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इसके रचियता रत्नाकरवर्णी क्षत्रियवंश के थे। उनके पिता का नाम श्रीमन्दरस्वामी, दीक्षागुरु का नाम चारुकीत्ति तथा मोक्षाग्रगुरु का नाम हंसनाथ (परमात्मा) था। कवि देवचन्द्र के अनुसार भरतेश-वैभव का रचियता कर्णाटक के सुप्रसिद्ध जैन तीर्थमडविद्री के सूर्यवंशी राजा देवराज का पुत्र था, जिसका नाम 'रत्ना' रखा गया। रत्नाकर के विषय में कहा जाता है कि वह अत्यन्त स्वाभिमानी किन्तु अहंकारी कवि था । अपने गुरु से अनबन हो जाने के कारण उसने जैन धर्म का त्याग कर लिंगायत धर्म स्वीकार कर लिया था और उसी स्थिति में उसने वीरशैवपुराण, वासवपुराण, सोमेश्वर शतक आदि रचनाए की थीं। कवि की भरतेश वैभव के अतिरिक्त अन्य जैन रचनाओं में रत्नाकरशतक, अपराजितशतक, त्रिलोकशतक प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त लगभग २००० श्लोक प्रमाण अध्यात्म गीतों की रचना की थी।
कवि ने अपनी त्रिलोकशतक की प्रशस्ति में उसका रचनाकाल शालिवाहन शक वर्ष १४७६ (मणिशैल गति इंदुशालिशक) अर्थात् सन् १५५७ कहा है । इससे यह स्पष्ट है कि रत्नाकर का रचनाकाल ई० की १५ वीं सदी का मध्यकाल रहा है।
ग्रन्थ की मूल-भाषा कन्नड़ है। अपनी विशिष्ट गुणवत्ता के कारण यह ग्रन्थ भारतीय वाङ्गमय का गौरव ग्रन्थ कहा जाय तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी।
१५ वीं सदी हिन्दी के विकास एवं प्रचार का युग था। रास साहित्य के साथ-साथ सन्त कवि कबीर, सूर एवं जायसी, हिन्दी के क्षेत्र में धार्मिक साहित्य का प्रणयन कर चुके थे। उसने जन-मानस पर अमिट प्रभाव छोड़ा था। जैन कवियों का भी ध्यान इस ओर गया और उन्होंने भी युग की मांग को ध्यान में रखकर बाहुबली चरित का लोक प्रचलित हिन्दी में अंकन किया।
इस दिशा में कवि कुमदचन्द्र कृत बाहुबली छन्द' नामकी आदिकालीन हिन्दी रचना महत्वपूर्ण है। उसमें परम्परागत कथानक को छन्द-शैली में निबद्ध किया गया है। इसकी कुल पद्य संख्या २११ है । इसके आदि एवं अन्त के पद्य निम्न प्रकार हैं
भरत महीपति कृत मही रक्षण बाहुबलि बलवंत विचक्षण । तेह भनो करसु नवछंद सांभलता भणतां आनंद ।। करणा केतकी कमरख केली नव-नारंगी नागर बेली । भगर नगर तरु तु दुक ताला सरल सुपारी तरल तमाला ।। संसार सारित्यागं गतं विवुद्ध वृद वंदित चरणं ।
कहे कुमुदचंद्र भुजबल जयो सकल संध मंगल करण ।। इस ग्रन्थ का रचनाकाल वि० सं० १४६७ है । यह ग्रन्थ अद्यावधि अप्रकाशित है।
भट्टारक सकलकोति कृत वृषभदेवचरित (आदिपुराण) संस्कृत का पौराणिक काव्य है, जिसमें जिनसेन की परम्परा के बाहुबली कथानक का चित्रण किया गया है । सकलकीर्ति का समय विक्रम की १६ वीं सदी का प्रारम्भ माना गया है।
"कार्कलद गोम्मटेश्वर चरिते" सांगत्य छन्द में लिखित कन्नड़ भाषा का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। इसमें १७ सन्धियां (प्रकरण) एवं २२२५ पद्य हैं । इस ग्रन्थ में गोम्मटेश्वर अथवा बाहुबली का जीवन चरित तथा सन् १४३२ ई० में कारकल में राजावीरपाण्ड्य द्वारा प्रतिष्ठापित बाहुबली-प्रतिमा का इतिवृत अंकित है । ऐतिहासिक दृष्टि से यह ग्रन्थ बड़ा महत्त्वपूर्ण है।
प्रस्तुत रचना के लेखक कवि चन्द्रम हैं । इनका समय १६ वीं सदी के लगभग माना गया है।
पुण्यकुशलगणि (रचनाकाल वि० सं० १६४१-१६६६) विरचित भरतबाहुबली महाकाव्यम् संस्कृत भाषा में लिखित बाहुबली सम्बन्धी एक अलंकृत रचना है जिसके १८ सर्गों के ५३५ विविध शैली के श्लोकों में बाहुबली के जीवन का मार्मिक चित्रण किया गया है।
इसके सम्पादक मुनि नथमल जी हैं, जिन्होंने तेरापन्थी शासन संग्रहालय में सुरक्षित हस्तप्रति एवं आगरा के विजयधर्मसूरि ज्ञानमन्दिर में सुरक्षित हस्तप्रति उपलब्ध करके उन दोनों के आधार पर इसका सम्पादन किया है। अनेक त्रुटित श्लोकों की पूर्ति
१. दे० वही-पृ. १-०. २. दे. वही पृ०२-५. ३. दे. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की सूची-भाग ५ पृ० १०६६. ४. जै०सि० मा० ५२६२-१००.
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य
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