करो। परिवार - समाज एवं राष्ट्र को अपने जीने का प्रमाण दो। ___43, कैलाश बोस स्ट्रीट, कलकत्ता हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / 48 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211779
Book TitleYuva Pedhi aur Samaj Seva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkarlal Kedia
PublisherZ_Jain_Vidyalay_Hirak_Jayanti_Granth_012029.pdf
Publication Year1994
Total Pages2
LanguageHindi
ClassificationArticle & Society
File Size347 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy